रांची:नेशनल नियोनाटोलॉजी फोरम (NNF) झारखंड ब्रांच की ओर से रांची में आयोजित थर्ड ईस्ट जोन कॉन्फ्रेंस नियोकॉन-22 का समापन हो गया (Neocon-22 in Ranchi Concluded). रविवार को हुए समापन सत्र में नवजात शिशु संबंधित सभी तरह की बीमारियों के विषय में देश विदेश के जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञों ने अपने अपने व्याख्यान दिए और अपने अनुभवों को साझा किया.
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डॉक्टरों को दी गई जानकारी:कॉन्फ्रेंस के अंतिम दिन झारखंड और देश अन्य हिस्सों से आए शिशु रोग चिकित्सकों को यह जानकारी दी गयी कि एक डॉक्टर को बच्चों के उपचार के समय किन किन चीजों पर बारीकी नजर रखनी चाहिए? किस कंडीशन में कौन से उपकरण का इस्तेमाल करना है? इसके अलावा बच्चों में सांस की समस्या होने पर वेंटिलेटर द्वारा कृत्रिम ऑक्सीजन देकर उनकी जान बचाने का भी प्रशिक्षण दिया गया.
नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ विक्रम दत्ता ने बताया कि नवजात बच्चों की गुणवत्ता में सुधार से 75 प्रतिशत शिशु मृत्यु दर में सुधार लाया जा सकता है. उन्होंने डॉक्टरों और अस्पताल संचालकों को सुझाव देते हुए कहा कि डब्लूएचओ की गाइडलाइन का पालन किया जाए तो व्यापक सुधार संभव है. इसके लिए सभी अस्पतालों को चार स्टेप लागू करने होंगे:
- पहला अपनी परेशानी को पहचानें.
- दूसरा, परेशानी को पहचान कर मुख्य परेशानी को अलग करें.
- तीसरा एक टीम बनाएं जिसमें डॉक्टर, मरीज, नर्स और मरीज के परिजन शामिल हो और उनके सुझाव पर अमल करते हुए समस्याओं का निदान करें.
- इसके बाद इस नियम को अपने अस्पताल पर लागू करें.
एंटीबायोटिक का ज्यादा प्रयोग नुकसानदायक: डॉ विक्रम दत्ता ने कहा कि अक्सर यह बातें सामने आ रही है कि एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग डॉक्टर्स जमकर करते हैं, यह अच्छी बात नहीं है. उन्होंने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं को लिखने से पहले थोड़ा परहेज किया जाए, क्योकि एंटीबायोटिक का ज्यादा प्रयोग नुकसानदायक हो सकता है.