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झारखंड पशुपालन विभाग पर कुछ पशु चिकित्सकों का कब्जा! विभागीय सचिव पर भी बरस रही है कृपा, वेबसाइट तक नहीं है अपडेट, पढ़ें एक्सक्लूसिव रिपोर्ट - झारखंड पशुपालन विभाग

झारखंड पशुपालन विभाग में सरकार के किसी नियम का कोई फार्मूला काम नहीं करता है. यहां जो काम होता है वही सरकार का नियम बन जाता है. विभाग में एक अधिकारी एक जगह 3 साल से ज्यादा नहीं रह सकता है, सरकार ने भले यह नियम बना रखा हो लेकिन विभाग में कई ऐसे पदाधिकारी हैं जो 30 सालों से एक जगह कुंडली मार कर बैठे हुए हैं. डिजिटल क्रांति के समय में वेबसाइट तक को अपडेट नहीं किया जा रहा है. पढ़ें रिपोर्ट

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Published : Jul 10, 2023, 7:52 PM IST

Updated : Jul 11, 2023, 9:50 AM IST

रांची:पशुपालन शब्द बिहार और झारखंड के लोगों के लिए ही नहीं पूरे देश के लिए चर्चा का विषय रहा है. इसकी वजह बना था 90 के दशक में हुआ बिहार का पशुपालन घोटाला. इस मामले में सीबीआई जांच के बाद बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद समेत कई लोगों को सजा हुई. इसके बावजूद यह विभाग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. झारखंड के भी इस विभाग में खुलकर धांधली हो रही है. इसकी बदौलत कई डॉक्टर लंबे समय से एक ही जगह कुंडली मारकर जमे हुए हैं. ट्रांसफर की बात आती है तो विभाग की एक बिल्डिंग से दूसरे बिल्डिंग में अलग कोई पद लेकर शिफ्ट हो जाते हैं. पूरा खेल हाई प्रोफाइल फॉर्मूले पर चल रहा है. इसकी वजह से मेन स्ट्रीम में पोस्टिंग का इंतजार कर रहे पशु चिकित्सक मानसिक रूप से प्रताड़ित हो रहे हैं.

यही नहीं विभागीय सचिव अबु बकर सिद्दिकी भी तीन साल से ज्यादा समय से इसी विभाग में खूंटा गाड़े बैठे हुए हैं. 2019 में जब रघुवर सरकार की जगह हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकारी बनी तो 2003 बैच के आईएएस अबु बकर सिद्दिकी को अप्रैल 2020 में खान एवं भूतत्व विभाग के सचिव के अलावा कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के सचिव का अतिरिक्त प्रभार दे दिया गया. इसके बाद कृषि मंत्री बादल पत्रलेख के साथ इनकी ऐसी बनी कि इन्हें 15 जुलाई 2020 को कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग की पूरी जिम्मेदारी देने के अलावा खान एवं भूतत्व विभाग के सचिव के साथ-साथ जेएसएमडीएस के चेयरमैन का भी अतिरिक्त प्रभार दे दिया गया.

पशुपालन विभाग पर कुछ डॉक्टरों का कब्जा: पशुपालन विभाग में कुछ पशु चिकित्सकों की ऐसी पैठ है कि उनको कोई टस से मस नहीं करा पाता. इस कड़ी में पहला नाम है डॉ नरेंद्र कुमार झा का. जनाब रांची में RJD के पद पर विराजमान है. 1991 से रांची जिले में ही 32 साल से खूंटा गाड़कर बैठे हुए हैं. दूसरा नाम है डॉ असीम कुमार का. धनबाद में अवर प्रमंडल पशुपालन पदाधिकारी के पद पर हैं. 15 वर्षों से इसी जिले में जमे हुए हैं. डॉ अम्बोज कुमार भी कम नहीं हैं. ये तो जमशेदपुर में पिछले 10 वर्षों से टिके हुए हैं.

डॉ संजीव कुमार को जमशेदपुर में सेवा देते 10 साल गुजर चुके हैं. डॉ यदुवंश कुमार सिंह है कि जमशेदपुर में अपनी सेवाकाल के 28 वर्ष में से 25 साल से ज्यादा बीता चुके हैं. डॉ अनिता कुमारी पिछले 23 साल से रांची में जमी हुई हैं. पिछले 8 वर्षों से पिग ब्रिडिंग फार्म में पदस्थापित हैं. डॉ मुक्ति सिन्हा पर भी कृपा बरस रही है. करीब 20 वर्षों से रांची में चक्कर काट रहीं हैं. फिलहाल 8 वर्षों से पिग ब्रिडिंग फार्म में पदस्थापित हैं.

डॉ पप्पू कुमार का भी जलवा बरकरार है. कांके के पिग ब्रिडिंग फार्म में 9 वर्षों से काबिज हैं. डॉ बसंत कुमार की ऐसी सेटिंग है कि पिछले 9 वर्षों से क्षेत्रीय निदेशक कार्यालय में बैठे हुए हैं. डॉ शैलेंद्र कुमार तिवारी हैं कि रांची के क्षेत्रीय निदेशक कार्यालय में 16 वर्षों से और डॉ के.के.तिवारी 15 वर्षों से रांची के ही चक्कर काट रहे हैं. अब सवाल है कि इन पशुचिकित्सकों पर आखिर किसकी कृपा बरस रही है.

पशुपालन को कैसे बढ़ावा दे पाएगी सरकार: मिनरल रिच स्टेट होने के बावजूद झारखंड की 70 प्रतिशत से ज्यादा आबादी कृषि और पशुपालन पर निर्भर है. किसान और पशुपालकों की आय बढ़ाना सरकार की प्राथमिकता में शामिल है. मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना से लाभुकों को जोड़ने के लिए 300 करोड़ का बजट रखा गया है. जमशेदपुर में नये डेयरी प्लांट और रांची में मिल्क पाउडर प्लांट और मिल्क प्रोडक्ट प्लांट स्थापित करने के लिए 180 करोड़ का प्रावधान किया गया है.

दुग्ध उत्पादकों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन राशि प्रति लीटर 2 रु. से बढ़ाकर 3 रु. कर दिया गया है. जाहिर है यह योजना तभी सफल होगी जब बीमार पशुओं का समय पर इलाज हो पाएगा. लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह रही है. सेटिंग गेटिंग के साथ कई चिकित्सक वर्षों से एक ही जगह कुंडली मारकर सैलरी उठा रहे हैं.

विभाग का वेबसाइट तक नहीं है अपडेट:जिस विभाग पर सरकार की प्रतिष्ठा टिकी रहती है, वह विभाग कितना सेंसेटिव तरीके से काम कर रहा है, इसकी तस्वीर विभाग के वेबसाइट में झलक रही है. कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के वेबसाइट में न सिर्फ कृषि निदेशक बल्कि होर्टिकल्चर निदेशक के रूप में नीशा उरांव सिंहमार की तस्वीर लगी हुई है.

चौंकाने वाली बात है कि सॉयल कंजर्वेशन के निदेशक के रूप में डॉ सुभाष सिंह की तस्वीर लगी हुई है, जो रिटायर हो चुके हैं. जबकि सच्चाई यह है कि वर्तमान में कृषि, पशुपालन और डेयरी के निदेशक की जिम्मेदारी 2016 बैच के आईएएस चंदन कुमार संभाल रहे हैं. यही नहीं हॉर्टिकल्चर के निदेशक की जिम्मेदारी निशाद अहमद संभाल रहे हैं. रही बात सॉयल कंजर्वेशन की तो डॉ सुभाष सिंह के रिटायर होने के बाद यह जिम्मेदारी अजय कुमार सिंह को मिल चुकी है.

जाहिर है टेक्नोलॉजी के दौर में अगर झारखंड सरकार के कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के साइट को आधार बनाकर किसी अधिकारी से संपर्क करेगा तो उसे मायूसी हाथ लगेगी. इस बाबात विभाग का कोई अधिकारी बात करने को तैयार नहीं है. विभागीय मंत्री बादल पत्रलेख रांची से बाहर हैं. इस बाबत उनके फोन पर संपर्क किया गया लेकिन इस विषय को लेकर उन्होंने कोई बात नहीं की.

Last Updated : Jul 11, 2023, 9:50 AM IST

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