रांचीः झारखंड में राजधानी रांची सहित विभिन्न जिलों में बड़ी संख्या में विभिन्न देवी देवताओं के नाम पर मंदिरें है. इन धार्मिक स्थलों से लाखों करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. जिसके कारण ना केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलता है बल्कि रोजी रोजगार भी इससे लोगों का जुड़ा हुआ है.
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धार्मिक न्यास समिति के माध्यम से चल रहे कई धार्मिक स्थल सैकड़ों वर्ष पुराने हैं जो या तो दान में दी हुई जमीन पर है या सरकार की ओर से अधिग्रहित जमीन पर अवस्थित है. कई मंदिरों की जमीन और संपत्ति आज भी विवादों में है. भू-माफिया गलत ढंग से जमीन बंदोबस्ती करा लेने से इन स्थानों की जमीन अतिक्रमित होती चली गई है.
उदाहरण के तौर पर राजधानी रांची के पहाड़ी मंदिर सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार करीब 26 एकड़ में है. मगर सच्चाई यह है कि मंदिर के कब्जे में 22 एकड़ से अधिक जमीन नहीं है. उसमें भी कई स्थानों पर झुग्गी झोपड़ी लगाकर अतिक्रमण कर लिया गया है. पहाड़ी मंदिर के संस्थापक रहे दयाशंकर की मानें तो पहाड़ी मंदिर की पूरी जमीन भूमाफियाओं ने गलत बंदोबस्ती करा ली थी जिसके बचाने में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.
पहाड़ी मंदिर के अलावे राजधानी का जगन्नाथ स्वामी का मंदिर जहां रथयात्रा के दौरान श्रद्दालुओं का सैलाब उमड़ता है. इस मंदिर का निर्माण 1691 में नागवंशी राजा एनी नाथ शाहदेव ने कराया था. ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने मंदिर के रखरखाव के लिए 3 गांव जगन्नाथपुर आमी और भूसू की जमीन मंदिर को दान में दी थी. 1979 में मंदिर को ट्रस्ट के माध्यम से संचालित करने का निर्णय लिया गया. उपायुक्त ट्रस्ट के पदेन अध्यक्ष होते हैं, साथ ही ट्रस्ट में राज परिवार के भी सदस्य शामिल हैं. समय के साथ इस मंदिर की जमीन पर भी विवाद गहराने लगा है.
मंदिर धार्मिक न्यास समिति पर नियंत्रण नहीं
आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में करीब 6000 छोटे बड़े मंदिर हैं. खास बात यह है कि इन मंदिरों की संपत्ति का ब्यौरा सरकार के पास नहीं है. प्रावधान के अनुसार हर मंदिर समिति को झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद से निबंधन कराकर हर वर्ष आय व्यय का लेखा जमा करना आवश्यक है. एक्ट के अनुसार झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद में किसी मंदिर के कुल आय के 20 प्रतिशत मंदिर प्रशासनिक व्यय पर खर्च मानकर शेष 80 प्रतिशत आय के 5% टैक्स जमा किया जाना है.
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