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सरहुल की शोभा यात्रा निकली मनमोहक झांकियां, आदिवासी संगीत पर जमकर थिरके लोग - प्रकृति पर्व सरहुल

रांची में सरहुल की शोभा यात्रा में झांकियां निकली. सरहुल के जुलूस में मनमोहक झांकियां भी निकाली गयीं. एक युवक ने 1932 खतियानी लागू करने को दर्शाते हुए अपने शरीर पर रंगीन चित्र बना लिया. सरहुल की खुशी में कोरोना गाइडलाइन की धज्जियां भी उड़ती दिखी.

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सरहुल

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Published : Apr 4, 2022, 10:41 PM IST

रांचीः सरहुल की खुशी में कोरोना गाइडलाइन की धज्जियां उड़ गयीं. राज्य सरकार ने इस संदर्भ में जो भी दिशानिर्देश जारी किया था उसका किसी ने पालन नहीं किया. मास्क की बात तो दूर हजारों श्रद्धालु एक साथ राजधानी की सड़क पर खासकर कचहरी चौक से मेनरोड अलबर्ट एक्का चौक तक देर शाम तक नाचते गाते रहे. सरहुल के जुलूस में मनमोहक झांकियां भी निकाली गयीं.

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आदिवासियों के नव वर्ष की शुरुआत के रुप में माना जाने वाला सरहुल हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. आदिवासी परिधान में सजे महिला पुरुषों की टोली देर शाम तक राजधानी के मेनरोड से गुजरती रही. लोगों में उत्साह इस कदर था कि वो कोरोना गाइडलाइन का पालन करना भी भूल गए. अलबर्ट एक्का चौक पर तो संख्या इस कदर थी कि पांव रखना भी मुश्किल हो रहा था. डीजे की धून पर झुमते नाचते गाते लोगों की टोली कोरोना के कहर को भी भुला दिया.

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शोभा यात्रा देखकर ऐसा लग रहा था कि मानों फिर से एक नई जिंदगी की शुरुआत करने लोग सड़कों पर उतर आए हैं. पर्यावरण संरक्षण के प्रति यह अकाट्य प्रेम आदिवासियों में ही दिखता है. इस मौके पर एक दूसरे को गुलाल लगाकर खुशी बांट रहे युवाओं की टोली डीजे पर नाचते रहे. इस दौरान सुबोधकांत सहाय, विधायक राजेश कच्छप, मेयर आशा लकड़ा सहित कई लोग मंच पर मौजूद दिखे. भीड़ में एक व्यक्ति 1932 का खतियान लागू करने के लिए पूरे शरीर पर इसे लिखवाकर पहुंचा था.

सरहुल की शोभा यात्रा के कारण राजधानी के विभिन्न भागों में घंटों बिजली बाधित रही. बिजली विभाग द्वारा हर बार की तरह इसे एहतियात के रुप में पावर सप्लाई बंद करने का निर्णय लिया था. जिस वजह से मेनरोड, कचहरी चौक, हरमू, कोकर जैसे कई जगहों में करीब पांच घंटे बिजली बाधित रही.


क्यों मनाया जाता है सरहुलः प्रकृति पर्व सरहुल आदिवासियों का वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला है एक प्रमुख पर्व है. पतझड़ के बाद पेड़-पौधे की टहनियों पर हरी-हरी पत्तियां जब निकलने लगती है, आम के मंजर, सखुआ और महुआ के फुल से जब पूरा वातावरण सुगंधित हो जाता है तब यह मनाया जाता है. परंपरा के अनुसार यह पर्व प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष के तृतीया से शुरू होकर चैत्र पूर्णिमा के दिन संपन्न होता है. इस पर्व में साल अर्थात सखुआ के वृक्ष का विशेष महत्व है. आदिवासियों की परंपरा के अनुसार इस पर्व के बाद ही नई फसल यानी रबि विशेषकर गेहूं की कटाई आरंभ की जाती है. इसी पर्व के साथ आदिवासियों का नव वर्ष शुरू होता है.

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