रांची: नवरात्रि की नवमी तिथि पर मंगलवार को झारखंड में घर-घर कन्याएं पूजी जायेंगी, लेकिन जमीनी तौर पर देखें तो राज्य में कन्याओं का हाल (Status of Girls in Jharkhand) अच्छा नहीं है. खेलने-पढ़ने की उम्र में ही लड़कियों पर गृहस्थी और मातृत्व का बोझ डाल दिया जा रहा है. जनगणना से लेकर एनएफएचएस (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे) तक के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं.
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राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (National Family Health Survey) की वर्ष 2020-21 की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 32.2 फीसदी मामले बाल विवाह को लेकर दर्ज किए गए हैं. यानी यहां हर दस में से तीन लड़की बालपन में ब्याह दी जा रही है. राज्य में लड़कियों की खराब सेहत, खास तौर पर उनमें खून की कमी की बीमारी एनीमिया गंभीर चिंता का विषय है. वर्ष 2015-2016 में आये एनएफएचएस-4 के सर्वे में राज्य में बाल विवाह का आंकड़ा 37.9 फीसदी था. 2020-21 में चार सालों के अंतराल में इसमें करीब पांच फीसदी की गिरावट जरूर दर्ज की गई है, लेकिन राज्य सरकार से लेकर बाल संरक्षण आयोग तक ने बाल विवाह को चिंता का विषय माना है.
एनएफएचएस की रिपोर्ट (NFHS Report) के मुताबिक पूरे देश में बाल विवाह के मामले में झारखंड का तीसरा स्थान है. चिंताजनक तथ्य यह भी है कि राज्य में बाल विवाह की ऊंची दर के बावजूद पुलिस में इसकी शिकायतें बहुत कम पहुंचती हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में साल 2019 में तीन, साल 2020 में तीन और साल 2021 में बाल विवाह के चार मामले दर्ज किए गए. जाहिर है कि 99 फीसदी से ज्यादा बाल विवाह के मामलों की रिपोर्ट पुलिस-प्रशासन में नहीं पहुंच पाती.