रांची: अपराध की दुनिया में कदम बढ़ा कर जेल के चारदीवारी में कैद अपराधी अपने कर्मों का पश्चाताप कर रहे हैं. झारखंड सरकार कैदियों को रोजगार से जोड़ने के लिए जेल में ही कई तरह के प्रशिक्षण देती है. पुनर्वास नीति के प्रशिक्षित कैदियों से कई तरह की वस्तुएं भी जेल के अंदर बनवाया जाता है, लेकिन बाजार उपलब्ध नहीं होने के कारण कैदियों के बनाए हुए वस्तु आम लोगों तक नहीं पहुंच पाता था.
दिल्ली के तिहाड़ जेल की तर्ज पर झारखंड में पहली बार जिला विधिक सेवा प्राधिकार रांची ने 40 कोर्ट बिल्डिंग में बाजार उपलब्ध कराया गया है, जिससे जो सामान कैदियों ने बनाया हैं वह आमजनों तक पहुंचने लगी है.
कैदियों द्वारा निर्मित वस्तुएं
- काला कंबल
- लाल कंबल
- खादी कंबल
- निर्मल साबुन
- रक्षक साबुन
- फिनाईल
- सुजनी
- चादर
- डस्टर
- गमछा
- कॉटसवुल शॉल
- ऊलेन शॉल
- मोमबत्ती
- मशरूम
- रजिस्टर
- पेंटिंग
कैदी के बनाए हुए सामान जो बाजारों में बिकता है उस पैसे का एक तिहाई मजदूरी उन्हें मिलती है और दो तिहाई मजदूरी पीड़ित या पीड़ित परिवार को दी जाती है, बांकी के मुनाफे से जेल प्रशासन जेल की मेंटेनेंस पर खर्च की जाती है. जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सार्थक पहल से रांची सिविल कोर्ट के 40 कोटिंग में कैदियों के बनाए हुए सामान को बेचने के लिए स्टॉल लगाया गया है. इसकी शुरुआत झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने की.
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जेल में सजा काट रहे कैदियों के बनाए हुए सामानों का उपयोग प्रचार-प्रसार नहीं होने के कारण बाजारों तक नहीं पहुंच पाता था. उन सामानों का उपयोग केवल न्यायालय तक ही सीमित हो गया था, लेकिन अब बाजार उपलब्ध हो जाने से कारण कैदियों के बनाए हुए सामान आम लोगों तक पहुंच पाएगा. तिहाड़ जेल के बाद एकमात्र रांची बिरसा मुंडा कारावास है, जहां कैदियों के बनाए हुए सामानों की बिक्री की जा रही है.