रांची:किसी भी राज्य में विकास के लिए सड़कों की कनेक्टिविटी यानि परिवहन सुविधाओं का खास महत्व रहता है. आसान भाषा में कहें तो जिस राज्य या क्षेत्र की सड़कें जितनी अच्छी होगी उस क्षेत्र का विकास उतनी तेजी से होगा. इसके पीछे मुख्य वजह माल ढुलाई में लगने वाला समय है. सड़कें अच्छी रही तो माल ढुलाई में कम वक्त लगेगा और प्रोडक्ट भी मार्केट में जल्दी भेजा जा सकेगा.
साल 2000 में जब झारखंड बिहार से अलग हुआ था तब सूबे में नेशनल हाइवे का दायरा 1606 किलोमीटर था. साल 2005 में यह बढ़कर 1,805 किलोमीटर पहुंच गया. 2011 तक नेशनल हाइवे का दायरा नहीं बढ़ा. इसके बाद सड़कें तेजी से बनने लगी. 2014 में यह 2,968 किलोमीटर पहुंच गया. 2019 के आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में नेशनल हाइवे का दायरा 3367 तक पहुंच गया. 21 सालों का औसत निकालें तो हर साल झारखंड में नेशनल हाइवे में 83 किलोमीटर का सड़क निर्माण हुआ.
21 वर्षों में दोगुना हो गया झारखंड में एनएच का दायरा. झारखंड में नेशनल हाइवे के जो 18 प्रोजेक्ट देरी से चल रहे हैं उसकी कुल लंबाई 508.47 किलोमीटर है और इसके लिए कुल 3607.5 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं.
5 साल से लटका है प्रोजेक्ट
झारखंड में नेशनल हाइवे का एक प्रोजेक्ट पिछले 5 सालों से लटका है. इसका निर्माण धनबाद जिले के बरवाअड्डा से शुरू होना है और यह पश्चिम बंगाल के पश्चिम वर्धमान तक बनेगा. इसकी लंबाई 122.88 किलोमीटर होगी और इसमें 1665 करोड़ रुपए खर्च होंगे.
जमीन अधिग्रहण और कई अन्य कारणों से 18 प्रोजेक्ट पीछे चल रहे हैं. 3367 किलोमीटर तक पहुंचा दायरा
वर्तमान रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में कुल 30 नेशनल हाइवे है और इसका दायरा 3367 किलोमीटर तक पहुंच गया है. राष्ट्रीय राजमार्ग भारत सरकार के नियंत्रण में आता है. 2019-20 में 1712 करोड़ की लागत से 16 प्रोजेक्ट पर काम हुआ और 269 किलोमीटर सड़क बनी. वर्तमान समय में राज्य में 7617 करोड़ की लागत से 754 किलोमीटर सड़क निर्माण का काम चल रहा है. 2020-21 में 141.54 किलोमीटर सड़क निर्माण का लक्ष्य है.
पिछले तीन साल में झारखंड में एनएच पर हुए खर्च का ब्योरा. 669 किलोमीटर एनएच के लिए तैयार हो रहा डीपीआर
जिन प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है उसके अलावा 669.14 किलोमीटर एनएच के लिए डीपीआर तैयार की जा रही है. नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के मुख्य महाप्रबंधक सह क्षेत्रीय अधिकारी शैलेंद्र कुमार मिश्र का कहना है कि आने वाले समय में झारखंड में एनएच निर्माण में और भी तेजी आयेगी. भारत माला प्रोजेक्ट अगले साल शुरू होने के बाद देश के अन्य राज्यों से कनेक्टिविटी और भी सुगम हो जायेगा.
झारखंड में NH-33 सबसे लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग है. NH-33 सबसे लंबा और NH-133B सबसे छोटा राष्ट्रीय राजमार्ग
झारखंड के 30 नेशनल हाइवे में NH-33 सबसे लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग है. यह बिहार बॉर्डर से पश्चिम बंगाल बॉर्डर तक है. NH-33 की कुल लंबाई 333.5 किलोमीटर(झारखंड में 92.9 किमी) है. झारखंड का सबसे छोटा राष्ट्रीय राजमार्ग NH-133B है. यह साहिबगंज से बिहार बॉर्डर तक है जिसकी कुल लंबाई 16 किलोमीटर(झारखंड में 11) है.
कई नेशनल हाइवे की स्थिति बदहाल
राज्य में नेशनल हाइवे की देखरेख, निर्माण और राज्य सरकार से समन्वय बनाने के लिए 2015 में झारखंड राज्य राजमार्ग प्राधिकरण का गठन किया गया है. लेकिन, सड़कों की बदहाल स्थिति और निर्माण कार्य में लग रहे समय पर सवाल उठ रहे हैं. हजारीबाग-बरही-कोडरमा राष्ट्रीय राजमार्ग और पलामू के एनएच 39 पर सड़कें काफी खराब है. एनएच की बदहाली और निर्माण कार्य में हो रही देरी पर राजनीति भी होती रही है. बजट सत्र के दौरान इसको लेकर सवाल भी उठे. सत्ता पक्ष ने जहां इसके लिए केंद्र पर निशाना साधा वहीं भाजपा नेता झामुमो और कांग्रेस को दोषी ठहराते दिखे.
झारखंड में नेशनल हाइवे का दायरा बढ़कर 3367 किलोमीटर पहुंच गया है. झारखंड को दो नए एक्सप्रेस-वे की सौगात
झारखंड को दो नए एक्सप्रेस-वे की सौगात मिली है. 'भारत माला प्रोजेक्ट' के तहत राज्य में दो नये एक्सप्रेस-वे बनेंगे. दोनों एक्सप्रेस-वे 'ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट' के रूप में तैयार किए जाएंगे. पहला एक्सप्रेस-वे छत्तीसगढ़ के रायपुर से बिलासपुर-गुमला-रांची-बोकारो होते हुए धनबाद तक बनेगा. इसकी लंबाई करीब 707 किलोमीटर होगी. दूसरा एक्सप्रेस-वे ओडिशा के संबलपुर से रांची तक बनेगा. इसकी लंबाई 146.2 किलोमीटर होगी. ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट के तहत बनने वाली सड़कें पूरी तरह से नई होगी. इसमें कहीं सिक्सलेन और कहीं-कहीं फोरलेन सड़कें बनेंगी.
जमीन अधिग्रहण के चलते लटके हैं कई प्रोजेक्ट
झारखंड में नेशनल हाइवे में पुराने लटके प्रोजेक्ट के पीछे कई कारण हैं. इसमें जमीन अधिग्रहण के दौरान बड़ी समस्या आती है. रैयतों को समय पर मुआवजा नहीं मिल पाता है. इसके अलावा राज्य की भौगोलिक बनावट भी सड़कों के निर्माण में देरी का कारण है. वन और पहाड़ी क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण बगैर फॉरेस्ट और पर्यावरण क्लियरेंस के नहीं हो सकता है. इस प्रक्रिया को पूरा करने में कई महीने लग जाते हैं. प्रशासनिक प्रक्रिया को पूरी करने में आ रही अड़चनों को ठीक किए बगैर समय पर प्रोजेक्ट को पूरा करना बेहद कठिन है.