रांची:देश को गौरव के क्षण प्रदान करने वाले वीर सैनिक पोदना बलमुचू राजभवन के सामने अपने परिवार के साथ धरना पर बैठने को मजबूर हैं. उन्होंने 1965 और 1971 के युद्ध में बिहार रेजिमेंट की ओर से दुश्मन देश पाकिस्तान को परास्त करने में अहम भूमिका निभाई थी. उनके साथ उनकी पत्नी और बच्चे भी धरना पर बैठे हुए हैं.
चाईबासा जिले के रहने वाले हैं पोदना बलमुचू:बिहार रेजिमेंट के सैनिक रहे पोदना बलमुचू चाईबासा के झींकपानी के रहने वाले हैं. 81 साल की उम्र में पोदना बलमुचू अपनी पत्नी सोमी बलमुचू और बेटे-बेटियों के साथ अपने हक और अधिकार के लिए राजभवन के सामने सेवा के दौरान 1965 में मिले समर सर्विस स्टार मेडल, 1971 में पूर्वी स्टार मेडल, आहत मेडल, संग्राम मेडल, जनरल सर्विस (नागा हिल्स), मिलिट्री सर्विस (जम्मू कश्मीर), रक्षा मेडल, दीर्घ सेवा मेडल मेडल के साथ धरना पर बैठे हैं. हालांकि उम्र के साथ उनकी सुनने की क्षमता कम हो गई है, लेकिन जब भी वह 1965 और 1971 के युद्धों के बारे में बात करते हैं तो उनके चेहरे पर एक चमक आ जाती है.
गोलियां लगने के बाद ले लिया था वीआरएस:इस उम्र में धरने पर क्यों बैठे हैं? इस सवाल के जवाब में पोदना बलमुचू 1971 के युद्ध के दिनों में जाते नजर आते हैं. उन्होंने ईटीवी भारत को बताया कि जिस लड़ाई में परमवीर चक्र लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने अपनी जान दी, उसी लड़ाई में वह दुश्मन की गोलियों से घायल हो गए. इसके बाद दिक्कतों के चलते उन्होंने 1974 में वीआरएस ले लिया. उस वक्त कई घोषणाएं हुईं लेकिन उन्हें यह कहकर पेंशन तक नहीं मिली कि उन्होंने 15 साल की सेवा पूरी नहीं की है. जब उन्होंने वीआरएस लिया, तब उनकी सेवा केवल साढ़े बारह साल की थी. उनका कहना है कि लड़ाई के दौरान गोली लगने से होने वाले दर्द के कारण उन्होंने वीआरएस लिया.
मुख्यमंत्री ने दिया था मांग पूरा करने का आश्वासन:सैनिक कभी नहीं हारता, इस कथन को सिद्ध करते हुए पोदना बलमुचू लगातार अलग-अलग तरीकों से अपनी मांग रख रहे हैं. उन्होंने मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी मुलाकात की थी और अपना दुख जताया था. मुख्यमंत्री ने उनकी मांगों को पूरा करने का आश्वासन भी दिया था. लेकिन जब वादा पूरा नहीं हुआ तो पोदना बलमुचू अपनी पत्नी, चार बेटों और दो बेटियों के साथ धरने पर बैठ गये.