पटना: बिहार में जिस तरह की सुरक्षा खामिया उजागर हो रहीं हैं, उससे एक बात तय है कि पूरा प्रदेश बारूद के ढेर पर बैठा है. आलम यह है कि जिलों में कचरे में बम मिल रहे हैं. भागलपुर में पटाखे वाले बारूद से घर उड़ रहे हैं. सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप लग रहे हैं. लेकिन, सुरक्षा में छोटी चूक की सबसे बड़ी कहानी बख्तियारपुर से सामने (CM Nitish Security Lapse) आती है, जहां सूबे के मुखिया नीतीश कुमार पर हमला हुआ तो पूरा बिहार हिल गया. नीतीश कुमार को चोट तो नहीं आई लेकिन बिहार को जिस 'सुरक्षा चूक' की चोट लगी है, कहने के लिए तो छोटी है लेकिन इस 'छोटी चूक' का खामियाजा बहुत बड़ा है.
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ललित नारायण मिश्र हत्याकांड (1975): बिहार की सुरक्षा चूक और खामियों की बात करें तो सबसे पहले राजनीतिक रूप से देख लिया जाए. सुरक्षा में चूक का बहुत बड़ा खामियाजा केंद्रीय रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र (Lalit Narayan Mishra murder case) के मंच पर हुए बम धमाके के साथ उनकी जीवन लीला समाप्त होने की है. उस वक्त भी बताया गया था कि सुरक्षा में चूक हो गई. इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में लालू सरकार में मंत्री रहे ब्रिज बिहारी सिंह की हत्या की गई और पटना में मुख्यमंत्री आवास से महज 3 किलोमीटर दूरी पर इस तरह AK-47 गरजी जिसकी कहानी आज भी लोग कहते हैं.
जब जिलाधिकारी की भीड़ ने ली जान (1994): भीड़ ने एक बेहतर जिलाधिकारी रहे कृष्णा रमैया की गाड़ी पलट दी. इसमें कृष्णा रमैया की जान चली गई हालांकि इस मामले में बिहार के कद्दावर नेता रहे आनंद मोहन जेल में जरूर हैं लेकिन जिस आईएएस की जान गई कहा यही गया कि छोटी सी चूक हो गई थी. पुल के अभाव में मंत्री नाव पर आ रहे थे उन्हें किडनैप किया गया और बाद में गोली मार दी गई, कहा यही गया कि सुरक्षा चूक हो गई. सुरक्षा में चूक का खामियाजा जान गंवाने वाले लोगों के परिवार वालों को आजीवन उठाना पड़ रहा है. बिहार का क्या होगा? क्योंकि, बिहार के लिए होने वाली इस हर छोटी सी चूक का खामियाजा सियासत के लिए लिखे जाने वाले राजनीति के हर पन्ने पर एक दरख़्त के रूप में उकेरा जा रहा है.
गांधी मैदान बम धमाका (2013): गांधी मैदान में नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली में सिलसिलेवार धमाके (Gandhi Maidan Bomb Blast) हो गए. सवाल यह उठा कि आखिर इतने सारे बम-बारूद गांधी मैदान तक पहुंचे कैसे? पूरी राजधानी किले में तब्दील थी. जिले के तमाम हाकिम-हुक्काम गाड़ियों पर फर्राटे भर रहे थे. सुरक्षा व्यवस्था की तैयारी का दंभ भरा जा रहा था. लगता था कि साहब की निगरानी में कुछ होगा ही नहीं. लेकिन, साहब की आंखों से जो चूक हुई उसका खामियाजा बिहार के कई आंखों से बहते हुए आंसू बयां कर रहे हैं. आज भी अपनों की याद में उनकी आंखें नम हो जाती हैं. हर वह तारीख जो अपने और अपनों के लिए तय की गई थी उस पर हर दर्द बिना किसी मरहम के सिर्फ आंसुओं से दामन को गीला कर जाता है. कहने के लिए तो चूक छोटी थी, लेकिन उसका खामियाजा आज भी बिहार भुगत रहा है.
छठ पूजा (2012) और मकर संक्राति (2017) पर हादसा: बिहार में छठ पूजा बहुत बड़ा पर्व है. कहने के लिए घाटों पर व्यवस्था तो बड़ी की गई थी, लेकिन अव्यवस्था की कहानी इतनी बड़ी थी कि कई जान उस समय चली गई जब पटना गंगा घाट पर भगदड़ मची थी. कहा यह गया कि छोटी सी चूक हो गई. 14 जनवरी के दिन भी बिहार के लिए काला दिन ही है. कहने के लिए एक मकर संक्रांति पर लोग पतंग उड़ाना चाहते थे और पतंगबाजी के लिए पर्यटन विभाग की नाव पर सवार होकर के गंगा के दूसरी तरफ गए थे. उस समय पर्यटन सचिव की तरफ से व्यवस्था की गई थी कि लोग नाव से उस तरफ जाएंगे और वहां पतंगबाजी करेंगे. लेकिन, सरकार के अधिकारियों को मीडिया से फोटो खिंचवाने के बाद यह याद भी नहीं रहा कि जो लोग स्टीमर पर बैठकर उस तरफ गए हैं वो वापस कैसे आएंगे ? यहीं एक छोटी सी चूक हो गई. परिणाम यह हुआ कि छोटी सी नाव पर क्षमता से कहीं ज्यादा लोग बैठ गए. नाव गंगा में समा गई. वहां भी कहा गया कि चूक छोटी है, कार्रवाई न किया जाए. हुआ क्या? फाइल अभी भी सत्ता के गलियारे में किसी टेबल पर पड़ी हुई है.