रांची: झारखंड को जेनेटिक एनीमिया मुक्त करने के लिए जरूरी है कि राज्य में जेनेटिक डिसऑर्डर की बीमारी सिकल सेल एनीमिया (Sickle cell anemia) और थैलेसीमिया की बीमारी को अगली पीढ़ी में जाने से ही रोक दिया जाए. इसके लिए जरूरी है कि इन कैरियर मरीजों की पहचान की जाए, फिर उनमें जागरुकता लाई जाए और उनकी काउंसलिंग की जाए कि थोड़ी सी सावधानी से कैसे इस बीमारी को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाने से रोका जा सकता है. राजधानी रांची में इसे लेकर काम किया जा रहा है.
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रांची में करीब 55 हजार लोगों की हुई है स्क्रीनिंग: रांची में सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया बीमारी की पहचान के लिए बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग कराई गई है. स्क्रीनिंग के नतीजे इस ओर इशारा करते हैं कि ये दो जेनेटिक बीमारी और इस रोग के वाहक (कैरियर) की बड़ी संख्या में रांची समेत राज्य में हो सकते हैं. रांची में 2 साल में करीब 55 हजार लोगों की स्क्रीनिंग हुई, जिसमें 2609 (4.83%) में सिकल सेल डिसऑर्डर पॉजिटिव (Solubility +ve) मिले हैं. वहीं थैलेसीमिक पॉजिटिव (Nestroft +ve) की संख्या 1526 (2.8%) है. सिकल सेल डिसऑर्डर पॉजिटिव मिले 2609 मामलों में 103 (3.94%) सिकल धारक (सिकल सेल एनीमिया) और 1426 (54.6%) सिकल सेल वाहक (सिकल सेल ट्रेट) थे. इसी तरह बीटा थैलेसीमिया माइनर की संख्या 333 (21.82%) और मेजर जिसे डिजीज भी कहते हैं उनकी संख्या 64 (4.19%) है.