रांची: झारखंड का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल रिम्स इस कदर बदहाल है कि गरीब लोगों को यहां इलाज कराने के लिए सिरिंज-नीडल बाहर से खरीदना पड़ता है. झारखंड सरकार अक्सर रिम्स को एम्स के तर्ज पर विकसित करने के दावे करती रहती है. लेकिन, जिस अस्पताल में सिरिंज-नीडल तक नहीं उपलब्ध होता है, उसे एम्स जैसा बनाने का दावा कितना पूरा होने वाला लगता है, या अपने आप में बड़ा सवाल है. यह सिर्फ कल्पना मात्र ही लग सकता है.
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रिम्स में मरीजों को निःशुल्क और गुणवत्तापूर्ण इलाज के नाम पर सरकार हर साल 400 से 450 करोड़ तक की भारी भरकम राशि खर्च करती है. लेकिन क्या आम लोगों की गाढ़ी कमाई के टैक्स से अर्जित ये सरकारी राशि खर्च होने के बाद भी इससे आम बीमार जनता को लाभ मिल पा रहा है? यह भी एक बड़ा सवाल है. सवाल इसलिए भी जायज है क्योंकि राजधानी में सरकार और तंत्र के नाक के नीचे रिम्स की व्यवस्था पूरी तरह बेपटरी हो गयी है. सरकार द्वारा सरकारी अस्पतालों में मरीजों को इलाज के साथ नि:शुल्क दवा देने का प्रावधान है. बावजूद इसके झारखंड के प्रीमियम मेडिकल संस्थान रिम्स में कई तरह की दवाएं, एंटी बायोटिक्स, यहां तक कि सिरिंज नीडल उपलब्ध नहीं है.
क्या कहते हैं मरीज और उनके परिजन: रिम्स के मेडिसीन विभाग के इंडोर में भर्ती मरीज के परिजन माधव स्वांसी कहते हैं कि यहां हर दिन बाहर से महंगी दवा लाना मजबूरी है, अब तो सिस्टर सुई और नीडल भी लाने को बोलती है. वहीं सुरजपति देवी बाहर से लाई दवा दिखाते हुए कहती हैं कि सिस्टर ने कहा है कि जो दवा इस्तेमाल नहीं होगा, उसे वापस कर देना. हर दिन महंगी दवा खरीदने का जिक्र करते हुए सूरजमनी देवी कहती हैं कि हर दिन सिस्टर एक पर्ची दे जाती है, जिसमें बाहर से मिलने वाली दवा का नाम होता है.
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सिरिंज नीडल नहीं है रिम्स में उपलब्ध-नर्स: मरीजों के इस आरोप के बाद नर्स से इस बारे में बात की गई. अनुशासन और मीडिया से सच्चाई उजागर करने पर कार्रवाई के डर से मेडिसीन इंडोर की नर्स ने अपना नाम नहीं बताया. लेकिन मास्क लगाए उसने रिम्स की कुव्यवस्था की पोल खोल कर रख दी. वहीं रिम्स न्यूरो विभाग के डॉ विकास ने स्वीकार किया कि कई बार जरूरी दवाएं तो क्या कॉटन पट्टी तक उपलब्ध नहीं होता, ऐसे में डॉक्टर्स क्या करेंगे. रिम्स में दवाओं से लेकर सुई नीडल तक की कमी की वजह जानने के लिए ईटीवी भारत ने मेडिकल अधीक्षक डॉ हितेंद्र बिरुआ से बात करने की कोशिश की, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका. सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी जरूरी चीजों का अस्पताल में ना होना, रिम्स प्रबंधन के उदासिन रवैया को दर्शाता है. इसमें सुधार और कार्रवाई की जरूरत है.