रांचीः झारखंड के विश्वविद्यालय शिक्षकों ही नहीं तृतीय और चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों की भी भारी कमी से जूझ रहे हैं. प्रदेश का उच्च शिक्षा विभाग राज्य गठन के 20 साल बाद भी इस सवाल का जवाब नहीं तलाश पा रहा है. नतीजतन, परीक्षा फल का प्रकाशन हो, छात्रों के प्रमाण पत्र निर्गत कराने का काम या फिर फाइल निपटारा और एनसीसी ग्रेडेशन सभी काम पर सुस्ती छाई है. इससे विश्वविद्यालयों का कामकाज प्रभावित हो रहा है.
राज्य में सात सरकारी विश्वविद्यालय हैं, जिनपर प्रदेश में उच्च शिक्षा मुहैया कराने का दारोमदार है. इन सभी में तृतीय और चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों की कमी है या अस्थायी कर्मचारियों के भरोसे जैसे-तैसे काम चलाया जा रहा है. राजधानी स्थित रांची विश्वविद्यालय के आंकड़े देश के दूसरे विश्वविद्यालयों में कर्मचारियों की कमी की बानगी ही पेश कर रहे हैं. रांची विश्वविद्यालय के कुलपति रमेश कुमार पांडेय का कहना है कि रांची विश्वविद्यालय में तृतीय वर्ग के कर्मचारियों के 189 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 94 पद रिक्त हैं. वहीं चतुर्थ श्रेणी के 186 पद स्वीकृत हैं, इनमें से 97 पद रिक्त हैं. वहीं रजिस्ट्रार और वित्त अधिकारी का पद अस्थायी रूप से भरकर काम चलाया जा रहा है. वहीं रांची विश्वविद्यालय से अलग कर बनाए गए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय का हाल भी जुदा नहीं है. विश्वविद्यालय के वीसी एसएन मुंडा ने बताया कि यहां तो तृतीय वर्ग के 27 और चतुर्थ वर्ग के 40 कर्मचारियों के भरोसे ही काम चलाया जा रहा है. यहां न तो रात्रि प्रहरी और न लाइब्रेरियन समेत अन्य की नियुक्ति की जा सकी है.
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कर्मचारी महासंघ के पूर्व पदाधिकारी नवीन चंचल का कहना है कि रांची विश्वविद्यालय में कर्मचारियों की कमी तो विश्वविद्यालयों के हालात की महज झांकी है. राज्य के विनोबा भावे विश्वविद्यालय हो, सिद्धू कान्हू विश्वविद्यालय, नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय , विनोद बिहारी महतो विश्वविद्यालय या कोल्हान विश्वविद्यालय सभी कर्मचारियों की घोर कमी की समस्या से जूझ रहे हैं. विश्वविद्यालयों के पद भरने पर शासन से कोई स्पष्ट जवाब भी मिलता नजर नहीं आता. शिक्षा विभाग के अफसर इसकी जिम्मेदारी जेएसएससी पर डालकर पल्ला झाड़ लेते हैं तो जेएसएससी रिक्त पदों का आकलन करने की बात कहकर कर्तव्य पूरा कर ले रहा है. अब तक विभाग के पास भी एक सटीक आंकड़ा है ही नहीं कि आखिर कितने कर्मचारियों की जरूरत विश्वविद्यालयों को है.
जेएसएससी के पास कर्मचारियों की नियुक्ति की जिम्मेदारी
पहले कर्मचारियों की नियुक्ति विश्वविद्यालय स्तर पर किया जाता था लेकिन अब यह अधिकार हेमंत सरकार की ओर से जेएसएससी को दे दी गई है और जेएसएससी की ओर से इस दिशा में अब तक कोई कदम नहीं बढ़ाया गया है. यहां तक कि जेएसएससी के पास भी विश्वविद्यालयों से जुड़े रिक्त पदों के संबंध में कोई जानकारी है ही नहीं है. जेएसएससी की मानें तो तमाम विश्वविद्यालयों से संपर्क साध कर अब तक रिक्त पड़े पदों का आंकलन किया जा रहा है. अनुबंध पर कितने कर्मचारी कार्यरत हैं और कितने सीटें विश्वविद्यालयों को जरूरत है. इन तमाम मामलों को देखा जा रहा है .इधर राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रबंधन मामले को लेकर बार-बार राज्य सरकार को पत्र के माध्यम से अवगत करा रहे हैं.
एनसीसी ग्रेडेशन में हो रही है परेशानी
आरयू के रजिस्ट्रार एम सी मेहता ने बाताया कि विश्वविद्यालय में शिक्षक स्टाफ की कमी के कारण एनसीसी ग्रेडेशन में भी परेशानियां आ रही हैं.वहीं डीएसपीएमयू के रजिस्ट्रार एके चौधरी का कहना है कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में तो नए एनसीसी ग्रेडेशन कि जरूरत है. लेकिन इस विश्वविद्यालय को कर्मचारियों की कमी के कारण ए ग्रेड नहीं मिल पा रहा है .