झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / state

स्वतंत्रता दिवस विशेष: स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की वीरगाथा सुनाता रांची का शहीद स्थल - ईटीवी भारत स्पेशल

आज हम सब जिस खुली हवा में सांस ले रहे हैं, ये सांसें देन हैं हमारे उन स्वतंत्रता सैनानियों की, जिन्होंने हंसते-हंसते आजादी की लड़ाई में मौत को अपने गले लगाया था. आज देश अपनी आजादी का 73वां वर्षगांठ मनाने जा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि इन 73 वर्षों के लिए आजादी के उन वीर सपूतों को याद किया जाए, जिनकी बदौलत हमने लोगों द्वारा चुनी लोगों की सरकार बनाने में सफलता पाई है.

पांडे गणपत राय, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव हुए थे शहीद

By

Published : Aug 14, 2019, 10:17 PM IST

रांची:आजादी की लड़ाई में वर्तमान का ऐसा कोई प्रांत नहीं होगा जिसने अपनी भागीदारी नहीं निभाई हो लेकिन झारखंड की धरती ने ऐसे अनेक वीर सपूतों को जन्म देकर वर्तमान पीढ़ी के लिए भी एक नई इबारत लिखी है. यहां की प्राकृतिक भूमि ने अनेकानेक स्वतंत्रता सेनानियों को जन्म दिया है. यहां के लोग जितना अपनी प्रकृति से प्रेम करते हैं, उसी प्रेम का परियच उन्होंने मातृभूमि के लिए भी दिया. बांसुरी, मांदर-नगाड़े के धुन पर झुमने वाले यहां के निवासी अंग्रेजों से लोहा लेने में कभी पीछे नहीं हटे.

देखें यह सपेशल स्टोरी

पांडे गणपत राय, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव हुए थे शहीद
सन 1857 की क्रांति के दौरान पांडे गणपत राय, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने अंग्रेजों से लोहा लिया था. इनके साथ ही सैकड़ों गुमनाम वीर इस धरती के लिए शहीद हुए हैं.

रांचा का शहीद स्थल

वीरता की कहानी
उदयपुर पलानी और कुंडू परगना के स्वामी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने 1840 में जब पिता की मृत्यु के बाद राजसिंहासन संभाला तब से ही उन्हें अंग्रेजों का जुल्म हमेशा कचोटता रहता. इसी जुर्म से आहत ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने1855 ई. में विद्रोह का पहला बिगूल फूंका था और अपनी लड़ाई तब तक जारी रखी जब तक इस लड़ाई में खुद को आहुत नहीं कर दिया. इस लड़ाई में उनका बखुबी साथ निभाया था उनके कमांडर इन चीफ पांडे गणपत राय ने. अंग्रेजों ने विद्रोह भड़काने के जुर्म में ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को 16 अप्रैल1858 को फांसी पर चढ़ा दिया. इसके बाद 21 अप्रैल को पांडे गणपत राय को भी फांसी दी गई.

इसी कुंए में फेंका जाता था शहीदों का शव

शहीद स्थल की गाथा
वीरों के सम्मान में आज भी राजधानी रांची के शहीद चौक पर स्थित शहीद स्थल उनकी बलिदानी की कहानी दुनिया को सुना रहा है. असल में रांची के शहीद चौक पर स्थित कदम के पेड़ पर ही दोनों रणबांकुरों को फांसी पर चढ़ाया गया था. इतिहासकारों की मानें तो कोई भी स्चतंत्रता सेनानी जिन्हें अंग्रेज रांची के जेल में रखते थे, उन्हें इसी कदम के पेड़ पर फांसी पर लटकाया जाता था. यह पेड़ सैंकड़ों गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की बलिदानी का भी गवाह रहा है. फांसी के बाद यहां स्थित कुएं में उन्हें फेंक दिया जाता था. यह कुआं आज भी उस मार्मिक क्षण की याद दिलाता है.

नेहरू ने इस जगह को शहीद स्मारक का दिया था दर्जा
देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निर्देश दिए जाने के बाद इस जगह को शहीद स्मारक स्थान घोषित किया गया था. राज्य सरकार ने इस जगह को सुंदरीकरण कर शहीद स्मारक बनाया और स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर यहां मुख्यमंत्री द्वारा झंडोत्तोलन किया जाता है .वाकई यह ऐतिहासिक धरोहर है जहां हमारे वीर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है. समय-समय पर इसे राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देने की मांग भी उठती रहती है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details