रांची: राजधानी रांची के अरगोड़ा चौक से कटहल मोड़ की ओर जाने वाले रास्ते में चंद कदम आगे बढ़ने पर दाहिनी ओर एक दुकान है. दुकान का नाम है- 'किसान बीज भंडार.' इस दुकान पर एक युवक आजकल उदास मन से बैठे रहते हैं. पूछने पर उन्होंने अपना नाम उमेश बताया. खेती बाड़ी के सीजन में उदासी का कारण पूछने पर उमेश बताते हैं कि दो वर्षों से उनके व्यवसाय की स्थिति ठीक नहीं है. पिछले वर्ष सुखाड़ में ज्यादातर खेत खाली रह गए और इस वर्ष भी कुछ वैसा ही हाल है. कीटनाशक एक्सपायर होने के साथ-साथ खाद और बीज की बिक्री भी नहीं के बराबर हो रही है. जब बिक्री ही नहीं होगी, तब घर परिवार कैसे चलेगा.
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उमेश झारखंड के अकेले बीज और खाद विक्रेता नहीं हैं, जिनके चेहरे की हंसी अन्नदाताओं की तरह ही गायब है. झारखंड में उमेश जैसे बीज खाद विक्रेताओं की संख्या हजारों में है, जो मानसून की बेरुखी की मार झेल रहे हैं. ये अपना दर्द किसानों से भी ज्यादा मानते हैं, क्योंकि किसानों को तो सरकार की ओर से मुआवजा या सहायता राशि मिल जाती है, लेकिन इन्हें सरकार की ओर से कुछ भी लाभ नहीं मिलता है. इन खाद और बीज विक्रेताओं के जीवन की गाड़ी इंद्रदेव की बारिश और खेतों की हरियाली पर निर्भर ही रहती है. वे भगवान से सिर्फ अच्छी बारिश की प्रार्थना ही कर सकते हैं.