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BAU के वैज्ञानिकों ने की नए नस्ल के सूअर की खोज, किसानों के लिए वरदान साबित होगा इसका व्यवसाय

झारखंड में सूअर पालन से जुड़े लोगों के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सूअर की नई देसी नस्ल की खोज की है, जिसका नाम पूर्णिया रखा गया है. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस नस्ल के सूअर झारखंड के किसानों के लिए वरदान साबित होगा. क्योंकि इसके भरण-पोषण पर खर्च कम होता है. इसमें रोगों से लड़ने की क्षमता काफी अधिक होती है, जिससे इसकी मांग ज्यादा होगी.

BAU के वैज्ञानिकों ने नए नस्ल के शूअर का किया खोज
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Published : Jul 22, 2020, 4:38 AM IST

Updated : Aug 15, 2020, 3:33 PM IST

रांची: कृषि के क्षेत्र में बेहतर करने के उद्देश्य से राजधानी में सूअर पालन व्यवसाय आज तेजी से बढ़ रहा है. यह व्यवसाय बहुत ही छोटे स्तर से शुरू किया जा सकता है. भारत जैसे देश में सूअर पालन एक विशेष वर्ग ही करते हैं, लेकिन अगर जब विदेश की बात करें तो यह बड़े पैमाने पर व्यवसाय का रूप ले चुका है. इधर, कुछ सालों में सूअर पालन को लेकर नवयुवकों में काफी रूचि देखी जा रही है.

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सूअर पालन का व्यवसाय

वैश्विक महामारी कोरोना काल में ज्यादातर लोग सूअर पालन को अपना व्यवसाय बना रहे हैं. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जगह-जगह लोग सूअर फॉर्म खोल कर इसका व्यवसाय कर रहे हैं. सूअर पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसमें पूंजी और समय कम लगता है, जबकि मुनाफा अधिक होता है, लेकिन सामाजिक प्रतिबंध, उचित नस्ल और समुचित पालन पोषण के अभाव के कारण लोग शायद इससे जुड़ नहीं पा रहे हैं.

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नई देसी नस्ल की सूअर की खोज

झारखंड में सूअर पालन से जुड़े लोगों के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सूअर की नई देसी नस्ल की खोज की है, जिसका नाम पूर्णिया रखा गया है. इस नस्ल को आईसीएआर राष्ट्रीय पशु अनुवांशिकी संस्थान ब्यूरो करनाल हरियाणा में पंजीकृत कर लिया गया है. यह नस्ल झारखंड के संताल परगना, बिहार के कटिहार और पूर्णिया समेत कई जिलों में पाया जाता है. देश में सूअर की कुल देसी प्रजाति 9 पंजीकृत थे, लेकिन इस देसी नस्ल की खोज हो जाने से देसी प्रजातियों की संख्या अब 10 हो गई है. देश में पहली बार झारखंड और बिहार राज्य के सूअर देसी प्रजाति का पंजीकरण हुआ है.

पूर्णिया सूअर में रोगों से लड़ने की क्षमता अधिक

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के सूअर शोध परीक्षेत्र इकाई के प्रभारी डॉ. रवींद्र कुमार ने बताया कि इस नस्ल को मुख्य रूप से ग्रामीण परिवेश में खुली विधि से एससी-एसटी द्वारा पालन किया जाता है. उन्होंने बताया कि इस नस्ल के सूअर झारखंड के किसानों के लिए वरदान साबित होगा. क्योंकि इस नस्ल के भरण-पोषण पर खर्च काफी कम होता है. यह प्रजाति काले रंग का होता है. इसकी लंबाई कम होती है और यह काफी मजबूत नस्ल माना जाता है. इसमें रोगों से लड़ने की क्षमता काफी अधिक होती है.

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सूअर पालन से अच्छा फायदा

डॉ. रवींद्र कुमार ने बताया कि इस नस्ल के सूअर 1 साल में शारीरिक वजन के हिसाब से 50 से 60 किलो का होता है और यह प्रजाति साल में दो बार बच्चे को जन्म देता है. एक सूअर किसान को साल में 8 से 10 हजार रुपये की आमदनी देता है. सूअर पालन से जुड़ने वाली महिला मधु देवी बताती हैं कि लॉकडाउन की वजह से घर की स्थिति काफी खराब हो गई है. ऐसे में महिला समूह से पता चला कि सूअर पालन में अच्छा फायदा हो सकता है. इसके बाद वह रांची बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में इससे जुड़ने के लिए पहुंची और यहां से सूअर के बच्चे लेकर जा रही हैं.

पूर्णिया सूअर की खोज

इस व्यवसाय से जुड़े रांची के ओरमांझी निवासी सुरेश उरांव ने बताया कि वह 60-70 सूअर शेड बना कर सूअर पालन कर रहे हैं और साल में 2 से 3 लाख रुपये का सूअर पालन से मुनाफा कमा लेते हैं. पहले वह सिर्फ इसका मांस बेचकर पैसे कमाते थे, लेकिन अब वह इसके बच्चे को भी बेच कर व्यवसाय करने की सोच रहे हैं. उनका कहना है कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने जो नए नस्ल पूर्णिया सूअर की खोज की है, उससे उम्मीद है कि और भी अच्छी आमदनी होगी.

पशुपालकों को सब्सिडी मुहैया

बता दें कि सूअर पालन कम पूंजी से शुरू किया जा सकता है. इसके पालन में लागत धन की राशि 9-12 महीने से वापस होना शुरू हो जाता है. सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग इस व्यवसाय से जुड़कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. सूअर पालन से जुड़ने के लिए सरकार पशुपालकों को सब्सिडी भी मुहैया कराती है.

Last Updated : Aug 15, 2020, 3:33 PM IST

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