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BAU में सादगी से मनाया गया सरहुल, आदिवासी समाज का अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर - मुख्य अतिथि कुलपति डॉ ओएन सिंह

राजधानी रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में सरना धर्मावलंबियों की ओर से सादगी के साथ सरहुल पर्व मनाया गया. कुलपति डॉ ओएन सिंह ने सरना स्थल पर नए सरना झंडे को स्थापित किया. स्थानीय पाहन ने पारंपरिक रीति-रिवाज और विधि-विधान से आराध्या देवी धरती माता, ग्राम देवता और सरना की पूजा की.

Sarhul festival celebrated with simplicity in BAU
BAU में सादगी से मनाया गया सरहुल पर्व

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Published : Apr 15, 2021, 9:15 PM IST

रांची:बिरसा कृषि विश्वविद्यालय परिसर में स्थित सरना स्थल में गुरूवार को सरना धर्मावलंबियों की ओर से सादगी के साथ सरहुल पर्व का आयोजन किया गया. पूजा विधि के साथ कुलपति डॉ ओएन सिंह ने सरना स्थल पर नए सरना झंडा को स्थापित किया. स्थानीय पाहन ने पारंपरिक रीति-रिवाज और विधि-विधान से आराध्या देवी धरती माता, ग्राम देवता और सरना की पूजा की. मौके पर पाहन ने कुलपति, विवि के डीन, डायरेक्टर, साइंटिस्ट और सरना धर्मावलंबियों के बीच फूलखोंसी का रस्म पूरा किया.

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नए साल के शुरूआत का प्रतीक
मुख्य अतिथि कुलपति डॉ ओएन सिंह ने मौजूद रहे. उन्होंने सभी सरना धर्मावलंबियों को सरहुल पर्व की शुभकामनाएं और बधाई दी. आदिवासी समाज प्रकृति से प्रेम एवं पूजा करते हैं. यह पर्व नए साल के शुरूआत का भी प्रतीक है. यह पर्व आदिवासी समाज का अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है. विशिष्ट अतिथि डीन एग्रीकल्चर डॉ एमएस यादव ने इस पर्व को आगामी पूरे साल के मौसम का सटीक पूर्वानुमान का कृषि क्षेत्र में महत्त्व को बताया. सदियों से चली आ रही आदिवासी समाज की यह देशज तकनीक आज भी काफी प्रासंगिक है.

डायरेक्टर एक्सटेंशन एजुकेशन डॉ जगरनाथ उरांव ने कहा कि आदिवासी समाज आदि काल से प्रकृति के उपासक रहे हैं. जल, जंगल, जमीन, पहाड़, पर्वत, नदी, नाला, धरती, सूरज, आकाश और पाताल की सदियों से पूजा करते आ रहे हैं. स्वागत भाषण में डॉ बधनु उरांव ने सरहुल महापर्व को प्रकृति प्रेम, शांति, हरियाली, खुशहाली और समृद्धि का पावन अवसर बताया, धन्यवाद ज्ञापन डॉ आरपी मांझी ने दी. मौके पर दिनेश टोप्पो सहित सीमित संख्या में स्थानीय सरना धर्मावलंबी भी मौजूद थे.

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