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झारखंड में सजा दिलाने में घटी पुलिस की रफ्तार, आईजी ने की समीक्षा, नपेंगे लापरवाह अफसर - naxals in jharkhand

झारखंड में साक्ष्य और गवाहों के अभाव में लगातार बरी होते अपराधियों और नक्सलियों की संख्या पर सीआईडी आईजी ने चिंता जताई है. उन्होंने समीक्षा करते हुए लापरवाह अफसरों पर कार्रवाई करने के लिए सभी रेंज के डीआईजी को निर्देश दिया है.

review of investigation and prosecution unit
review of investigation and prosecution unit

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Published : May 26, 2023, 10:43 PM IST

रांची: झारखंड पुलिस की अपराधियों को गिरफ्तार करने की रफ्तार तो ठीक है, पर गिरफ्तार अपराधियों को सजा दिलवाने में पुलिस की रफ्तार सुस्त पड़ती जा रही है. सीआईडी आईजी के द्वारा इंवेस्टिगेशन एंड प्रोसिक्यूशन यूनिट (सीपू) की समीक्षा के दौरान यह बातें सामने आई है.

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कई मामलों में सजा नहीं दिला पाई पुलिस: झारखंड के कई जिलों में हाल के दिनों में दर्जनों ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें साक्ष्य के अभाव में आरोपी बरी हो गए. खासकर, नक्सल कांडों के दर्जनभर आरोपी साक्ष्यों के अभाव में अदालत के द्वारा बरी कर दिए गए. मामले की गंभीरता को देखते हुए सीआईडी आईजी असीम विक्रांत मिंज अब उन मामलों की समीक्षा में जुट गए हैं, जिनमें साक्ष्य के अभाव में आरोपियों को बरी करना पड़ा.

जानकारी के अनुसार, राज्य पुलिस के सामने हाल में कई मामले सामने आए हैं, जब पुलिस महत्वपूर्ण कांड में आरोपियों को सजा नहीं दिला पायी है. राज्य पुलिस के अनुसंधान के स्तर को सुधारने को लेकर शुक्रवार को सीआईडी आईजी असीम विक्रांत मिंज ने सभी जिलों में स्पेशल इंवेस्टिगेशन एंड प्रोसिक्यूशन यूनिट (सीपू) के कामकाज की समीक्षा की. समीक्षा के दौरान यह पाया गया कि पुलिस के कई मामलों में सजा दिला पाने के अनुपात में केस में बरी होने का अनुपात बढ़ा है. ऐसे में सीपू की बैठक में सभी रेंज के डीआईजी को निर्देश दिया गया है कि वह कोर्ट में चल रहे मामलों की मॉनिटरिंग करें. जिन मामलों में पुलिस कर्मियों या गवाहों के पलटने के कारण आरोपियों को सजा नहीं मिल पाती, उन मामलों में पुलिसकर्मियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई करें.

आपराधिक मामलों में अपील में जाए पुलिस: सीपू की बैठक के दौरान रेंज डीआईजी को सीआईडी आईजी ने कहा जिन मामलों में निचली अदालत में पुलिस आपराधियों को सजा नहीं दिला पाती, उन मामलों में पुलिस स्वयं ऊपरी अदालत में अपील में जाए. वहीं संगठित आपराधिक गिरोह का कोई सदस्य किसी केस में बरी होता है तो उसके खिलाफ डोजियर खोला जाए, ताकि जेल से छूटने के बाद भी उसकी गतिविधियों की मॉनिटरिंग हो सके. वहीं सभी डीआईजी को निर्देश दिया गया है कि प्रमुख मामलों के ट्रायल पर वह खुद नजर रखें.

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