रांची:सभी जानते हैं कि लंबी लड़ाई के बाद बिहार के दक्षिणी हिस्से को अलग कर 15 नवंबर 2000 के दिन झारखंड को राज्य के रुप में पहचान मिली थी. बाद के दिनों में आंदोलनकारियों को पेंशन और सुविधाओं के लिए अलग से आंदोलनकारी चिन्हितिकरण आयोग बना. इसका लाभ बड़ी संख्या में आंदोलनकारी उठा रहे हैं.
हालांकि अभी भी चिन्हितिकरण के तौर तरीके पर सवाल उठते रहे हैं. इस बीच राज्य सरकार ने आंदोलनकारियों के आश्रितों को थर्ड और फोर्थ ग्रेड की सरकारी नौकरी में 5 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने का फैसला लिया है. इसके लिए आज झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 को बहुमत के साथ पारित कराया गया.
आंदोलनकारी परिवार को एक बार मिलेगा लाभ:विधेयक में इस बात का स्पष्ट रुप से जिक्र किया गया है कि यह लाभ आंदोलनकारी परिवार को सिर्फ एक ही बार मिलेगा. इसके लिए झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (एससी, एसटी, पिछड़े वर्गों के लिए) अधिनियम, 2001 की धारा 4(2)(क) में संशोधन किया गया है. खास बात है कि 25 फरवरी 2021 को कैबिनेट की बैठक में फैसला लिया था कि पुलिस फायरिंग या कारा में मृत या 40 प्रतिशत तक दिव्यांग हुए आंदोलनकारी के आश्रित परिवार के एक सदस्य को निर्धारित शैक्षणिक अहर्ता के अनुरूप राज्य सरकार के थर्ड और फोर्थ ग्रेड में सीधी नियुक्ति होगी. इसके अलावा एक आश्रित को 5 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जाएगा. लेकिन विधेयक में संशोधन नहीं होने की वजह से यह लाभ नहीं मिल पा रहा था.
संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान आजसू विधायक लंबोदर महतो ने कहा कि आंदोलनकारियों की पहचान के लिए जेल जाने की बाध्यता को खत्म किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस बाबत अप्रैल 2021 में ही गृह, कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से संकल्प पारित किया गया था लेकिन इतने महीनों तक सरकार कहां सो रही थी. भाजपा के विधायकों ने कहा कि आंदोलन के वक्त वनांचल शब्द भी जुड़ा था, जिसे हटा दिया गया. ऐसा नहीं होना चाहिए था.