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रांचीः कोरोना ने बढ़ाई अपनों के बीच दूरी, दाह संस्कार के लिए नहीं आ रहे परिजन - रांची में प्रशासन कोरोना मरीजों का दाह संस्कार करा रही

रांची में कोरोना मरीज की मौत होने पर उसके अंतिम संस्कार के लिए उनके परिजन दाह संस्कार करने में आनाकानी कर रहे हैं. ऐसे में जिला प्रशासन धर्म के अनुसार शवों का अंतिम संस्कार करवा रहा है.

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दाह संस्कार.

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Published : Aug 1, 2020, 6:04 AM IST

रांचीःझारखंड में कोरोना वायरस ने आम लोगों के जनजीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है. जिसके कारण न सिर्फ रोजगार पर इसका प्रभाव पड़ा है, बल्कि इसकी वजह से अपनों के बीच दूरियां भी बढ़ने लगी हैं. जैसे ही कोई इस वायरस की चपेट में आता है तो आस-पास के लोग नैतिक समर्थन देने के बजाए मुंह चुराने लगते हैं. पड़ोसियों की बात छोड़िए अब तो ऐसी स्थिति बनती जा रही है कि कोरोना मरीज की मौत होने पर ब्लड रिलेशन वाले भी दाह संस्कार करने में आनाकानी करने लगे हैं. अब सवाल है कि विपदा की इस घड़ी में क्या कोई सामाजिक संगठन सहयोग कर रहा है या फिर पूरी व्यवस्था जिला प्रशासन के भरोसे है.

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लोगों ने अपनों के शव को लेने से किया इंकार
सभी जानते हैं कि सामूहिक भागीदारी के बगैर कोरोना को हराना मुश्किल है, लेकिन अफसोस कि इस कसौटी पर हमारा समाज पिछड़ता जा रहा है. कोरोना संक्रमित मरीज की मौत होने पर यह बात सामने लगी है. झारखंड में 29 जुलाई तक सौ मरीजों की मौत इस वायरस की वजह से हो चुकी है. मौत के बाद धर्म के हिसाब से शवों का अंतिम संस्कार प्रशासन की देख-रेख में कराया जाता है, लेकिन कई ऐसे मामले आए है जब खून के रिश्ते तार-तार हो गए हैं. कई मौकों पर लोगों ने अपनों का शव लेने से इंकार कर दिया. इसे ध्यान में रखते हुए परिजनों से एक फॉर्म पर हस्ताक्षर ले लिया जाता है कि मृतक का अंतिम संस्कार प्रशासन कर सकता है.

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सामाजिक संगठनों की भूमिका
राजधानी रांची में धर्म के अनुसार शवों के अंतिम संस्कार के लिए तीन जगह चिंहित किए गए हैं. हिंदुओं के लिए हरमू स्थित मुक्तिधाम, मुस्लिमों के लिए डोरंडा कब्रिस्तान और इसाईयों के लिए कांटाटोली स्थित कब्रिस्तान है. सेवाभाव के रूप में मारवाड़ी सहायक संघ ने मुक्तिधाम में व्यवस्था की है. यहां शवों को गैस संचालित शवदाहगृह में जलाया जाता है. इसके लिए संघ की तरह से एक व्यक्ति तैनात रहता है. हालांकि, मुक्तिधाम में एक दिन में अधिकतम चार शवों को ही जलाया जा रहा है. इससे ज्यादा मामला आने पर शव जलाने वाला हाथ खड़े देता है. इसकी वजह से कई बार ऐसा हुआ कि शवों को दोबारा मोर्चरी में ले जाकर रखना पड़ता है. ऐसी स्थिति में परिजन परेशान हो जाते हैं और अपनी तरफ से प्रशासन को शव जलाने का डिक्लेशन देकर चले जाते हैं.

प्रशासन के लिए अंतिम संस्कार बड़ी चुनौती
विपदा की इस घड़ी में प्रशासन की जिम्मेदारी और जवाबदेही बढ़ती जा रही है. मुक्तिधाम और कब्रिस्तान में मुक्कमल व्यवस्था नहीं होने के कारण शवों का अंतिम संस्कार कराने में कई तरह की दिक्कतें आ रही हैं. आलम यह है कि 29 जुलाई को रांची के रिम्स में पांच, मेडिका अस्पताल में पांच और अन्य अस्पतालों में तीन शव पड़े थे, जिन्हें या तो जलाना था या दफनाना था. इस बीच हरमू मुक्ति धाम के गैस शवदाहगृह में तकनीकी खराबी के कारण 27 जुलाई से शवदाह की प्रक्रिया प्रभावित थी, जिसे 30 जुलाई को दुरूस्त कर लिया गया है और शवदाह की प्रक्रिया शुरू हो गई है. खास बात है कि जिलास्तर पर मजिस्ट्रेट होने के नाते शवों के अंतिम संस्कार को सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी अंचलाधिकारी पर होती है, लेकिन समय के साथ मृतकों की बढ़ती संख्या परेशानी का कारण बनती जा रही है.

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