झारखंड में सियासी उथल-पुथल, किस करवट बैठेगा ऊंट, जनता है कंफ्यूज
झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता (Political crisis in Jharkhand) बनी हुई है. इस बीच झारखंड की सत्ता को लेकर शह और मात का खेल चल रहा है. राजनीतिक एजेंसी, कोर्ट, राजभवन और पक्ष-विपक्ष चर्चा में हैं. इस बीच जनता कंफ्यूज है कि आखिर झारखंड की राजनीति में चल क्या रहा है.
रांची: झारखंड को जल, जंगल, जमीन और खनिज संसाधनों के साथ-साथ राजनीतिक अस्थिरता (Political crisis in Jharkhand) के लिए भी जाना जाता है. राज्य गठन के बाद एक स्थायी सरकार चुनने के लिए इस राज्य को 14 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा. लेकिन साल 2019 के चुनाव के बाद फिर इस राज्य पर राजनीतिक अस्थिरता के काले बादल मंडरा रहे हैं. साल 2020 और 2021 तो कोरोना से लड़ते हुए बीत गया. जब साल 2022 आया तो लगा कि सबकुछ सामान्य हो जाएगा. विकास को रफ्तार मिलेगी. लेकिन इसी बीच यह राज्य शेल कंपनी और ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के जाल में उलझ गया. मनरेगा घोटाले को लेकर ईडी की भी एंट्री हो गई. पिछले कुछ माह के भीतर इस राज्य में इतने उतार चढ़ाव देखने को मिले हैं कि आम जनता कंफ्यूज हो गयी है. सत्ता पक्ष आरोप लगा रहा है कि भाजपा के लोग सरकार को अस्थिर करने पर तुले हुए हैं. वहीं, भाजपा उल्टा चोर कोतवाल को डांटे का मुहावरा दोहरा रही है.
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नतीजा यह है कि झारखंड की राजनीति एजेंसी, कोर्ट, कारोबारी, वकील, नेता, राजभवन और चुनाव आयोग के ईर्द गिर्द घूम रही रही है. समय के साथ मामला उलझता जा रहा है. इसकी शुरूआत मई माह में मनरेगा में हुए मनी लॉड्रिंग मामले में ईडी की छापेमारी से हुई थी. आईएएस पूजा सिंघल के सीए सुमन कुमार के घर से करोड़ो रूपए जब्त होने के बाद ईडी ने अपने जांच को साहिबगंज में हुए अवैध खनन की ओर मोड़कर बता दिया कि झारखंड में किस कदर भ्रष्टाचार हावी है. इसी का नतीजा है कि अवैध खनन मामले में पंकज मिश्रा, बच्चू यादव और प्रेम प्रकाश सलाखों के पीछे जा चुके हैं.
एक तरफ ईडी की कार्रवाई चल रही है तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री से जुड़ा शेल कंपनी और ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में है. लेकिन दोनों पीआईएल के याचिकाकर्ता शिवशंकर शर्मा के अधिवक्ता राजीव कुमार के 50 लाख रूपए के साथ कोलकाता में गिरफ्तारी के बाद मामला और पेंचीदा हो गया है. जिस कारोबारी अमित अग्रवाल की शिकायत पर राजीव कुमार की गिरफ्तारी हुई है, उन्हें ईडी ने यह कहते हुए गिरफ्तार किया है कि अमित अग्रवाल ने साजिश के तहत अधिवक्ता राजीव कुमार को फंसाया है. ईडी ने अमित अग्रवाल को रिमांड पर लेने के लिए जो तथ्य पीएमएलए कोर्ट में पेश किये हैं, उसे भी समझना होगा.
ईडी का दावा है कि खुद अमित अग्रवाल ने सोनू अग्रवाल के जरिए अधिवक्ता राजीव कुमार से संपर्क साधा था. लेकिन कोलकाता पुलिस में दर्ज शिकायत में अमित अग्रवाल ने झूठ बोला है कि पीआईएल मैनेज करने के लिए अधिवक्ता ने उनसे संपर्क किया था. अमित अग्रवाल की शिकायत में दर्ज है कि अधिवक्ता ने शेल कंपनी से जुड़े पीआईएल संख्या 4290/2021 से उनका और उनकी कंपनी का नाम हटाने के लिए सरकारी अफसर, कोर्ट अफसर और जजों को मोटी रकम देने की मांग की थी. लेकिन पूछताछ में अमित अग्रवाल किसी का भी नाम नहीं ले पाए. ईडी का यह भी दावा है कि कोलकाता पुलिस ने बिना पड़ताल किए अमित अग्रवाल के पक्ष में पीसी एक्ट की धाराएं लगाकर अधिवक्ता राजीव कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लिया.
ईडी ने कोर्ट को बताया कि अमित अग्रवाल को अंदेशा था कि पीआईएल संख्या 4290/2021 की सुनवाई के दौरान झारखंड हाई कोर्ट कभी भी उनकी कंपनी के जरिए हुए मनी लांड्रिंग की जांच का आदेश दे सकता था. इसलिए अपने एफआईआर में सरकारी अफसर, कोर्ट अफसर और जजों को मैनेज करने का जिक्र किया ताकि झारखंड हाई कोर्ट इस पीआईएल को साजिश बताते हुए खारिज कर दे. इसी मकसद से अमित अग्रवाल ने अपने बैंक खाते से 60 लाख रू. निकाले और अधिवक्ता राजीव कुमार को ट्रैप करने के लिए 50 लाख रू. दिये. इसलिए इस मामले में अमित अग्रवाल के साथ-साथ राजीव कुमार भी कानूनी रूप से सजा के दायरे में आते हैं. ईडी ने कहा है कि एक हजार करोड़ से ज्यादा के हुए अवैध माइनिंग में अमित अग्रवाल की भागीदारी के भी साक्ष्य मिले हैं. इनकी कंपनी के जरिए मनी लाउंड्रिंग हुई है. ईडी अब अमित अग्रवाल से पूछताछ कर रही है. वह जानना चाह रही है कि इस पूरे साजिश में और कौन-कौन शामिल है. ईडी अब पीएमएलए, 2002 के सेक्शन 3,4, 9(1) और सीआरपीसी के सेक्शन 65 के तहत कार्रवाई कर रही है.
दूसरी तरफ झारखंड की राजनीति शतरंज के घोड़े की तरह ढाई घर छलांग लगा रही है. शह और मात के खेल में सरकार गिराने की साजिश के तहत तीन कांग्रेसी विधायक साढ़े तीन माह से कोलकाता में फंसे हुए हैं. उन सभी पर स्पीकर के ट्रिब्यूनल में दलबदल का भी मामला चल रहा है. सीएम से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में चुनाव आयोग के मंतव्य पर राजभवन की चुप्पी से उलझन बढ़ती जा रही है. सत्ताधारी दल के विधायक लतरातू से रायपुर की सैर कर चुके हैं. सदन में विश्वास मत हासिल कर सरकार अपनी ताकत दिखा चुकी है. ऊपर से ओल्ड पेंशन स्कीम, 1932 खतियान आधारित स्थानीयता और ओबीसी आरक्षण में इजाफे की प्रक्रिया शुरू कर सरकार ने बड़ा राजनीतिक दांव खेल दिया है. लेकिन इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि आखिर झारखंड में क्या होने वाला है.