रांची:देश भर में आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ गया है. हाल ही में राजस्थान के सिरोही में अपनी मां के साथ सो रहे नवजात को आवारा कुत्तों ने अपना निवाला बना लिया. चिंता की बात ये है कि आवारा कुत्तों ने अस्पताल के वार्ड बच्चे को उठा लिया था. पिछले माह फरवरी में भी मध्यप्रदेश के सिंगरौली जिले में अस्पताल में आवारा कुत्तों ने एक व्यक्ति को घायल कर दिया था. ऐसे में झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स को लेकर भी झारखंड के लोग आशंकित हैं. यहां की कुव्यवस्था को देखकर डर स्वाभाविक भी है. वह भी तब जब यहां आने जाने वाले मरीज और डॉक्टरों पर कई बार हमले हो चुके हैं. कोई बड़ी अनहोनी हो, उससे पहले चेतने की जरूरत है.
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परिसर में बढ़ रही आवारा कुत्ताें की संख्याःरिम्स अस्पताल के आसपास आवारा कुत्ते आए दिन घूमते दिख जाते हैं. कई बार ये कुत्ते अस्पताल परिसर तक पहुंच जाते हैं. इसे लेकर अस्पताल प्रबंधन समय-समय जिला प्रशासन और नगर निगम को सूचित करता रहा है. स्थिति में सुधार हुई हो, ऐसा नहीं है. अगर समय रहते इन आवारा कुत्तों पर नकेल नहीं कसा गया तो बड़ी घटना से इंकार नहीं किया जा सकता है. देशभर में आवारा कुत्तों के हमले से हो रही मौतों को लेकर यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर अस्पताल परिसर और आवासीय क्षेत्र में आवारा कुत्तों की संख्या कैसे बढ़ रही है. आखिर इन्हें रोकने व नियंत्रण की जिम्मेदारी किसकी है?
रिम्स के पोस्टमार्टम कक्ष में लगता जमावड़ाःरिम्स अस्पताल में पोस्टमार्टम कक्ष भी बनाए गए हैं. जहां पर मृत व्यक्ति के शव का परीक्षण होता है. जिस दौरान आवारा कुत्ते मृतकों के शव की गंध को सूंघकर आसपास भटकते रहते हैं. रिम्स अस्पताल के पोस्टमार्टम विभाग के चिकित्सक डॉ जयदीप चौधरी ने कुत्तों के जमावड़े का कारण बताया. उन्होंने कहा कि जब भी मृतकों के शरीर का पोस्टमार्टम होता है उस समय ध्यान देने की आवश्यकता है. उस दौरान डॉक्टरों के द्वारा और पोस्टमार्टम हाउस में काम करने वाले कर्मचारियों के द्वारा इस बात का विशेष ख्याल रखा जाता है कि आवारा कुत्ते के संपर्क में कोई शव ना आ सके. इसलिए पोस्टमार्टम हाउस से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ के निष्पादन को काफी ध्यान पूर्वक किया जाता है. डॉ जयदीप बताते हैं कि कुत्तों में सूंघने की क्षमता सबसे ज्यादा होती है. इससे मृतकों के शरीर से निकलने वाले गंध को वह महसूस कर पोस्टमार्टम हाउस के आसपास पहुंच जाते हैं. ऐसे में अस्पताल प्रबंधन की जिम्मेदारी बनती है कि आवारा कुत्तों पर नियंत्रण रखा जाए. खास करके पोस्टमार्टम हाउस के आसपास आवारा कुत्तों को ना भटकने दिया जाए.
अस्पताल में डॉग स्क्वायड की हो रही मांगःअस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ प्रभात कुमार और डॉ निशित इक्का ने भी अपनी राय रखी. कहा कि अस्पताल परिसर में डॉग स्क्वायड की टीम निरंतर निगरानी करनी होगी. समय-समय पर आवारा कुत्तों की पकड़ने वाली टीम को अस्पताल भेजनी पड़ेगी. अगर ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में रिम्स अस्पताल में भी आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ती जाएगी. कहीं मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसी घटना रिम्स में घटित न हो, इस बात की ओर ध्यान देना होगा. इसका दुहराव कहीं रिम्स में न हो जाए.
मीट-मछली की दुकानें कुत्तों के आने की बड़ी वजह:रिम्स प्रबंधन के जनसंपर्क अधिकारी डॉ राजीव रंजन बताते हैं कि आवारा कुत्तों को अस्पताल परिसर से हटाने के लिए समय-समय पर नगर निगम और जिला प्रशासन के लोगों को सूचित किया जाता है. उनके तरफ से भी डॉग स्क्वायड की टीम अस्पताल परिसर में घूमकर निगरानी करती है, लेकिन इसके बावजूद अस्पताल के आवासीय परिसर और पोस्टमार्टम और किचन के पास आवारा कुत्तों की बड़ी संख्या अक्सर देखने को मिलती है. वहीं उन्होंने कहा कि अस्पताल के बाहर लगे मीट-मछली की दुकानों की वजह से भी अस्पताल परिसर में आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ रही है.
गर्मी के मौसम में जानवर हो जाते हैं आक्रमकःआवारा कुत्तों का आतंक सिर्फ रिम्स अस्पताल में ही नहीं बल्कि सदर और कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी देखने को मिलते हैं. पशु चिकित्सक आरके सिन्हा बताते हैं कि गर्मी के मौसम में जानवर थोड़े आक्रमक हो जाते हैं. ऐसे में जरूरत है कि आम लोग जानवरों के प्रति सहानुभूति रखें. ताकि जानवर आक्रामक ना हों और आम लोगों को परेशानी ना हो सके. वहीं कुत्तों के बढ़ते आतंक को देखते हुए बुधवार को बजट सत्र के दौरान सदन में भी विधायकों के द्वारा आवाज उठाया गया ताकि कुत्तों के आतंक से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त ना हो सके.