रांची:रामनवमी जुलूस निकालने की परंपरा काफी पुरानी है. 1929 में अपर बाजार महाबीर मंदिर से रामनवमी जुलूस निकलना प्रारंभ हुआ है. जुलूस का समापन निवारणपुर तपोवन मंदिर में ध्वजा रखकर समापन होता रहा है. रामनवमी जुलूस निकालने का यह श्रेय तपोवन मंदिर के तत्कालीन महंत रामशरण दास जी को जाता है. रांची सहित पूरे झारखंड में रामनवमी को लेकर तैयारियां जोरों पर है. 30 मार्च (गुरुवार) को रामनवमी के मौके पर भव्य जुलूस निकाला जायेगा.
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क्या है रामनवमी से जुड़ा इतिहास:रामभक्त हनुमान के प्राचीन तपोवन मंदिर का इतिहास रांची की रामनवमी से कई दशक पुराना है. तपोवन मंदिर के महंत ओम प्रकाश शरण कहते हैं कि यहां पहली बार 1929 में महावीरी झंडों की पूजा हुई थी. साथ ही शोभायात्रा और जुलूस निकाले गए थे. जुलूस महाबीर चौक के प्राचीन हनुमान मंदिर से तपोवन मंदिर ले जाया गया था. मंदिर के तत्कालीन महंत रामशरण दासजी ने जुलूस का स्वागत और विधि विधान के साथ महावीरी झंडे का पूजन किया था. उसी दिन से तपोवन मंदिर रांची रामनवमी से जुड़ गया. आज भी इस परंपरा को निभाया जाता है.
क्या है झारखंड की परंपरा: उत्तर से मध्य भारत में रामनवमी के दिन राम की पूजा अर्चना की जाती है. झारखंड में रामनवमी के दिन रामभक्त हनुमान की पूजा ही नहीं की जाती है. बल्कि कई जगहों पर विशाल महावीरी झंडों के साथ शोभायात्रा और जुलूस भी निकाले जाते हैं. शहर के विभिन्न हनुमान मंदिरों और अखाड़ों में सुबह पूजा अर्चना के बाद विशाल महावीरी पताकाओं के साथ जुलूस निकाले जाते हैं. ढोल नगाड़ों की गूंज के बीच विभिन्न अखाड़ों के जुलूस एक दूसरे से मिलते हुए विशाल शोभायात्रा के रूप में तपोवन मंदिर पहुंचते हैं.
एतिहासिक धर्मस्थल है तपोवन मंदिर:नाम के अनुरूप रांची के निवारणपुर स्थित तपोवन मंदिर तप से उपजा हुआ भूमि है जिसका इतिहास काफी पुराना है. जानकर आश्चर्य होगा कि जंगल, झाड़ के बीच कभी तपस्वियों के इस पावन स्थल को अंग्रेजों ने विरोध किया था. उसी ने इस स्थल पर भव्य मंदिर बनवाकर अपनी प्रायश्चित की थी. हालांकि श्री राम जानकी तपोवन मंदिर का निर्माण कब हुआ, यह आज तक रहस्य है. मंदिर के वर्तमान महंत ओम प्रकाश शरण की मानें तो मंदिर लगभग 375 साल पुराना है. नाम पर गौर किया जाए तो तपोवन मंदिर की भूमि पहले तप स्थली थी और चारों तरफ दूर दूर तक घना जंगल था.
अंग्रेज ने मंदिर बनाने का लिया संकल्प:ऋषि मुनि शांत वातावरण में यहां तपस्या करते थे. यहां के जीव जंतु भी किसी को हानि नहीं पहुंचाते थे. ऐसे ही एक ऋषि बंकटेश्वर दास महाराज जब वह तपस्या में लीन रहते थे, उनके आसपास जंगली जानवर बाघ, चीते, हिरण आदि तक बैठ जाते थे. एक दिन महंतजी जब तप में लीन थे, तो एक अंग्रेज अधिकारी ने उनके पास बैठे बाघ को गोली मार दी. महंत काफी दुखी हुए. उन्होंने उस अधिकारी से कहा कि यह तप भूमि है. आखेट यहां नहीं किया जाता है. अपनी गलती मान कर अंग्रेज अधिकारी ने उनसे माफी मांगी और प्रायश्चित का मार्ग पूछा. महंतजी ने कहा कि यहां एक मंदिर बनवा दें, पाप का प्रायश्चित निश्चित है. झारखंड में ख्यातिप्राप्त प्राचीन बैजनाथ धाम में ज्योतिर्लिंग को देखते हुए उस अंग्रेज अधिकारी ने यहां भगवान शंकर का मंदिर बनाने का संकल्प लिया. मंदिर बनाने के लिए जब यहां खुदाई शुरू हुई तो महंत बंकटेश्वर दासजी महाराज को सपने में भगवान राम दिखाई दिए और उन्होंने कहा कि मंदिर स्थल के पास ही वह भूमिगत हैं. उन्हें बाहर निकाला जाए. महंत बंकटेश्वर दासजी ने अपने सपने के बारे में अंग्रेज अधिकारी को बताया तो बताई गई जगह पर खुदाई कराने पर वहां से राम जानकी की मूर्तियां निकली. दोनों मूर्तियों को यहां स्थापित कर दिया गया. बाद में जयपुर से लक्ष्मण की मूर्ति मंगवाकर साथ में रखी गई. दोनों मूर्तियों में काफी अंतर है.
ढाई एकड़ में फैला है तपोवन मंदिर:नदी के किनारे मनोरम स्थल तपोवन का क्षेत्र करीब ढाई एकड़ में फैला है. बाद में यहां भगवान शंकर के अलावा भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा का मंदिर बनवाया गया. रामभक्त हनुमान और बटेश्वर नाथ का मंदिर बनवाया गया. उसके बाद यहां विष्णु, कृष्ण के विराट स्वरूप, माता दुर्गा, शिव और गौरी गणेश, भगवान वामन, लक्ष्मी नारायण, राधाकृष्ण नरसिंह भगवान और बनवासी राम लक्ष्मण और माता शबरी के मंदिर भी बने. मंदिर परिसर में दो समाधियां एक महंत बंकटेश्वर दास की जिसे 1905 में बनवाया गया और दूसरी महंत राम शरण दास की है. जिसे 1945 में बनवाया गया. 1929 में महंत राम शरण दासजी के कारण ही तपोवन मंदिर रामनवमी जुलूस से जुड़ा.
महंत के आदेशानुसार ही होता था हर काम: यहां के महंत का चयन अयोध्या के श्रीराम मंदिर से होता है. अयोध्या के कनक भवन के लाल साहब के दरबार में महंत की नियुक्ति की जाती है. अयोध्या से सीधा संपर्क होने के कारण महंत जीवन शरणजी के आदेशानुसार ही यहां हर काम होता था और वर्तमान में अभी भी यह परंपरा चल रहा है. महंत वहीं चुना जाता है जो भगवान श्री लाल साहब दरबार का पुजारी होता है. और आजीवन ब्रह्मचारी रहते हैं. अबतक यहां महंत श्री सीता शरणजी महाराज, महंत श्री रामदास टाटम्बरीजी महाराज, महंत श्री बंकटेश्वर दासजी महाराज, महंत श्री राम दासजी महाराज, महंत श्री जानकी जीवन शरणजी महाराज, महंत श्री राम शरण दासजी महाराज, महंत जानकी शरण दासजी महाराज मंदिर को अपनी सेवाएं दे चुके हैं. इन सब ने 100 वर्ष से अधिक उम्र में समाधि ली. यहां का विरक्त वैष्णव परंपरा जो आज भी बरकरार है. इन सबों का सेवक वर्तमान महंत ओमप्रकाश शरण हैं.
अयोध्या शैली पर होता है भगवान का श्रृंगार:तपोवन मंदिर की एक खासियत यह है कि यहां भगवान का पहनावा और श्रृंगारअयोध्या शैली पर होता है. वहां के राम मंदिर की तरह ही पूजापाठ के नियम हैं. रामनवमी के एक महीने पहले ही यहां तैयारियां शुरू हो जाती हैं. मंदिर की साफ सफाई और रंग रोगन के अलावा मूर्तियों का श्रृंगारभी किया जाता है. राम नवमी के दिन सुबह पूजा-पाठ से पहले पूरे मंदिर को धोया जाता है. सुबह 6 बजे भगवान राम की आरती होती है और भगवान का प्रसाद भोग चढ़ना शुरू हो जाता है. जो सुबह 3:00 बजे से ही भक्तों की कतार लगने लग जाती है. भगवान के जन्म के समय दोपहर 12 बजे महा आरती होती है. ढोल और नगाड़ो की गूंज के बीच भगवान का जन्मोत्सव मनाया जाता है.
आज भी पुराने झंडे से होती है पूजा:पहली बार यहां एक ही झंडा आया था, जबकि आज इनकी संख्या हजारों में पहुंच गई है. लेकिन पूजा आज भी एक ही उसी पुराने झंडे की होती है. जिसे पहले महंत श्री रामशरण दासजी पूजा करते थे. अब वर्तमान महंत श्री ओमप्रकाश शरणजी पूजा कर रहे है. मंदिर परिसर में कुएं के निकट विधि विधान के साथ पूजन और आरती उतारने के साथ भोग लगाया जाता है. शेष झंडों को सिंहद्वार पर माथा टेकाया जाता है और उनको मंदिर के प्रधान पुजारी राम विलास दास द्वारा टीका लगाया जाता है. रांची के उत्तरी अंचल और दक्षिण अंचल से आए झंडों का यहां मिलन होता है. राम और हनुमान के गगनभेदी जयकारों से तपोवन छोटी अयोध्या का रूप धारण कर लेता है. रामनवमी जुलूस के छह दिन बाद यहां भगवान राम की छठी मनाई जाती है और भंडारा होता है.