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दारुल उलूम के इंग्लिश को लेकर फरमान पर मुस्लिम समाज ने दी राय, कोई समर्थन में उतरा तो किसी ने जताया विरोध

देवबंद के दारुल उलूम संस्थान के द्वारा इंग्लिश को लेकर जारी फतवे पर बयानबाजी और लोगों की राय सामने आ रही है. रांची के मुस्लिम समाज के लोगों ने भी इस बारे में अपनी-अपनी राय दी है. किसी ने फतवे को सही बताया है, तो किसी ने इस पर सवाल खड़े किए हैं.

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Published : Jun 17, 2023, 9:55 AM IST

notice issued by Darul Uloom
notice issued by Darul Uloom

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रांची: देश के सबसे बड़े इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद में अंग्रजी की पढ़ाई पर रोक लगाने का आदेश जारी किया गया है. इस आदेश के जारी होने के बाद दारुल उलूम देवबंद और उसमें पढ़ाई को लेकर पूरे देश में तरह तरह की चर्चा हो रही है. साथ ही कई सवाल भी उठ रहे हैं. इसे लेकर राजधानी के मुस्लिम समाज के कई लोगों ने इसे राजनीति बताया तो कई लोगों ने दारुल उलूम संस्थान के प्रबंधक पर भी सवाल खड़े किए.

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'चर्चा का कोई आधार नहीं':राजधानी में मुस्लिम समाज के वरिष्ठ समाजसेवी मौलाना अशरफ मिस्बाही बताते हैं कि लोगों के बीच में जो दारुल उलूम को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ है. उसका कोई आधार नहीं है. उन्होंने कहा कि दारूल उलूम देश का सबसे बड़ा मदरसा है. वहां पर कोई फतवा जारी नहीं किया गया है, बल्कि सुझाव देते हुए कहा गया है कि जो लड़के आलिम और फाजिल बनने की पढ़ाई पढ़ते हैं, उन्हें पहले उर्दू का पूरा ज्ञान ले लेना चाहिए. उसके बाद ही दूसरे विषय की पढ़ाई करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि वह भी इस्लाम में धर्म गुरु के रूप में काम कर रहे हैं. इस्लाम धर्म में किसी भी भाषा को सीखने पर रोक नहीं है. इस्लाम धर्म में उर्दू भाषा को तवज्जो जरूर दी गई है लेकिन हिंदी, अंग्रेजी जैसी भाषाओं को सीखने पर कोई रोक नहीं है.

'लोगों को वास्तविकता की जानकारी होनी चाहिए':वहीं इकरा मस्जिद के सदर और मौलाना आजाद कॉलेज के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ अब्दुल्लाह कासमी बताते हैं कि वह भी देवबंद स्थित दारुल उलूम विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके हैं. उन्होंने कहा कि जिस तरह से पूरे देश में दारुल उलूम विश्वविद्यालय चर्चा का विषय बना हुआ है. ऐसे में यह जरूरी है कि लोगों को वास्तविकता की जानकारी होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि दारुल उलूम विश्वविद्यालय के शिक्षकों के हेड और सदर मुदुरिश मौलाना असद मदनी के द्वारा दारुल उलूम देवबंद के छात्रों के लिए सिर्फ एक नोटिस जारी हुआ है कि जो स्टूडेंट यहां तालीम हासिल कर रहे हैं, वह पढ़ाई के दौरान दूसरे विषय की पढ़ाई नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि यह नोटिस इसलिए जारी किया गया है ताकि देवबंद के मदरसा में जो छात्र उर्दू या अरबी पढ़ने जाते हैं, उन्हें उसका पूरा ज्ञान हो सके.

देवबंद के पूर्व छात्र मुफ्ती साबिद हुसैन बताते हैं कि वर्ष 2017 से 2023 तक उन्होंने देवबंद के दारुल उलूम मदरसा में ही शिक्षा प्राप्त की है. उन्होंने कहा कि हर विश्वविद्यालय का अपना एक नियम होता है, छात्रों को उसी नियम की याद दिलायी गयी है. जिस तरह से पूरे देश में यह नोटिस चर्चा का विषय बना हुआ है, वह कहीं से भी जायज नहीं है. देवबंद का दारुल उलूम एक इस्लामिक संस्थान है. ऐसे में यह जरूरी है कि यहां पर पढ़ने वाले सभी छात्रों को उर्दू और अरबी का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए. उन्होंने बताया कि कई बार छात्र उर्दू पढ़ने के समय में भी अन्य विषयों का अध्ययन करते हैं, जिससे दारुल उलूम विश्वविद्यालय और संस्था में जाने का उद्देश्य कमजोर हो जाता है. इसीलिए देश के सबसे बड़े इस्लामिक संस्थान दारुल उलूम में पढ़ने वाले छात्रों को उर्दू और अरबी भाषा की पढ़ाई करने के दौरान अन्य विषयों की पढ़ाई पर रोक लगाई गई है.

'इस तरह का फतवा जारी करना गलत':वहीं राजधानी के हिंदपीढ़ी निवासी हसीरुल इस्लाम बताते हैं कि यदि देश के सबसे बड़े इस्लामिक संस्थान के द्वारा इस तरह का फतवा जारी किया गया है तो यह निश्चित रूप से गलत है. क्योंकि किसी भी धर्म के लोगों को किसी भी शिक्षा और भाषा को जानने का अधिकार है.

कर्बला चौक के निवासी जॉनी और मोहम्मद इस्लाम दारुल उलूम के फतवे को सही बताते हैं. वे कहते हैं कि आज मुस्लिम समाज के लोग अंग्रेजी, हिंदी सहित अन्य भाषाओं का ज्ञान रखते हैं. डिग्रियां लेकर नौकरी करते हैं, लेकिन मुस्लिम समाज की सबसे महत्वपूर्ण भाषा उर्दू की जानकारी उन्हें नहीं होती है, जो कहीं ना कहीं दुखद है. इसलिए दारुल उलूम संस्थान के आदेश को वह सही मानते हैं.

कारोबारी सैयद हसन बताते हैं कि जो फतवा जारी किया गया है उसे लोगों के सामने गलत तरीके से पेश किया जा रहा है. दारुल उलूम संस्थान देश का ही नहीं बल्कि एशिया का एक सम्मानित संस्थान है. यदि वहां के प्रबंधकों के द्वारा उर्दू को बढ़ावा देने के लिए कोई फतवा जारी किया गया है तो छात्रों को अवश्य ध्यान देना चाहिए. उन्होंने बताया कि दारुल उलूम में अन्य विषयों की पढ़ाई पर भी कोई रोक नहीं है लेकिन इस्लामिक संस्था होने के कारण उर्दू की पढ़ाई अनिवार्य है, जो होनी भी चाहिए.

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दारुल उलूम ने जारी किया था फतवा:गौरतलब है कि पिछले दिनों दारुल उलूम संस्थान के शिक्षा पदाधिकारी मौलाना हुसैन हरिद्वारी ने देवबंद के दारुल उलूम छात्रों के लिए नोटिस जारी कर यह फतवा जारी किया था कि उर्दू या अरबी की पढ़ाई के दौरान कोई भी छात्र अंग्रेजी या अन्य विषयों की पढ़ाई ना करें. यदि कोई छात्र उर्दू की पढ़ाई के दौरान अन्य विषयों की पढ़ाई करते देखे जाते हैं तो उन्हें कॉलेज से निष्कासित किए जाने की कार्रवाई की जाएगी.

मौलाना हुसैन हरिद्वारी के इस नोटिस के बाद पूरे देश में इसे लेकर चर्चा चल रही है. अब देखने वाली बात होगी कि देश के सबसे बड़े इस्लामिक संस्था दारुल उलूम में जारी किये गए फतवे पर उठ रहे सवाल का सिलसिला कब तक थमता है.

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