रांची:मेयर आशा लकड़ा और नगर आयुक्त के बीच विवाद का समाधान नहीं हो पा रहा है. दोनों में लंबे समय से आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है. इसी कड़ी में अब मेयर आशा लकड़ा ने राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर नगर आयुक्त की शिकायत की है. उन्होंने अपने पत्र में आयुक्त पर मनमानी करने और झारखंड नगरपालिका के प्रावधानों को दरकिनार कर विभिन्न योजनाओं को पारित करने के लिए दबाव बनाने की शिकायत की है.
उन्होंने मुख्य सचिव को पत्र के माध्यम से कहा कि रांची नगर निगम क्षेत्र में किसी भी योजना को धरातल पर उतारने के लिए स्थाई समिति और रांची नगर निगम परिषद से स्वीकृति लेना अनिवार्य है.
नियमों का उल्लंघन
स्थाई समिति और निगम परिषद की स्वीकृति के बाद ही संबंधित योजना का निष्पादन किया जा सकता है लेकिन नगर आयुक्त स्थाई समिति और निगम परिषद की स्वीकृति के बिना ही कई योजनाओं को प्रशासनिक और तकनीकी स्वीकृति प्रदान कर संबंधित योजनाओं का टेंडर कर रहे हैं. इसके अलावा नगर आयुक्त 15वें वित्त आयोग के तहत आवंटित राशि का दुरुपयोग कर रांची नगर निगम के चयनित जनप्रतिनिधियों के अधिकार का हनन कर रहे हैं.
जनप्रतिधियों की भूमिका पर उठ रहे सवाल
मेयर ने कहा कि नागरिक सुविधा मद की राशि मेयर, डिप्टी मेयर, नगर आयुक्त और सभी वार्ड पार्षदों के बीच निर्धारित अनुपात में आवंटित की जाती है. नगर आयुक्त सिर्फ अपने हिस्से की आवंटित राशि से ही नगर निगम क्षेत्र में किसी योजना को स्वीकृति प्रदान कर सकते हैं लेकिन इन दिनों वे 15 वें वित्त आयोग और नागरिक सुविधा मद की राशि पर अपना एकाधिकार करना चाहते हैं. ऐसी परिस्थिति में नगर आयुक्त ही रांची नगर निगम के 53 वार्डों के नीति निर्धारक हो जाएंगे, तो मेयर, डिप्टी मेयर समेत 53 वार्ड पार्षदों की भूमिका क्या होगी.
झारखंड नगरपालिका अधिनियम-2011 के तहत मेयर, डिप्टी मेयर और 53 वार्ड पार्षदों को भी नगर निगम क्षेत्र के विकास के लिए योजनाएं प्रस्तावित करने का अधिकार है. अगर नगर आयुक्त केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से आवंटित फंड पर अपनी मनमानी करेंगे तो चयनित जनप्रतिनिधि आम जनता की मांगों और विकास कार्यों को कैसे पूरा करेंगे.