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एक विधायक चुनने के लिए उपचुनाव भर नहीं है रामगढ़! जीत और हार के निकाले जायेंगे कई मायने

27 फरवरी को रामगढ़ में उपचुनाव होना है. इस चुनाव के परिणाम से भले ही सरकार को कोई खतरा नहीं है, लेकिन इसका परिणाम सरकार से लेकर हेमंत सोरेन तक की साख का सवाल जरूर है.

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Published : Jan 22, 2023, 12:35 PM IST

Updated : Jan 22, 2023, 12:52 PM IST

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रांची: झारखंड के रामगढ़ विधानसभा सीट पर 27 फरवरी को उपचुनाव होना है. सामान्य लोगों के लिए भले ही यह एक सामान्य चुनाव भर है जब रामगढ़ की जनता अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए 27 फरवरी को वोट करेगी. ऐसा सोचा भी जा सकता है क्योंकि इस एक सीट के जीत हार से हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार के सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा. लेकिन रामगढ़ उपचुनाव का महत्व इतना भर नहीं है कि गोला गोलीकांड में कांग्रेस की ममता देवी के सजायाफ्ता होने के बाद खाली हुई सीट को भरना है. इस चुनाव के नतीजे महागठबंधन और एनडीए दोनों के लिए काफी महत्वपूर्ण और भविष्य की राजनीति के दिशा और दशा तय करने वाले होंगे.

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हेमंत सोरेन की लोकप्रियता भी तय करेगा रामगढ़ उपचुनाव:कांग्रेस,राष्ट्रीय जनता दल और झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ 2019 के आम विधानसभा चुनाव से पहले के बने गठबंधन के मुखिया के रूप में हेमंत सोरेन ने पिछले दिनों फ्रंटफुट पर जाकर ताबड़तोड़ बैटिंग की है. 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति, ओबीसी आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% करने और अलग सरना धर्म कोड का प्रस्ताव विधानसभा से पास कराकर केंद्र के पास भेजकर हेमंत सोरेन ने जो राजनीति चाल चली है उसके बाद का यह उपचुनाव हो रहा है. ऐसे में उनके इस मास्टर स्ट्रोक को जनता का विश्वास हासिल है या नहीं इसका जनमत तय होगा. अगर कांग्रेस या फिर महागठबंधन के उम्मीदवार चुनाव में जीत हासिल करता है तो सत्ताधारी दल यह कहते नहीं थकेगी कि एक के बाद एक जितने भी फैसले हेमंत सोरेन सरकार ने लिए है उस पर जनता ने अपनी मुहर लगा दी है.

महागठबंधन के बीच राजनीतिक एकता का भी होगा पैमाना:रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव में उम्मीदवार कांग्रेस का होगा, यह तय है. ऐसे में कांग्रेस को झामुमो और राजद के खासकर ग्राउंड स्तर पर कार्यकर्ताओं का कितना साथ मिलता है इसका भी पैमाना होगा. अगर कांग्रेस-झामुमो और राजद के कार्यकर्ता पूरे समर्पण के साथ एकजुट हो गए तब तो ठीक है. अन्यथा इस बार 2019 वाली स्थिति बनती नहीं दिख रही है, जब अंतिम समय में आजसू और भाजपा के बीच गठबंधन टूट जाने की वजह भाजपा और आजसू दोनों ने उम्मीदवार दिए थे और वोट के बिखराव से भाजपा और आजसू दोनों की पराजय हो गयी थी. इस बार कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस के सामने भाजपा और आजसू का एकजुट उम्मीदवार होगा.

सहानुभूति वोट पर भरोसा:गोला गोलीकांड में सजायाफ्ता ममता देवी आंदोलन का नेतृत्व करते हुए अपने ऊपर मुकदमा झेला था, आरोप है कि उस समय की सरकार के इशारे पर यह सब हुआ था. निवर्तमान विधायक कुछ महीने पहले ही मां बनीं हैं. ऐसे में उनके गोद में नन्हा बच्चा होने और जनता के बीच यह मैसेज ले जाने में कांग्रेस के नेता सफल हुए कि रामगढ़ की जनता के लिए ममता देवी कष्ट झेल रही हैं. सजा काट रही हैं तो उसका असर भी चुनावी नतीजे पर पड़ेगा.
आजसू और भाजपा का मेल कितना गाढ़ा हुआ,यह भी बताएगा रामगढ़ उपचुनाव:रामगढ़ उपचुनाव में अगर NDA उम्मीदवार की जीत होती है, तो यह मैसेज जाएगा कि आजसू और भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच 2019 विधानसभा चुनाव के समय आया खटास समाप्त हो गया है. इसके बाद दोनों दलों में पहले की तरह यह स्वाभाविक गठबंधन मजबूती है. दोनों अगले चुनाव में राज्य में महागठबंधन को चुनौती देने को तैयार है.

Last Updated : Jan 22, 2023, 12:52 PM IST

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