रांचीः झारखंड में जिस तरीके से पिछले 24 घंटे के राजनीतिक घटनाक्रम रहे, उससे सियासी हलके में एक बात की चर्चा शुरू हो गई थी कि हेमंत सरकार अब बहुत दिन की मेहमान शायद न रहे. क्योंकि झारखंड में कांग्रेस की अनदेखी और जेएमएम कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन द्वारा सोनिया गांधी से बात के बाद भी झारखंड मुक्ति मोर्चा का उम्मीदवार ऐलान कर देने से दोनों राजनीतिक दलों के बीच खटास आ गई थी. हालांकि अभी यह बातें कहीं जा रहीं हैं कि दोनों राजनीतिक दलों के बीच कोई खटास नहीं है. लेकिन विभेद की जो राजनीति झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के बीच चल रही है उसमें बहुत कुछ पटना और बहुत कुछ छिपी राजनीति का वह हिस्सा है जो आने वाले समय में पता चलेगा.
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झारखंड की राजनीति को समझने वाले कई राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरीके से झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा की राजनीति चल रही है, उसमें अगर कांग्रेस कोई निर्णय लेती है तो झारखंड में उसकी स्थिति खराब हो सकती है. लेकिन जिस खराब स्थिति में झारखंड मुक्ति मोर्चा है, उसे समय के अनुसार जांचने का काम जरूर कांग्रेस करना चाहती है. ताकि समय पर सही राजनीति को दिशा दिया जा सके. बिहार झारखंड के राजनीतिक विश्लेषक विद्याधर राज का कहना है कि कांग्रेस के पास कई ऐसी वजह हैं जिसके कारण कांग्रेस झारखंड मुक्ति मोर्चा को इस मौके पर कोई अवसर नहीं देना चाहती कि कोई आरोप कांग्रेस पर इस बात का लगाया जाए कि कांग्रेस ने असमय ही झारखंड को एक चुनाव दे दिया या फिर सरकार को गिरा दिया और यहीं से कांग्रेस अपने लिए सियासी डगर भी खोज रही है जो मुद्दे कांग्रेस की नजर में हैं.
1. झारखंड मुक्ति मोर्चा की राजनीति अपने आप में उलझी हुई है, जिससे बाहर निकलने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा जद्दोजहद कर रही है.
2. झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता अपने में ही नाराज हैं, जिस नाराजगी को पाटने में हेमंत सोरेन को काफी मेहनत करनी पड़ रही है और यह भी झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए परेशानी का बड़ा कारण है.
3. घर में ही हेमंत सोरेन अपनों के बीच उलझे हुए हैं. चर्चा इस बात की भी जोरों से थी कि राज्यसभा चुनाव को लेकर हेमंत सोरेन के परिवार में ही लड़ाई हुई. क्योंकि घर के दो ऐसे सदस्यों के नाम पर चर्चा हो रही थी जो घर में ही नाराजगी की वजह बन गईं.
4. झारखंड में हेमंत सोरेन और उनसे जुड़े लोगों पर ईडी की कार्रवाई से हेमंत मुश्किल में हैं. लेकिन सरकार चला रहे हेमंत सोरेन को इस बात की जवाबदेही तो लेनी होगी कि क्यों उनके कार्यकाल में अधिकारी भ्रष्ट हैं.