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झारखंड में राज्यसभा चुनावों का विवादों से रहा है पुराना रिश्ता, टाले भी गए हैं चुनाव - झारखंड में दो सीटों पर राज्यसभा चुनाव

झारखंड में 2 सीटों के लिए होने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए सभी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है. झारखंड के खाली हुई दो राज्यसभा सीटों के लिए 19 जून को मतदान होना है. बीजेपी की तरफ से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उम्मीदवार हैं. वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन ने झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और कांग्रेस के शहजादा अनवर को मैदान में उतारा है. झारखंड में राज्यसभा चुनाव का इतिहास रहा है कि बिना 'हॉर्स ट्रेडिंग' की चर्चा के चुनाव संपन्न ही नहीं हुए हैं.

Rajya Sabha elections have been in controversy in Jharkhand
रास चुनाव की तैयारी

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Published : Jun 11, 2020, 4:24 PM IST

रांची: झारखंड में राज्यसभा इलेक्शन हो और 'कंट्रोवर्सी' न हो यह अजीबोगरीब होगा. राज्यसभा चुनाव के पुराने इतिहास को पलट कर देखें तो बिना 'हॉर्स ट्रेडिंग' की चर्चा के रास चुनाव संपन्न ही नहीं होते. साथ ही जबतक बात सीबीआई की जांच के दायरे में न आए और कोर्ट कचहरी की पेंचीदगी में न पड़े तबतक चुनाव की चर्चा अधूरी रहती है. झारखंड देश का पहला राज्य है जहां हॉर्स ट्रेडिंग के आरोपों की वजह से राष्ट्रपति को 2012 में राज्यसभा इलेक्शन टालना पड़ा था.

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झारखंड के खाली हुई दो राज्यसभा सीटों के लिए 19 जून को मतदान होना है. हैरत की बात यह है कि सूबे में राज्यसभा की महज 6 सीटें हैं और उन्हें चुनने के लिए अधिकतम 81 विधायक ही वोट डाल सकते हैं. बावजूद इसके झारखंड में होने वाले राज्यसभा इलेक्शन का विवादों से गहरा नाता रहा है. इस बार भी तस्वीर कुछ ऐसे ही बनती नजर आ रही है.


दो सीट के लिए हैं तीन उम्मीदवार

ऐसा कभी नहीं हुआ कि यहां चुनावों की नौबत नहीं आई ही. जब वोटों का समीकरण स्पष्ट है तब भी ऐसा नहीं हुआ है कि निर्विरोध रास सदस्यों का चुनाव हुए हो. इस बार भी तस्वीर कुछ ऐसी ही है. एक तरफ 28 विधायकों के समर्थन का दावा करने वाली बीजेपी की तरफ से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उम्मीदवार हैं. वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन ने झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और कांग्रेस के शहजादा अनवर को मैदान में उतारा है. झामुमो के 29 विधायक झारखंड विधानसभा में हैं, जबकि कांग्रेस के पास 17 विधायकों का समर्थन है. जबकि जीत का आंकड़ा 28 का बताया जा रहा है.

2016 और 2018 में भी ऐसी ही थी स्थिति

ऐसा नहीं है कि 2020 में 2 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में संख्या बल नहीं होने के बाद राजनीतिक दलों ने उम्मीदवार उतारे हैं. 2018 में हुए राज्यसभा चुनाव में भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी. बीजेपी ने समीर उरांव को अपना उम्मीदवार बनाया था, जबकि दूसरी तरफ प्रदीप संथालिया को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दिया था. वहीं कांग्रेस ने धीरज साहू को टिकट दिया था. हालांकि चुनावी नतीजे बीजेपी के पक्ष में एक और कांग्रेस के पक्ष में एक सीट के रूप में आए. संथालिया वोटों के कैलकुलेशन में तीसरे नंबर पर रहा. वहीं 2016 के चुनाव के बात करें तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास पर्याप्त संख्या बल होने के बाद में बीजेपी के दोनों उम्मीदवार मुख्तार अब्बास नकवी और महेश पोद्दार चुनाव जीतने में सफल हुए थे. झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार बसंत सोरेन के पास जीत के लिए पर्याप्त आंकड़ा भी था, लेकिन वह हर गए.

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क्या कहते हैं राजनीतिक दल

किसी भी चुनाव के दौरान राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में पीछे नहीं हटते हैं. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि दरअसल हॉर्स ट्रेडिंग में कांग्रेस को महारत हासिल है. कांग्रेस का इतिहास किसी से छिपा नहीं है. आंकड़े स्पष्ट है एक तरफ जहां जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन जीत की तरफ बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष की जीत तय है. उन्होंने कहा कांग्रेस अनर्गल प्रेशर बना रही है इसकी कोई जरूरत नहीं है. वहीं पलटवार करते हुए झामुमो के केंद्रीय महासचिव सह प्रवक्ता विनोद पांडे ने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि राज्यसभा चुनाव में हमेशा ऐसी स्थितियां बनती रही हैं, इसके लिए पूरी तरह से बीजेपी जिम्मेदार है, पिछले चुनावों के आंकड़े को देखें तो दूध का दूध और पानी का पानी साफ नजर आता है. उन्होंने कहा कि बीजेपी को दूसरे के ऊपर आरोप लगाने से पहले अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए.

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