रांचीः मिर्गी यानि एपिलेप्सी को लेकर लोगों में व्याप्त भ्रांतियां और अंधविश्वास दूर करने के लिए भारत सहित विश्व के 134 देशों में पर्पल डे फॉर एपिलेप्सी मनाया जा रहा है. भारत और झारखंड के संदर्भ में आज का दिन ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिए भी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में मिर्गी रोगियों की कुल संख्या करीब 5 करोड़ का 20 प्रतिशत यानी करीब 01 करोड़ मरीज भारत में ही हैं.
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देश में भी झारखंड जैसे पिछड़े राज्य में मिर्गी रोगियों का इलाज पर अंधविश्वास हावी है. अशिक्षा, गरीबी, अंधविश्वास, मिर्गी को ऊपरी हवाओं या भूत-प्रेत से जोड़कर ज्यादातर लोग नीम-हकीम या झाड़-फूंक में फंसकर ठीक होने वाली बीमारी को भी लाइलाज बना लेते हैं. हर साल 26 मार्च को पर्पल डे ऑफ एपिलेप्सी (Purple Day for Epilepsy) मनाया जा है, जिससे मिर्गी के प्रति लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास किया जा सके.
झारखंड में 70-80 प्रतिशत मिर्गी पूरी तरह ठीक होने वाली हैः रिम्स के न्यूरोलॉजी विभाग में विशेषज्ञ डॉक्टर गोविंद माधव कहते हैं कि उनके ओपीडी में हर दिन 100-150 मरीज न्यूरो के आते हैं. जिसमें से 10 प्रतिशत यानी 10-15 मरीज मिर्गी के होते हैं. डॉ. माधव कहते हैं कि इनमें से भी 70% मरीज ब्रेन में टीबी जनित गांठ की वजह से होने वाली मिर्गी या पेट के एक कृमि के ब्रेन तक पहुंच जाने की वजह से होने वाली मिर्गी के होते हैं. ये दोनों तरह की मिर्गी पूरी तरह ठीक होने वाली बीमारी की श्रेणी में है. लेकिन अंधविश्वास में मरीज झाड़ फूंक में समय बर्बाद कर देते हैं.
रिम्स के न्यूरोलॉजी विभाग में मनाया गया पर्पल डे ऑफ एपिलेप्सीः मिर्गी को लेकर लोगों में जागरुकता लाने के लिए विश्व भर में मनाए जा रहे वर्ल्ड पर्पल डे ऑफ एपिलेप्सी को रिम्स के न्यूरोलॉजी विभाग में भी मनाया गया. विभागाध्यक्ष डॉ. सुरेंद्र प्रसाद ने खुद रोगियों को मिर्गी की बीमारी और उसके इलाज की जानकारी. मिर्गी का दौरा पड़ने के वक्त क्या किया जाए, मेडिकल ट्रीटमेंट क्यों जरूरी है, मिर्गी के लक्षण क्या हैं, इन तमाम बातों से लोगों को अवगत कराया गया.
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मिर्गी के मामले में विश्व की स्थिति और भारतः मिर्गी को लेकर भारत और कई एशियाई देशों की स्थिति चिंताजनक है. विश्व में जहां 5 करोड़ मिर्गी रोगियों की संख्या है तो उसमें से एक करोड़ यानी 20 फीसदी मरीज भारत में ही हैं. वहीं विश्व में जहां 01 लाख की आबादी में 49 मिर्गी रोगी होते हैं तो भारत जैसे देश में यह आंकड़ा 139 के करीब है. झारखंड और अपने देश में 70 से 80 प्रतिशत मिर्गी के मरीज ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, जहां उन्हें इसका सही इलाज नहीं मिल पाता और वह झाड़-फूंक में ही समय बर्बाद करते हैं.
रिम्स के न्यूरोलॉजी विभाग के हेड डॉ. सुरेंद्र प्रसाद के अनुसार मिर्गी को लेकर लोगों खासकर टीचर, सोशल वर्कर, पुलिसकर्मियों, पत्रकारों को जागरूक करने की जरूरत है. जिससे गांव और शहर में मिर्गी को लेकर भ्रांतियों को दूर किया जा सके. मिर्गी का दौरे आने पर मरीज को खुले में लेटा देना चाहिए, मुंह में कोई कठोर चीज नहीं रखना चाहिए, दांत लगने की स्थिति में नाक या मुंह बंद नहीं करना चाहिए, जूता चप्पल नहीं सुंघाना चाहिए और जल्द से जल्द पास के अस्पताल में मरीज को ले जाना चाहिए, जिससे इसके खतरे को कम किया जा सकता है.