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गोल्ड अयस्क के खनन को लेकर हुई जनसुनवाई, अगले 50 साल का खांका हुआ तैयार

खूंटी के परासी इलाके में सोना अयस्क खनन को लेकर जनसुनवाई का आयोजन किया गया. इसमें रूंगटा माइंस लिमिटेड के अधिकारियों ने खनन से संबंधित रिपोर्ट को सबके सामने रखा. रिपोर्ट में खनन से प्रभावित होने वाले ग्रामीणों के पुर्नावास सहित अन्य समस्याओं पर व्याख्या की गई. वहीं, ग्रामीणों ने भी जनसुनवाई में अपनी बात रखी.

जनसुनवाई में उपस्थित लोग

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Published : Aug 23, 2019, 12:55 PM IST

खूंटीः जिले के परासी इलाके में सोना अयस्क खनन को लेकर जनसुनवाई कार्यक्रम का आयोजन हुआ. कार्यक्रम में रूंगटा माइंस लिमिटेड के शीर्ष अधिकारी, पर्यावरण पदाधिकारी, जिला प्रशासन और बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे. जनसुनवाई कार्यक्रम में दिल्ली से आए रूंगटा माइंस के अधिकारियों ने सोना अयस्क खनन की प्रस्तावित योजना से संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत की.

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रिपोर्ट में बताया गया कि वर्त्तमान में सोना अयस्क खनन को लेकर कई प्रक्रियाएं पूरी की जाएगी. सबसे पहले जनता से आम राय लेकर पर्यावरण क्लियरेंस लिया जाएगा. खनन से प्रभावित होने वाले ग्रामीणों को रूंगटा माइंस के अधिकारियों ने बताया कि खनन लीज का क्षेत्र 75.273 हेक्टेयर होगा. प्रभावित होने वाले गांवों में परासी, कुटाचउली और कोठाडीह गांव शामिल हैं. प्रति वर्ष 60006.18 टन सोना अयस्क का खनन किया जाएगा. खनन का जीवनकाल 50 साल का होगा. उन्होंने यह भी बताया कि खनन वाले इलाके में बनने वाले गड्ढे को पुनः मिट्टी से भरा जाएगा. वृक्षारोपण भी किया जाएगा. ग्रामीणों के सभी मूलभूत जरूरतों को रूंगटा माइंस पूरा करेगी.

झारखंड राज्य ई.आई.ए. प्राधिकरण ने 5 अप्रैल 2019 के पत्र द्वारा EIA/EMP बनाने के लिए TOR दे दिया है. अयस्क खनन दो तरीकों से किया जाएगा, ग्रेविटी सेपरेशन और केमिकल एक्सट्रैक्शन मतलब रसायनिक निष्कर्षण. पहले 5 साल की अवधि में 1 लाख 20 हजार 23 मीट्रिक टन का उत्पादन किया जाएगा. रूंगटा माइंस और पर्यावरणीय अधिकारियों ने खनन से होने वाले जलवायु परिवर्तन और सामाजिक-आर्थिक हालात का भी जिक्र किया. उन्होंने बताया कि रूंगटा माइंस खान सुरक्षा महानिदेशालय के मानदंडों के अनुरूप खनन का काम करेगी. सोना अयस्क खनन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार का सृजन होगा.

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रूंगटा द्वारा आयोजित जनसुनवाई कार्यक्रम में कई ग्रामीणों ने सहमति के साथ-साथ असहमति भी जतायी. आगामी 50 सालों तक परासी, कुटाचउली और कोठाडीह गांव के पुनर्वास की क्या व्यवस्था होगी, सामाजिक आर्थिक और जीवनयापन का आधार क्या होगा, इन बिंदुओं पर भी ग्रामीणों ने अपनी राय रखी.

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