रांचीः कोरोना महामारी का दौर है. एक बार फिर हर कोई डरे और सहमे हुए हैं. स्कूली बच्चे भी कोरोना संक्रमित हो रहे हैं. लेकिन निजी स्कूलों का रवैया अब तक नहीं बदला है. शिक्षा व्यवस्था का इतना व्यवसायीकरण होना यह कहीं ना कहीं चिंतित करने वाला है. इस विकट परिस्थिति के दौर में भी निजी स्कूल मनमानी कर रहे हैं. इससे अभिभावक परेशान है और सरकार मौन है.
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राजधानी रांची में कई बड़े और नामचीन स्कूल हैं, जो किसी की भी नहीं सुनते हैं. सरकार की ओर से नियम-कानून बनाए जाने के बावजूद ऐसे निजी स्कूल ऐसे सरकारी आदेशों को ताक में रखता है. यह स्कूल अपने हिसाब से फीस वसूलता है. इन स्कूलों में अभिभावक बच्चों का नामांकन तो एनकेन-प्रकारेण करा लेते हैं. बाद में उन्हें कई परेशानियों का सामना आर्थिक रूप से करना पड़ता है.
ऐसे स्कूलों में फीस इतनी हाई होती है कि मध्यम वर्गीय परिवार का कमाई का एक हिस्सा स्कूल में फीस भरने में ही चला जाता है. जूनियर बच्चों के पठन-पाठन में ऐसे स्कूलों में सालाना डेढ़ लाख रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं. वहीं सीनियर बच्चों के पीछे यह खर्च डेढ़ लाख से दो लाख रुपए तक हो जाता है. मध्यम वर्गीय परिवार के लिए यह काफी है और वह साल भर स्कूल फीस भरने में ही परेशान रहते हैं.
एडमिशन फॉर्म के साथ शुरू होता है खेल
प्राइवेट स्कूलों में पैसों का खेल एडमिशन के फॉर्म लेने के साथ ही शुरू हो जाता है. फिलहाल प्ले स्कूल में एडमिशन का दौर जारी है. इसके लिए फ्रॉम की कीमत अधिकतर स्कूलों में 500 से 2000 रुपये तक तय किए गए हैं. इसके बाद नामांकन के लिए 50 से 65000 तक लिए जा रहे हैं. कोरोना जैसी विकट परिस्थिति में भी ऐसे प्राइवेट स्कूल अभिभावकों को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. लगातार अभिभावकों की ओर से शिकायतें मिलती है. मामले को लेकर जब ऐसे स्कूल प्रबंधकों की प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की जाती है तो वह कुछ भी कहने से इनकार कर देते हैं.
निजी स्कूलों में एडमिशन चार्ज
अधिकतर निजी स्कूलों में मिनिमम फीस 20 हजार रुपये है और मैक्सिमम 70 हजार तक लिए जा रहे हैं.