रांची: झारखंड में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ रही है. कई जिलों का पारा तो 45 डिग्री के पार तक जा पहुंचा है. हिट वेव की वजह से स्कूलों के टाइम टेबल बदलने पड़े हैं. रांची का मौसम केंद्र बार-बार चेतावनी दे रहा है कि सुबह 11 बजे से 3 बजे के बीच घर या दफ्तर से बाहर निकलना जान को जोखिम में डालने के बराबर हो सकता है. अब अगर ऐसी हालत में भी बिजली रानी आंखमिचौनी खेलने लगे तो फिर आम लोगों पर क्या बीतती होगी, यह बताने की जरूरत नहीं है.
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अव्वल तो ये कि बिजली विभाग के अधिकारीगण दावा कर रहे हैं कि बिजली की कोई कमी नहीं है. रांची के पावर इनपुट के बाबत पूछने पर जीएम पीके श्रीवास्तव ने कहा कि पिक आवर में रांची को 340 मेगावाट बिजली की जरूरत है. उनके मुताबिक पिक आवर का मतलब है सूरज ढलने के बाद का समय. इस वक्त लोग दफ्तरों से घर लौटते हैं. घरों में बल्ब जलने लगते हैं. पंखा चलने की संख्या बढ़ जाती है. घरों में लोग एसी और कूलर चलाने लगते हैं. फिर भी वितरण निगम लिमिटेड की तरफ से बिजली की मांग पूरी की जा रही है.
इस जवाब पर आम जनता के बीच एक ही बात की चर्चा है कि जब रांची को फुल लोड बिजली मिल रही है तो कटने की बात ही नहीं होनी चाहिए. इसके जवाब में उनका कहना है कि यह सब लोकल फॉल्ट की वजह से होता है. ट्रॉसफॉर्मर पर ज्यादा दवाब के कारण फेज उड़ जाते हैं. इसकी वजह से परेशानी बढ़ रही है. लेकिन सवाल वही है कि लोकल फॉल्ट की नौबत आखिर आती क्यों हैं. साल भर बिजली विभाग करता क्या है.
झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड के अफसरों का कहना है कि झारखंड में अभी हर दिन औसतन 2800 मेगावाट बिजली की जरूरत है. इंडियन एनर्जी एक्सचेंज से अतिरिक्त 150 से 488 मेगावाट बिजली खरीदकर जरूरत को पूरा किया जा रहा है.
झारखंड को कहां-कहां से मिलती है बिजली:झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड कई श्रोत से बिजली खरीदता है. इसमें एनटीपीसी के अलावा एनएचपीसी, पीटीसी, डीवीसी, टीवीएनएल, एपीएनआरएल, इनलौंड पावर, ग्रासीम लिमिटेड, सिकिदरी, विंड पावर और सोलर पावर बड़े माध्यम हैं. इन जगहों से 3100 मेगावाट बिजली का आवंटन हो जाता है. लेकिन गर्मी के मौसम में सिकिदरी का प्रोडक्शन ठप हो जाता है. साथ ही कोयले की कमी के कारण कई अन्य जगहों से कटौती होने लगती है. इसकी भरपाई करने के लिए एनटीपीसी की नॉर्थ कर्णपूरा, एनटीपीसी की बरही, सोलर पावर और पतरातू के पीयूवीएनएल से करार किया गया है. लेकिन सच यह है कि कागजी दावों पर जमीनी दावों में अंतर दिख रहा है. अगर बिजली मिल रही है जनता क्यों परेशान है. इस सवाल का जवाब कोई भी देने को तैयार नहीं है.