रांचीः संविधान ने देश के कमजोर समूहों को सशक्त करने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है. लेकिन जल्द ही यह सत्ता हासिल करने और राजनीतिक रोटी सेंकने का उपकरण बन गया. अब तो आरक्षण के लिए होड़ लगी है. इसी का नतीजा है कि संविधान में शुरुआत में विभिन्न वर्गों में शामिल जातियों की सूची अब काफी बदल गई है. भले ही इसके मायने बदलते जा रहे हैं. ट्राइबल राज्य झारखंड में अब ओबीसी में शामिल कुछ समूह खुद को मिले आरक्षण को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि झारखंड में ओबीसी की जनसंख्या 50 फीसदी से अधिक है, उसी अनुपात में आरक्षण मिलना चाहिए. भले ही 1931 के बाद से देश में जातिगत जनगणना नहीं हुई है.
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झारखंड में ओबीसी कोटा ( OBC quota in Jharkhand)बढ़ाए जाने का समर्थन करने वालों का कहना है कि राज्य में करीब 26 फीसदी एससी-एसटी, दस फीसदी सामान्य और 50 फीसदी से अधिक ओबीसी हैं. छात्र नेता मनोज यादव का कहना है कि यहां एससी-एसटी के लिए 36 फीसदी, ईडब्ल्यूएस के लिए 10 फीसदी और पिछड़ों के लिए 14 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है.
समर्थकों का कहना है यह न्याय संगत नहीं, और पिछड़ों को आबादी के हिसाब से आरक्षण मिलना चाहिए. इसके लिए समय-समय पर आंदोलन किए जा रहे हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के मुताबिक 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता. ऐसे में किसी का आरक्षण बढ़ाने के लिए किसी समूह का कम करना होगा. इससे ओबीसी आरक्षण पर सियासत तेज है. तमाम राजनीतिक दल दावे कर रहे हैं पर कोई रास्ता निकाले जाने की कोशिश नहीं दिखती.
बढ़वाएंगे ओबीसी का कोटाः अंबा प्रसाद
झारखंड में ओबीसी आरक्षण के समर्थक कम आरक्षण के लिए अपने समूह के जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदार ठहराते हैं. राष्ट्रीय ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष राजेश गुप्ता का कहना है कि ये जन प्रतिनिधि अपना हित, समूह के हित के ऊपर रखते हैं. इसलिए एकजुट नहीं हैं. हालांकि विधायक अंबा प्रसाद विधानसभा में इसको उठाने की योजना बना रही हैं. कांग्रेस विधायक अंबा प्रसाद का कहना है कि उनकी जो सरकार है, इसी के कार्यकाल में ओबीसी के लिए आरक्षण बढ़वाने का काम कर लिया जाएगा.
विधायक अंबा प्रसाद मानसून सत्र में उठाएंगी मुद्दा