रांचीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों को राहत देने के लिए जन औषधि यानी जेनेरिक दवा को अपनाने की बात अक्सर करते हैं. लेकिन क्या वास्तव में लोगों को जन औषधि (जेनेरिक मेडिसीन) उपलब्ध कराने के प्रति सरकारें और सरकारी तंत्र गंभीर है, यह एक बड़ा सवाल है. ईटीवी भारत इस सवाल को गंभीरता से इसलिए उठा रहा है. क्योंकि आकर्षक पोस्टर और बैनर के साथ बड़े-बड़े दावे के साथ प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोल दिए जाते हैं लेकिन वहां दवाइयां इतनी कम संख्या में उपलब्ध होती है कि उसका लाभ जरूरतमंद मरीजों और उनके परिजनों को नहीं मिलता है.
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रिम्स में जन औषधि केंद्र बदहाल है, जिससे रिम्स में भर्ती मरीजों के परिजन महंगी दवा खरीदने को मजबूर हैं. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र में 1450 की जगह महज 100 तरह की दवा उपलब्ध है तो 240 सर्जिकल आइटम की जगह सिर्फ मास्क और ग्लब्स ही उपलब्ध है. नतीजा यह कि रिम्स जैसे बड़े मेडिकल संस्थान में जहां गंभीर रोगों से ग्रस्त मरीजों की संख्या अधिक होती है. ऐसे में बड़ी संख्या में दवाएं डॉक्टर लिखते हैं जिन्हें मरीज के परिजन महंगी दवा खरीदने को मजबूर होते हैं. हजारीबाग से अपने भाई का इलाज कराने आए मोहम्मद शाहनवाज कहते हैं कि यहां दवा जब नहीं मिलता तो फिर जन औषधि केंद्र का क्या फायदा है, सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.
रिम्स में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के संचालक अरुण स्वीकारते हैं कि अभी 100 किस्म के करीब ही दवा उपलब्ध है पर स्थिति में सुधार जल्द होने का भरोसा दिया है. रिम्स में पहले प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना की दुकान का संचालन रिम्स अपनी व्यवस्था के तहत कर रहा था. जिसे और बेहतर करने के लिए 24 जनवरी से बिंदिया मेडिको को सौंप दिया गया. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने इसके निजी हाथों में सौंपने के बाद फिर से उद्घाटन करते हुए व्यवस्था बेहतर होने के दावे किए थे पर ऐसा नहीं हुआ.
पूर्ववर्ती बीजेपी की रघुवर सरकार ने रिम्स में इलाज कराने आने वाले रोगियों के परिजनों को राहत देने के नाम पर निजी ट्रस्ट द्वारा संचालित दवाई दोस्त को जेनेरिक औषधि केंद्र खोलने की इजाजत दी थी. जिसे वर्तमान सरकार और रिम्स प्रबंधन ने नियमों का हवाला देकर बंद करा दिया. उस समय दावे किए गए कि ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि दवाई दोस्त की कमी ना खले. लेकिन अगस्त से आज तक ऐसी व्यवस्था नहीं हुई कि प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र से 1500 किस्म की दवाएं मरीजों के लिए उपलब्ध हो सके नतीजा परिजन महंगी दवा खरीदने को मजबूर हैं.