रांची: राजधानी रांची के विवेकानंद सरोवर (बड़ा तालाब) को प्रदूषण मुक्त करने के लिए स्थानीय लोग लगातार सत्याग्रह कर रहे हैं. कभी हाथ में बैनर-तख्ती, सरोवर का गंदा पानी लिए लोग सरकार से इसको बचाने की मांग करते हैं तो कभी धरना देकर. इसके बावजूद सरकार और रांची नगर निगम ने अब तक कोई पहल नहीं की है.
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आज भी बड़े एरिया के नाले का गंदा पानी सीधे विवेकानंद सरोवर में गिरना जारी है. लिहाजा बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों ने विवेकानंद सरोवर को बचाने और नगर निगम के साथ साथ सरकार को नींद से जगाने के लिए रविवार को सरोवर के मुख्य द्वार के बाहर घंटा और ढोल बजाकर अपना विरोध दर्ज कराया. घंटा-ढोल बजाकर विवेकानंद सरोवर को बचाने की अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने की कोशिश की.
झील का सिर्फ नाम बदला, स्थिति वैसी ही रहीः आज लोग जिस रांची झील को बचाने की गुहार लगा रहे हैं. ये बड़ा तालाब के नाम से भी जाना जाता है. रघुवर दास के शासनकाल में इसका नाम बदल कर विवेकानंद सरोवर कर दिया गया. इसके सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर दिए गए लेकिन ये झील प्रदूषण मुक्त नहीं हुआ. इसे प्रदूषण मुक्त करने की मांग करते हुए स्थानीय लोगों ने कहा कि नगर निगम की उदासीनता और राज्य सरकार की उपेक्षा की वजह से झील अपना वजूद खोता जा रहा है. ऐसे में अब स्थानीय लोगों के पास अपनी बात सरकार तक पहुंचाने का एक मात्र रास्ता सत्याग्रह ही बचा है.
सरकार और रांची नगर निगम पर आरोपः सत्याग्रह कर रहे लोगों का सवाल नगर निगम और सरकार दोनों से है. स्थानीय लोग पूछते हैं कि सरोवर के सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ों रुपये बहा देने के बावजूद इसका ख्याल क्यों नहीं रखा गया. उन्होंने कहा कि आज भी नाले का गंदा पानी बिना ट्रीटमेंट के इस सरोवर में क्यों गिरता है, इसके लिए पुख्ता व्यवस्था की जाए कि गंदा पानी तालाब में ना गिरे. जिस विवेकानंद ने पूरी दुनिया मे देश का नाम रौशन किया, उनके नाम पर जिस रांची झील का नाम रखा गया वह बदहाल क्यों है. सीवरेज का गंदा पानी लगातार बिना ट्रीटमेंट के इस तालाब में गिरता है. सरोवर का पानी सड़ कर हरा रंग का हो गया है, बदबू से आसपास के लोगों का जीना मुश्किल हो गया है.
रांची झील बचाओ अभियान के संयोजक राजीव रंजन मिश्रा कहते हैं कि 22 दिनों से सत्याग्रह अलग अलग तरीके से कर रहे हैं लेकिन प्रशासन की नींद नहीं खुली है. राजीव रंजन मिश्रा ने कहा कि यही कारण है कि आज हम लोगों को घंटा बजाकर और ढोल पीटकर कुम्भकर्णी नींद में सोये सरकारी तंत्र को जगाना पड़ रहा है. हाथों में झील को बचाने की तख्ती लिए सत्याग्रह में शामिल महेंद्र जायसवाल कहते है कि ऐतिहासिक झील की वर्तमान स्थिति देख कर दुख होता है, इसे बचाना जरूरी है. इसके लिए वो लगातार अलग अलग तरीके से सत्याग्रह कर रहे हैं.
अशोक पुरोहित ने कहा कि पहले यह रांची झील हुआ करता था, बाद में दिनों में लोग इसे बड़ा तालाब के नाम से जानने लगे, जब रघुवर दास की सरकार ने इसके बीचो-बीच स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा लगायी गई. इसका सौंदर्यीकरण किया गया तो लगा कि इस झील का अस्तित्व बच जाएगा. लेकिन ठीक उल्टा हुआ, शहर के गंदे पानी को झील में गिरने से पहले साफ सफाई करने की कोई योजना नहीं बनायी गई, जिससे ये झील गंदे नाले का पानी बनकर रह गया है.
वर्ष 1842 में बना था रांची झीलः ऐतिहासिक रांची झील का निर्माण अंग्रेजों के शासनकाल में किया गया था. अंग्रेज कर्नल औंसले ने 1842 में इसे बनवाया था. कहा जाता है कि इसके निर्माण में कैदियों की मदद ली गयी थी. इस झील की ऊंचाई समुद्रतल से 2100 फीट के करीब है. पहाड़ी मंदिर की ऊंचाई से देखने पर इस झील की कभी अनुमान छटा दिखती थी. सरकार और नगर निगम के उदासीन रवैया के चलते आज यह ऐतिहासिक झील गंदे पानी का जमाव स्थल बन गया है.
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