पंचायत स्वयंसेवकों का प्रदर्शन रांची:सेवा स्थायीकरण सहित पांच सूत्री मांगों के समर्थन में पिछले 70 दिनों से राजभवन के समक्ष धरना दे रहे पंचायत स्वयंसेवक ने 20 सितंबर को ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम के आवास का घेराव करने का निर्णय लिया है. उस दिन पुराना विधानसभा मैदान में राज्य भर से 18 हजार पंचायत स्वयंसेवकों का महाजुटान होगा. उस दौरान नंग-धड़ंग प्रदर्शन करते हुए यह पंचायत स्वयंसेवक ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम के आवास का घेराव करेंगे.
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राजभवन के पास धरना दे रहे पंचायत संघ सेवकों का कहना है कि सरकार ने उनकी मांगों को पूरा करने के बजाए हर कर्मचारी के बकाया वेतन का भुगतान भी नहीं कर पाई है. ऐसे में प्रत्येक स्वयंसेवक का 2.5 से 3 लाख रुपए सरकार के पास बकाया है. ऐसे में अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए पंचायत स्वयंसेवक आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं.
ये है पंचायत स्वयंसेवकों की मांग:
- पंचायत सचिवालय स्वयंसेवक को नियमित मानदेय लागू की जाए
- पंचायत सचिवालय स्वयंसेवक का नाम बदलकर पंचायत सहायक किया जाए
- पंचायत सचिवालय स्वयंसेवक को पंचायती राज विभाग में समायोजन किया जाए
- पंचायत सचिवालय स्वयंसेवक को स्थायी किया जाए
- पंचायत सचिवालय स्वयंसेवक के 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल से मुख्यमंत्री के साथ वार्ता कराई जाए
- 2016 में हुई थी हर पंचायत में 4-4 पंचायत स्वयंसेवक की नियुक्ति
2016 में हुई थी पंचायत स्वयंसेवकों की नियुक्ति:बता दें कि राज्य में पंचायत स्वयंसेवकों की नियुक्ति 2016 में हुई थी. प्रत्येक पंचायत में चार-चार पंचायत स्वयंसेवकों की नियुक्ति आरक्षण रोस्टर का पालन करते हुए शिक्षण, स्थानीय, जाति, पुलिस वेरिफिकेशन के साथ की गयी थी. इस तरह से राजभर में करीब 18,000 पंचायत सचिवालय स्वयंसेवक कर्मियों की नियुक्ति हुई थी, जिनके ऊपर जनकल्याणकारी योजनाओं को धरातल पर उतारने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई थी. सरकार के द्वारा अलग-अलग कार्यों के लिए मानदेय भी निर्धारित की गई थी.
2019 के बाद बिगड़ने लगे हालात:शुरू के वर्षों में इन पंचायत सचिवालय संघ सेवकों को ग्रामीण विकास के माध्यम से सम्मानजनक पैसे मिल जाते थे. लेकिन, 2019 के बाद जैसे ही नई सरकार राज्य में बनी उनकी परेशानी बढ़ती चली गई. आज हालात ऐसे हैं, उनकी बकाया राशि लाखों में है और सरकार उसका भुगतान नहीं कर पा रही है. मजबूरन करीब 70 दिनों से धरना पर बैठे इन पंचायत स्वयंसेवकों का सब्र का बांध और टूटने लगा है. हालात ऐसे हैं कि 2 महीने से अधिक समय बीतने के बावजूद भी आज तक सरकार के किसी भी प्रतिनिधि ने धरना स्थल पर जाकर उनकी सुध नहीं ली है.