रांची: वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के मद्देनजर राज्य सरकार ने इस बार सरहुल शोभा यात्रा पर रोक लगा दी है. इसको लेकर आदिवासी संगठनों में रोष है और सरकार से शोभायात्रा निकालने की अनुमति की मांग कर रहे हैं.
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आदिवासियों के प्रमुख त्योहारों में से एक है सरहुल
आदिवासी सामाजिक धार्मिक संगठनों की मानें तो सरकार ने उनकी सहमति के बगैर ही अपना फरमान जारी किया है. आदिवासी संगठनों का कहना है कि कोविड गाइडलाइन के तहत शोभायात्रा निकालने की सरकार इजाजत दें. बैठक में निर्णय लिया गया है कि इसको लेकर मुख्यमंत्री से मुलाकात कर वार्ता की जाएगी. उनका कहना है कि सरहुल आदिवासियों के प्रमुख त्योहारों में से एक है और यह प्राकृतिक पूजा का सूचक है. ऐसे में प्राकृतिक पूजा से ही कोरोना महामारी से निजात पाया जा सकता है.
सरहुल शोभा यात्रा को क्यों रोकना चाहती है सरकार
आदिवासी नेता करमा उरांव की मानें तो सरहुल प्रकृति से जुड़ा हुआ है और झारखंड में आदिवासी समाज इस पर्व को बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं, लेकिन राज्य सरकार ने इस पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है, जो बिल्कुल ही गलत है. राज्य के आदिवासी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद कोरोना महामारी के बीच 'बहा' पूजा कर आदिवासी संस्कृति को बरकरार रखने की एक मिसाल कायम की थी, लेकिन सरकार सरहुल शोभा यात्रा को आखिर क्यों रोकना चाहती है. इससे सरकार की मंशा स्पष्ट नहीं हो पा रही है. सरकार से मांग है कि कोविड गाइडलाइन के तहत सरहुल शोभा यात्रा निकालने की इजाजत दी जाए.
शोभायात्रा पर रोक लगाने का आदेश
चैत माह के तृतीय शुक्ल पक्ष को सरहुल पूजा मनाई जाती है और इस बार सरहुल 15 अप्रैल को मनाया जाना है. इस दिन का इंतजार आदिवासी समाज को साल भर से रहता है. सरहुल शोभायात्रा टोला मोहल्ला में निकाली जाती है. इसमें बड़ी संख्या में हर्ष उल्लास के साथ आदिवासी समाज के लोग शामिल होते हैं, जो एकजुटता का परिचय देता है, लेकिन इस बार महामारी के बढ़ते प्रकोप के मद्देनजर सरकार ने किसी भी शोभायात्रा पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है.