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पटना में 23 जून को होने वाली बैठक से निकलेगा 24 का फार्मूला! हेमंत सोरेन की क्या होगी भूमिका

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष की गोलबंदी शुरू हो गई है. बिहार में ही विपक्षी दल बैठक करेंगे इस पर मुहर लग गई है. 23 जून की तारीख चर्चा में है. तैयारी इस बात की भी है कि 23 को इतनी बड़ी तैयारी कर ली जाए कि 24 के फैसले की गोलबंदी हो जाए. 23 जून की बैठक के लिए जो तैयारी होनी है उसमें राजनेताओं के आने और उनकी सहमति की बात शुरू हो गई है. इसमें झारखंड की भूमिका भी काफी अहम मानी जा रही है.

Opposition meeting in Patna on June 23
Opposition meeting in Patna on June 23

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Published : Jun 8, 2023, 9:15 PM IST

Updated : Jun 9, 2023, 7:34 AM IST

रांची: बिहार में 23 जून को होने वाली बैठक के लिए जो मुद्दे सामने जाएंगे इनमें झारखंड की भूमिका और भागीदारी पर जो सवाल खड़े हुए है, उसे लेकर के झारखंड की सियासत अपने तरीके से नई चाल चल रही है. राष्ट्रीय स्तर के किस मुद्दे पर चुनाव लड़ा जाएगा, समन्वय की कौन सी बात रखी जाएगी, समन्वय का समीकरण किस तरह का होगा, यह सब कुछ 23 जून को तय होगा. लेकिन झारखंड में चुनाव किस तरह से लड़ा जाएगा इसकी राजनीतिक गोटी बैठाना शुरू हो गई है.

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बंधु तिर्की ने किया 9 सीटों पर दावा: झारखंड में लोकसभा चुनाव के लिए जो सीटों का समीकरण बैठाया जा रहा है अभी इसकी अंतिम बानगी क्या होगी यह नहीं कहा जा सकता, लेकिन झारखंड कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने यह जरूर साफ कर दिया कि 9 सीटों पर उनकी पार्टी चुनाव लड़ेगी और इसमें कोई समझौता नहीं होगा. बाकी बचे सीटों पर अन्य राजनीतिक दल चुनाव लड़ेंगे. मामला साफ है कि राष्ट्रीय जनता दल और झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए 5 सीटें कांग्रेस ने छोड़ी हैं. अब इसमें क्या चीजें जुड़ेंगी यह 23 की बैठक के बाद तय होगा, लेकिन झारखंड की राजनीति ने कुछ इस कदर सियासी वजूद को अपना रंग देना शुरू कर दिया है कि अगर आज चुनाव की तारीखों का ऐलान हो जाए तो 9 सीटों पर कांग्रेस की दावेदारी पक्की है.

23 के बैठक से पहले राजनीति: बैठक से पहले वाली राजनीति का जो आधार है अगर उसे जोड़ लिया जाए तो कई सवाल झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ भी खड़े हो रहे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा नीतीश के समर्थन के लिए बिहार जाने को तैयार है. हेमंत सोरेन ने 12 तारीख को होने वाली बैठक के लिए अपनी सहमति दे दी थी. यह अलग बात है कि बैठक टल गई अब 23 को होनी है. इसलिए ये माना जा रहा है कि हेमंत सोरेन या उनकी पार्टी उसमें जरूर शामिल होगी.

बैठक अभी हुई नहीं और कई सवाल इस रूप में भी खड़े हो रहे हैं कि कांग्रेस जिस तरीके से अभी से झारखंड मुक्ति मोर्चा को सीटों को लेकर दबाव देना शुरू कर दी है उसमें अंतिम स्वरूप क्या होगा. झारखंड मुक्ति मोर्चा कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल की सरकार झारखंड में चल रही है. झारखंड के जो राजनीतिक हालात हैं उसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा सबसे मजबूती के तौर पर अभी भी सरकार में शामिल है. कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल की बात किनारे ही रखी जाती है. लेकिन 2024 की तैयारी जिस तरीके से शुरू हुई है और जिस गोलबंदी की तैयारी 23 तारीख को होनी है उसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा कहां खड़ी है इसको लेकर कई तरह की चर्चाएं भी हो रही हैं.

क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रवि उपाध्याय:वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि हेमंत सोरेन को देश स्तर पर बनने वाले महागठबंधन से राजनीति में बहुत फायदा होने नहीं जा रहा है. इस महागठबंधन से हेमंत सोरेन राजनीतिक दबाव के तहत ही काम कर पाएंगे यह बिल्कुल साफ है. इसके पीछे का मूल तर्क यह है कि राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यू दोनों झारखंड में अपने संगठन विस्तार पर लगे हुए हैं. लगातार इनकी पार्टी के कार्यक्रम भी चलते हैं. श्रवण कुमार जब झारखंड के प्रदेश प्रभारी हुआ करते थे तो लगातार झारखंड में कार्यक्रम होता रहा. अब नीतीश कुमार ने प्रदेश प्रभारी का प्रभार अशोक चौधरी को दिया है, तो संभव है कि पार्टी की मजबूती के लिए जदयू और तेजी से काम कर रहा है. 2 महीने में लगभग 3 बार जदयू के नेता झारखंड का दौरा कर चुके हैं. पार्टी की मजबूती के लिए बैठक भी कर चुके हैं. राष्ट्रीय जनता दल चुकी हेमंत सरकार में शामिल है तो पार्टी की गतिविधि को राज्य में चलाने के लिए अपने स्तर पर चीजें चलती रहती हैं. 2024 में सीटों के लेकर कांग्रेस का बयान सार्वजनिक हो चुका है. तो ऐसे में लोकसभा में हिस्सेदारी की जो बात हो रही है वह अपने आप में बड़ी है. अब सवाल यही है हेमंत सोरेन का स्टैंड इस मामले में क्या होगा.

बिहार में झामुमो की भूमिका नहीं: रवि उपाध्याय कहते हैं कि हेमंत सोरेन की बिहार में बहुत ज्यादा भूमिका इसलिए भी नहीं दिख रही है कि उनकी पार्टी यहां बहुत ज्यादा काम नहीं कर रही है. एक दौर था जब शिबू सोरेन की सक्रियता थी और उन्होंने लालू यादव को समर्थन दिया था, राबड़ी देवी तक को मुख्यमंत्री बनाने में उनकी पार्टी की अहम भूमिका थी. लेकिन बने झारखंड और बदले राजनीतिक हालात में अब वो राजनीतिक स्थिति झारखंड मुक्ति मोर्चा की बिहार में रही नहीं.

आरजेडी और जेडीयू झारखंड में बढ़ा रहे जनाधार: झामुमो की बिहार में राजनीतिक गतिविधियां लगभग बंद है या चल भी रही है तो इतने छोटे स्तर पर है कि राज्य स्तर पर उसका कोई बहुत बड़ा आधार खड़ा होता नहीं दिख रहा है. लेकिन राष्ट्रीय जनता दल और जदयू की बात करें तो झारखंड में इसकी तैयारी पूरी मजबूती के साथ है तो ऐसे में जब क्षेत्रीय एकजुटता को राष्ट्रीय स्तर पर रखना है तो फिर वोट बैंक की सेंधमारी की तैयारी अपने आप में राजनीतिक विरोधाभास को खड़ा करता है.

अगर गठबंधन में नीतीश कुमार और बीजेपी की बात करें तो बीजेपी ने लगातार नीतीश कुमार को आगे रखकर के सिर्फ उन्हें आगे बढ़ाने का ही काम किया है. उनके वोट बैंक में बीजेपी ने सेंधमारी करने की बात तब तक नहीं कि जब तक नीतीश कुमार बीजेपी से अलग नहीं हुए. लेकिन एकजुटता की बात कहने वाले महागठबंधन के तमाम लोग आज भी झारखंड की राजनीतिक में जातीय गोलबंदी कि जिस जमीन और जनाधार को खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं वह कहीं ना कहीं हेमंत सोरेन के लिए राजनीतिक फायदे की बात नहीं कही जा सकती है. लेकिन समय और कालखंड में चीजें बदलती रहती हैं, इसलिए राजनीति में कुछ भी हो सकता है यह तो आने वाले समय में पता चलेगा. राष्ट्रीय स्तर पर जिस एकजुटता की बात नीतीश कुमार ने की है उसमे हेमंत सोरेन के होने से बिहार झारखंड से देश स्तर पर राजनीति को मजबूत बल मिलेगा यह नीतीश की मजबूती के परिपेक्ष में कहा जा सकता है.

क्या कहा सुप्रियो भट्टाचार्य ने:झारखंड मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने ईटीवी भारतसे बात करते हुए कहा कि देश स्तर पर बनने वाले गठबंधन में हमारी भूमिका इसलिए भी है कि देश में राजनीतिक बदलाव की जरूरत है. 23 तारीख को होने वाली बैठक को लेकर के झारखंड मुक्ति मोर्चा पूरी तरह आस्वस्थ है. उनका कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर जो भी गठबंधन बन रहा है और देश में जो हालात हैं उसे बदलने के लिए जिस एकजुटता की बात हो रही है वह निश्चित तौर पर झारखंड और पार्टी के फायदे की बात है. लेकिन राज्य में होने वाले फायदे या नुकसान की बात करें तो आदिवासियों को लेकर के कोरोना काल से अभी तक हेमंत सरकार ने लगातार काम किया है. इसके अलावा गुरुजी ट्राइबल पॉलिटिक्स के जो फिगर हैं उसे मजबूत करने का काम भी हेमंत सोरेन कर रहे हैं. सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं कि किसी महागठबंधन या गठबंधन के जरूरत वाली राजनीतिक फायदे से हमें नुकसान नहीं है. हम जमीन पर काम करते हैं और हमारा जमीर मजबूत है. सुप्रीयो कहते हैं हेमंत सोरेन ने झारखंड में काम किया है और यह काम ही हमारे मजबूती का आधार है.

हेमंत जमीन पर करते हैं काम-सुप्रियो: इस विषय की चर्चा हो रही है कि आने वाले समय में हेमंत सोरेन पर दबाव बनाने के लिए कांग्रेस राजद और जदयू अलग गठबंधन हो करके झारखंड में चुनाव लड़ जाएं तो ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा का घाटा होगा, इसपर सुप्रियो भट्टाचार्य का साफ तौर पर कहना है कि इससे हमारा किसी तरह का कोई घाटा नहीं होगा. जो लोग सामायिक और जरूरत वाली राजनीति का फायदा लेना चाहते हैं जनता उन्हें नकार देगी. हम जमीन पर काम करते हैं और जमीन भी हमारी इतनी मजबूत है कि हम अपनों के बीच अपनों की राजनीति करते हैं.

बहरहाल 23 को 24 की तैयारी की बैठक किस करवट जाएगी कहना मुश्किल है. लेकिन झारखंड में सियासी जरूरत अपना नया पैर फैलाना शुरू कर दिया है. इसके कई आयाम सामने आने शुरू हो गए हैं. बंधु तिर्की ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान करके यह कह दिया है यह तो हर हाल में होगा. अब 23 को होने वाली बैठक में 24 की तैयारी को लेकर जो तय होना है उसमें और कौन सी बातें हर हाल में होगी यह तो बैठक के बाद पता चलेगा. लेकिन झारखंड की राजनीति में बड़े राजनीतिक दल के तौर पर खुद को साबित करने की एक लड़ाई शुरू हो गई है. 4 दलों के महागठबंधन में साथ होने की बात और एक और महा गठबंधन के साथ चलने की बात राजनीतिक चर्चा में तो जरूर आ गई है.

9 सीटों पर चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के बयान के बाद एक चर्चा इस बात की जगह जरूर बना रही है कि अगर एकजुटता का फार्मूला अपने मन से कही जाने वाली बात ही है, तो फिर जो मन की बात हो रही है उससे अलग वाली राजनीति बड़ी आसानी से जगह नहीं पाएगी. क्योंकि आज के मन वाली बात कल की मनमानी वाली राजनीति का शक्ल भी ले सकती है और यहीं से राजनीतिक विभेद एक बड़ा स्वरूप भी ले सकता है. अब देखना है 23 को 24 वाली बैठक का रंग क्या रहता है.

Last Updated : Jun 9, 2023, 7:34 AM IST

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