रांची: राज्य के सरकारी कर्मचारियों के लिए झारखंड में पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग तेज हो गई है. राजस्थान की तर्ज पर झारखंड में भी पुरानी पेंशन योजना शुरू करने की मांग सदन से लेकर सड़क तक में उठने लगी है. सत्तारूढ़ दलों के अंदर भी चुनाव के वक्त जारी घोषणापत्र के वादों को पूरा करने पर जोर दिया जा रहा है. जिसके लिए कांग्रेस विधायक काफी मुखर हैं. हालांकि, झारखंड मुक्ति मोर्चा का जितना सहयोग मिलना चाहिए वो नहीं मिल पा रहा है.
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कांग्रेस विधायक दीपिका सिंह पांडे का मानना है कि हमने जो चुनाव के वक्त जनता से घोषणापत्र के माध्यम से वादा किया था, उसे पुरा करेंगे. राजस्थान के बाद छत्तीसगढ़ में की जा रही पहल की सराहना करते हुए दीपिका सिंह पांडे ने कहा कि कांग्रेस पुरानी पेंशन स्कीम के पक्षधर है और झारखंड में भी इसे लागू कराने की हमारी कोशिश होगी. इधर झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रदेश प्रवक्ता मनोज पांडे ने भी पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग को सही बताते हुए कर्मचारियों को सब्र रखने का आग्रह किया है.
पुरानी पेंशन योजना पर नेताओं के बयान सदन में पुरानी पेंशन योजना लागू करने पर सरकार रही उदासीन: बजट सत्र के दौरान सोमवार को झारखंड में पुरानी पेंशन योजना लागू करने के एक सवाल पर सरकार की ओर से टालमटोल जवाब दिया गया. इधर सरकार के टालमटोल पर भाजपा ने तंज कसा है. बीजेपी विधायक अनंत ओझा ने सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि इस सरकार की कथनी और करनी में बहुत अंतर है.
राज्य में हैं करीब 2 लाख सरकारी अधिकारी-कर्मी: राज्य में अभी करीब 1.95 लाख स्थाई अधिकारी-कर्मी हैं. इनमें से 1.25 लाख नई पेंशन योजना के दायरे में हैं, जो 2004 में अंशदायी पेंशन योजना लागू होने के बाद बहाल हुए हैं. नई पेंशन योजना के तहत राज्य सरकार अभी एक हजार करोड़ वार्षिक अंशदान जमा करती है. नई पेंशन योजना में राज्य सरकार 14% और कर्मचारी 10% अंशदान देते हैं. सेवानिवृत्ति के बाद ब्याज सहित कुल जमा राशि का 40 से 60% हिस्सा कर्मी निकाल सकते हैं.
पुरानी पेंशन योजना में सेवानिवृत्ति पर अंतिम मूल वेतन और महंगाई भत्ते की आधी राशि बतौर पेंशन जीवनभर राजकोष से मिलती है. इसके अलावे हर साल दो बार महंगाई भत्ता बढ़ता है. निधन होने पर पारिवारिक पेंशन की भी व्यवस्था है.