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भगवान बिरसा की जीवनी लोगों के लिए बनेगा प्रेरणा स्रोत, 15 नवंबर को पुराने जेल में बने स्मृति पार्क का होगा उद्घाटन - धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा

झारखंड का 15 नवंबर को 20 साल पूरा हो जाएगा. इस अवसर पर भगवान बिरसा मुंडा के नाम से बने पुराने बिरसा मुंडा जेल परिसर में बने स्मृति पार्क का उद्घाटन होना है, ताकि राज्य की जनता और अन्य राज्यों से आने वाले लोग भगवान बिरसा मुंडा की जीवनी के बारे में जान सके.

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झारखंड स्थापना दिवस

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Published : Nov 14, 2020, 5:35 AM IST

रांची: धरती आबा बिरसा मुंडा के नाम पर बने जल जंगल जमीन और प्राकृतिक सौंदर्य के नाम से बने झारखंड का 15 नवंबर को 20 साल पूरे हो जाएंगे. भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिवस के अवसर पर झारखंड राज्य का गठन किया गया था और इसी दिन धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के सपनों को साकार किया गया था. धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा झारखंड के वीर क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अंग्रेजों को चने चबाने को मजबूर कर रखा था.

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पर्यटनस्थल के रूप में होगा विकसित

भगवान बिरसा मुंडा के नाम से बने पुराने बिरसा मुंडा जेल परिसर का उद्घाटन झारखंड स्थापना दिवस के दिन होना है, ताकि राज्य की जनता और अन्य राज्यों से आने वाले लोग भगवान बिरसा मुंडा की जीवनी के बारे में जान सके. राजधानी रांची के सर्कुलर रोड स्थित पुराना बिरसा मुंडा जेल का जीर्णोद्धार का काम लगभग पूरा हो चुका है. पुराने जेल परिसर को स्मृति पार्क और म्यूजियम के रूप में विकसित किया जा रहा है. इसके जीर्णोद्धार का कार्य लगभग 62 करोड़ रुपये की लागत से की जा रही है. 27 करोड़ रुपए की लागत से भगवान बिरसा मुंडा म्यूजियम का जीर्णोद्धार हो रहा है, तो वहीं 8 करोड रुपए की लागत से पार्क में म्यूजिकल और वाटर पार्क में म्यूजिकल वाटर फाउंडेशन लगाया जाएगा. बिरसा मुंडा पार्क को पर्यटनस्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिसमें अंडर ग्राउंड वाहन की पार्किंग रिस्ट्रो और फूड कोर्ट भी बनाई जा रही है. यह कार्य एजेंसी इंडियन ट्रस्ट फॉर रूलर हेरिटेज एंड डेवलपमेंट के ओर से किया जा रहा है.


स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्ति होगी स्थापित
बिरसा मुंडा पुराने जेल परिसर के प्रथम तल्ले के चार कमरों में से एक कमरे में भगवान बिरसा मुंडा के जीवन के अभिलेख के दर्शाया जाएगा. किसी दूसरे कमरे में बिरसा मुंडा के अनुयायियों के बारे में जानकारियों का उल्लेख रहेगा. उसके अलावा दो अन्य कमरों में उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाया जाएगा. इसके अलावा जेल परिसर के आंगन में झारखंड के 10 आदिवासी स्वतंत्रा सेनानियों की मूर्ति स्थापित की गई है, उनके संबंध में लाइट और साउंड शो के माध्यम से पर्यटकों को जानकारी दी जाएगी.


डेढ़ सौ साल पुराने जेल का जीर्णोद्धार
सर्कुलर रोड स्थित जेल परिसर को म्यूजियम के रूप में परिवर्तित की जा रही है. सरकार की मंशा है कि आने वाली पीढ़ी के युवा अपनी पुरानी विरासत और धरोहर को जानें और उन्हें अपने जीवन में आदर्श के रूप में अपना सकें. इसी जेल में भगवान बिरसा मुंडा ने अपने जीवन के आखिरी दिन काटे और यहीं उनकी मृत्यु हुई. उन्हें 3 फरवरी को अंग्रेजों ने पकड़ा था और इस जेल में 9 जून 1900 भगवान बिरसा मुंडा की मृत्यु हो गई थी. अंग्रेजों ने भगवान बिरसा मुंडा की मौत की वजह डायरिया बताई थी, लेकिन कहा जाता है कि उन्हें धीमी जहर देकर मारा गया था. उन्हीं के याद में डेढ़ सौ साल पुराने इस जेल में जीर्णोद्धार का कार्य किया जा रहा है.


भगवान बिरसा मुंडा पुराने जेल परिसर को बिरसा मुंडा के याद के रूप में संरक्षित किया जा रहा है. पूरे कैंपस में जहां-जहां खुली जगह है उसे खूबसूरत गार्डन के रूप में विकसित किया जा रहा है. इसके अलावा यहां लाइट और साउंड की भी व्यवस्था की जा रही है, ताकि इसके जरिए यहां पर आने वाले लोगों को जेल और भगवान बिरसा मुंडा के इतिहास के बारे में बताया जा सके.


जानिए भगवान बिरसा मुंडा के पुराने जेल परिसर में कितना हुआ है कार्य


• रिन्यूशन का कार्य लगभग 9.24 करोड़ रुपए की लागत से इंडियन ट्रस्ट फॉर रूलर हेरिटेज डेवलपमेंट के ओर से किया जा रहा है, जिसका कार्य लगभग 96% हो चुका है.
• मूर्ति निर्माण का कार्य 3.57 करो रुपए की लागत से राम सुतार कंपनी गुजरात के ओर की जा रही है, जो लगभग पूरा हो गया है.
• जेल परिसर के संग्रहालय लाइट साउंड कार्य को लेकर 21.41 करोड रुपए की लागत से पैन इंटेलकॉम दिल्ली के ओर से किया जा रहा है. प्रारंभिक कार्य किया जा चुका है.

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भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को रांची जिले के उलिहातू गांव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था. बिरसा मुंडा को 1900 में आदिवासी समाज को संगठित करता देख ब्रिटिश सरकार ने आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया था. उन्हें 2 साल की सजा सुनाई गई और 9 जून 1900 को लगभग सुबह 8:00 बजे अंग्रेजों ने उन्हें जहर देकर मार दिया. भगवान बिरसा मुंडा 1895 में अंग्रेजों की जवाबदारी प्रथा और राजस्व व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ जल जंगल जमीन की लड़ाई करते रहे. बिरसा मुंडा ने अबुआ दिसुम अबुआ राज यानी हमारा देश हमारा राज का नारा दिया. देखते ही देखते सभी आदिवासी जंगल पर दावेदारी के लिए इकट्ठा हो गए और अंग्रेजी सरकार को उखाड़ फेंका.

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