रांची/गिरिडीह: पारसनाथ यानी सम्मेद शिखर जी Sammed Sikhar से जुड़ा मामला सुलझने के बजाए और उलझता दिख रहा है. पर्यटन क्षेत्र घोषित होने के बाद उपजे विवाद को केंद्र सरकार ने अपने एक फैसले से टालकर जैन समाज को खुशी तो दे दी लेकिन इसी फैसले से आदिवासी-मूलवासी समाज नाराज हो गया है. पारसनाथ क्षेत्र में शराब और मांस की खरीद-बिक्री और उपयोग पर रोक के बाद आदिवासी समाज को लग रहा है कि सरकार ने उनकी आस्था पर चोट किया है. क्योंकि आदिवासी समाज में धार्मिक स्थलों पर मदिरा और पशु बलि देने की प्रथा है.
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मरांग बुरू सांवता सुसार बैसी के जिला उपाध्यक्ष बुधन हेंब्रम ने ईटीवी भारत को बताया कि पारसनाथ वन्य जीव अभ्यारण्य Parasnath Wildlife Sanctuary के प्रबंधन प्लान के खंड 7.6.1. के प्रावधानों के सख्ती से लागू होने का मतलब है, उनकी आस्था पर सीधा चोट पहुंचाना. उन्हें शक है कि सेंदरा पर्व Sendara Parwa पर भी रोक लग जाएगी. इसलिए सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए 25 जनवरी तक का अल्टीमेटम देते हुए 10 जनवरी को पारसनाथ में महाजुटान का ऐलान किया गया है. उन्होंने कहा कि पारसनाथ में सम्मेद शिखरजी से करीब चार किलोमीटर पूर्व की ओर संथाल आदिवासियों का पवित्र जुग जाहेरथान है. वहां बलि देने की भी परंपरा है. उस जगह पर पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू भी आ चुकी है. यहां शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन को बतौर मुख्य अतिथि आ चुके हैं. फिर भी जैन समाज के दबाव में सरकार आदिवासियों की आस्था से खिलवाड़ कर रही है.
आदिवासी समाज कि चिंता: पारसनाथ क्षेत्र Parasnath में मांस और मदिरा के इस्तेमाल पर रोक से ज्यादा परिक्रमा पथ को लेकर आदिवासी समाज चिंतित है. उनका मानना है कि पारसनाथ पहाड़ी की तलहटी के चारो ओर करीब 58 कि.मी. के दायरे में परिक्रमा पथ है. परिक्रमा पथ के दायरे में आदिवासी और मूलवासियों के कई गांव हैं. केंद्र सरकार के नये आदेश से गांवों में बलि प्रथा जैसे धार्मिक आयोजन पर रोक लग जाएगी. आपको बता दें कि अभी पारसनाथ में सम्मेद शिखर जी तक जाने और आने के लिए 27 कि.मी का सफर तय करना पड़ता है. एक तरफ से 9 किमी चढ़ाई के बाद 9 किमी पहाड़ पर चलना पड़ता है. इसी पहाड़ी पर मंदिर बने हैं. इसके बाद लौटने के लिए 9 किमी का सफर तय करना पड़ता है.
दिगंबर जैन समाज की दलील: भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ रक्षा कमेटी, मुंबई के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिखर चंद्र पहाड़िया ने ईटीवी भारत को बताया कि फरवरी 2021 में पारसनाथ क्षेत्र को पर्यटन स्थल बना दिया गया था. लेकिन इसकी जानकारी मिली ही नहीं. इसके बाद कोविड की वजह से सारी चीजें बंद रहीं. लेकिन दिसंबर 2022 में अचानक बड़ी संख्या में लोग शिखर पर आ पहुंचे और तमाम वैसी हरकत की जिसका जैन धर्म विरोध करता है. तब जाकर इस मसले पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू हुआ. जहां तक आदिवासी समाज की आस्थी की बात है तो पारसनाथ में कहीं भी बलि देने की परंपरा नहीं है. उन्होंने कहा कि 58 किमी का परिक्रमा पथ महज कच्ची पगडंडी है. जहां जैन धर्मा को मानने वाले परिक्रमा करते हैं. उन्होंने कहा कि इसके दायरे में करीब 37 गांव हैं. वहां पूजा से कोई आपत्ति नहीं है. सिर्फ मदिरा और मांसाहार से आपत्ति है. उन्होंने कहा कि देश में जहां भी किसी धर्म का सबसे बड़ा केंद्र हैं. वहां की व्यवस्था उसी धर्म के आधार पर रखी गई है.