रांची: झारखंड में सक्रिय उग्रवादी संगठन टीपीसी और पीएलएफआई ने एक दूसरे से हाथ मिला लिया है. पुलिसिया अभियान और एनआईए के दबिश के बाद यह दोनों संगठन बैकफुट पर चल रहे थे. झारखंड पुलिस और एनआईए की ताबड़तोड़ कार्रवाई की वजह से दोनों संगठन वर्तमान में आपराधिक संगठन जैसे वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. सूचना यह भी है कि कुख्यात गैंगस्टर सुजीत सिन्हा का गिरोह भी इन दोनों उग्रवादी संगठनों के साथ काम कर रहा है.
रणनीति बदल साथ आए टीपीसी - पीएलएफआई
झारखंड के अलग-अलग इलाकों में हाल के दिनों में पुलिस जांच के दौरान कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जो राज्य में उग्रवादी संगठनों की दशा-दिशा को बता रही है. ये घटनाएं बताती है, कि झारखंड के जंगलों और दुर्गम ग्रामीण इलाकों में समानांतर सत्ता चलाने का वहम पालने वाले टीपीसी और पीएलएफआई अकेले अपने दम पर अपना संगठन भी नहीं चला पा रहे हैं. नतीजा टीपीसी और पीएलएफआई ने एक दूसरे से हाथ मिला लिया है. वहीं अब शहर में पैठ बढ़ाने के लिए दोनो संगठनों ने शहरी अपराधियों से गठजोड़ कर लिया है. झारखंड पुलिस मुख्यालय से मिली जानकारी के अनुसार ताबड़तोड़ कार्रवाई से सहमे उग्रवादियों ने हाल के दिनों में अपनी रणनीति बदली है. पीएलएफआई और टीएसपीसी सहित कई उग्रवादी संगठनों ने शहरों में सक्रिय अपराधियों के साथ सांठगांठ कर शहरी इलाकों में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश की है. अपराध के बदले तरीके और नई रणनीति को लेकर पुलिस के भी कान खड़े हो गए हैं. झारखंड पुलिस के प्रवक्ता आईजी अभियान साकेत कुमार सिंह ने बताया कि पीएलएफआई और टीपीसी के निचले कैडर के एक दूसरे के साथ गठजोड़ की सूचनाएं मिल रही है, हालांकि अभी दोनो संगठनों के शीर्ष नेतृव ने इसमें हामी भरी है या नही इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है. आईजी अभियान के अनुसार सुजीत सिन्हा गिरोह के साथ उग्रवादी संगठनों की सांठगांठ के मामले सामने आए हैं और इन मामलों को लेकर पुलिस कार्रवाई भी कर रही है.
उग्रवादी - अपराधी गठजोड़ खतरनाक साबित होगा
टीपीसी और पीएलएफआई दोनों ही संगठन झारखंड के सबसे बड़े नक्सली संगठन भाकपा माओवादियों से टूटकर बने हैं. वर्तमान दौर में भाकपा माओवादियों के पास नक्सलवाद की थोड़ी बहुत आईडियोलॉजी बची भी हुई है, लेकिन पीएलएफआई और टीपीसी दोनों ही संगठनों का अपराधीकरण हो चुका है. दोनों ही संगठन आपराधिक गिरोह की तरह वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. रंगदारी इनका मुख्य धंधा बन चुका है. अपराधी जहां नक्सलियों को खतरनाक आधुनिक हथियार, गोला-बारूद और विस्फोटक उपलब्ध कराने से लेकर रैकी करने, रणनीति बनाने, लोकेशन बताने, अपराध का टारगेट और शिकार बताने में बैकअप दे रहे हैं, वहीं उग्रवादी इन अपराधियों को लेवी की रकम में हिस्सा दे रहे हैं. अपहरण, फिरौती, हत्या और हमले की कई घटनाओं को हाल में उग्रवादियों और अपराधियों ने मिलकर अंजाम दिया है.
खोई जमीन पाने की कोशिश
जानकार बताते हैं कि कमजोर पड़े उग्रवादी और अपराधी संगठन अपनी खोई जमीन पाने की कोशिश में नए सिरे से लगे हैं. नक्सली संगठन भाकपा माओवादी, पीएलएफआई और टीएसपीसी अभी नेतृत्व विहीन स्थिति में हैं. इनके बड़े नेता या तो मुठभेड़ में मार दिए गए हैं, या जेल में हैं. कई पुराने उग्रवादियों को उनकी उम्र और बीमारियों ने कमजोर कर दिया है. ऐसे में अब ये संगठन खुद को जीवित रखने के लिए पर्याप्त राशि की व्यवस्था करने और फिर से धमक बनाने में जुटे हैं. पुलिस का दावा है कि झारखंड पुलिस और अर्धसैनिक बलों की सक्रियता से जंगली इलाके में सक्रिय उग्रवादी-अपराधी संगठनों में शामिल होने के लिए नए युवा नहीं मिल पा रहे. उग्रवादियों के ओर से ग्रामीण इलाकों में महिलाओं और बच्चों को जबरन उठाकर संगठन का हिस्सा बनाने की रणनीति भी नाकाम होने लगी है. लिहाजा अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उग्रवादियों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है. शहरी अपराधी इनकी मदद कर रहे हैं. बदले में उग्रवादी अपने क्षेत्रों में ली जा रही लेवी में शहर के अपराधियों को हिस्सा भी दे रहे हैं. वहीं अपराधी भी उग्रवादियों का साथ पाकर खुद को मजबूत महसूस कर रहे हैं.
टीपीसी पर कसा है एनआईए का शिकंजा
कोल परियोजना के जरिए टेरर फंडिंग करने के मामले में उग्रवादी संगठन टीपीसी पर एनआईए ने साल 2018 के बाद शिकंजा कसा, जिसके बाद टीपीसी सुप्रीमो गोपाल सिंह भोक्ता, आक्रमण, मुकेश गंझू, भीखन गंझू जैसे बड़े उग्रवादी अंडरग्राउंड हैं.