रांचीःपितृ विसर्जन अमावस्या पर पितर अपने लोक लौट जाएंगे. हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन मास (क्वार माह) के कृष्ण पक्ष की अमावस्या यानी पितृ विसर्जन अमावस्या बुधवार 6 अक्टूबर को है. हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन पितृपक्ष का समापन होता है और पूर्वज अपने लोक चले जाते हैं.
पितरों को प्रसन्न करने के लिए ग्रंथों में सफेद फूल, सफेद चंदन, तिल और जौ से पूजा करने के विधान बताए गए हैं. साथ ही जल समर्पण की भी रीति है. इसके अगले दिन से नवरात्रि 2021 शुरू होगी, जिसमें देश भर में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा होगी.
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रांची के पंडित जितेंद्र महाराज का कहना है कि अश्विन अमावस्या (ashwin krishna amavashya) का हिंदू धर्म के मानने वालों के लिए बड़ा महत्व है. जितेंद्र महाराज का कहना है कि इस दिन पितृपक्ष समाप्त होता है और इसके बाद देवी-देवताओं का पूजन शुरू होता है.
जितेंद्र महाराज का कहना है कि धार्मिक ग्रंथों में जो विधान बताए गए हैं, उसके अनुसार अमावस्या के दिन पितरों को खुश करने के लिए सफेद फूल, सफेद चंदन, तिल और जौ से उनकी पूजा करनी चाहिए. साथ ही उन्हें याद कर जल समर्पण करना चाहिए. इससे पितृजन तृप्त होते हैं और जाते समय अपने पुत्र-पौत्रों और परिवार के अन्य सदस्यों को आशीर्वाद देते हैं.
ऐसे करें तर्पण
पंडित जितेंद्र महाराज ने कहा कि अश्विन अमावस्या के दिन जलाशय, नदी या कुंड में स्नान कर सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए, उसके बाद पितरों के निमित्त तर्पण करें. जितेंद्र महाराज ने बताया कि जिन लोगों को अपने पूर्वजों के श्राद्ध की तिथि याद नहीं है वैसे व्यक्ति भी इस दिन तर्पण कर सकते हैं.
जितेंद्र महाराज ने बताया कि इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है. यह दिन ज्ञात और अज्ञात पितरों के पूजन के लिए बड़ा महत्व रखता है. इसलिए इसे सर्व पितृ अमावस्या या महालय विसर्जन भी कहा जाता है.