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शुक्र है इंसानियत तेरी कौम नहीं होती...हिंदू रीति से कोरोना मरीजों के शवों का अंतिम संस्कार कर रहे तीन मुस्लिम युवक - कोरोना काल में इंसानियत

रांची में तीन मुस्लिम युवक धर्म से ऊपर उठकर हिंदू रीति से कोरोना संक्रमित मरीजों के शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं. साबिर अंसारी नगर निगम और परवेज आलम डोरंडा थाना के कर्मचारी हैं. परवेज ने बताया कि आपदा में काम करते हुए जान भी चली जाए तो कम है. यही बचपन से पढ़ा और यही सीखा है.

Muslim youth cremating the Corona Infected
कोरोना संक्रमितों का अंतिम संस्कार कर रहे तीन मुस्लिम युवक

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Published : May 14, 2021, 5:56 PM IST

Updated : May 14, 2021, 7:47 PM IST

रांची:कोरोना काल में हर दिन दम तोड़ती इंसानियत के बीच कुछ लोग इसे बचाने में जी जान से जुटे हैं. ऐसी ही एक कहानी है रांची के तीन युवकों की. दरअसल, कोरोना के चलते हर दिन मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में शवों का अंतिम संस्कार करना प्रशासन और सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. ऐसे वक्त में तीन मुस्लिम युवक जाति और धर्म से ऊपर उठकर इस चुनौती को हरा रहे हैं. तीनों हिंदू रीतियों से शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं. तीनों के नाम हैं साबिर, परवेज और अकील. साबिर अंसारी नगर निगम और परवेज आलम डोरंडा थाना के कर्मचारी हैं.

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'आपदा में जान भी चली जाए तो कम है, यही बचपन पढ़ा और यही सीखा'

इस काम में लगे परवेज बताते हैं कि देश में आई आपदा में काम करते हुए जान भी चली जाए तो कम है. यही बचपन से पढ़ा और यही सीखा है. संकट के इस दौर में सभी को जाति और धर्म भूलकर एक हिंदुस्तानी के तौर पर काम करना चाहिए और यही देश का इतिहास रहा है. जब भी देश में कोई समस्या आई है तब सभी लोगों ने एकजुट होकर समस्या का समाधान किया है. साबिर अंसारी का कहना है कि रमजान के पाक महीने में इस्लाम में भी यही सिखाया जाता है कि जब देश को जरूरत हो तो आगे आना चाहिए. अपना दायित्व सही तरीके से निभाकर ही ईद मना रहे हैं.

कोरोना संक्रमित के शव का अंतिम संस्कार कर रहे मुस्लिम युवक.

...शुक्र है इंसानियत तेरी कोई कौम नहीं होती

साबिर अंसारी, अकील अंसारी और परवेज आलम की सेवा भावना को देखते हुए घागरा मुक्तिधाम पर लाशों का अंतिम संस्कार कराने की जिम्मेदारी उठाने वाले अड़गोरा के अंचल अधिकारी अरविंद ओझा बताते हैं इस संकट की घड़ी में समाज के हर वर्ग का पूरा सहयोग रहा है. लेकिन खास करके रमजान के महीने में अकील, साबिर और परवेज के योगदान को हमेशा याद करेंगे क्योंकि इन लोगों ने अपनी चिंता छोड़ कर समाज की चिंता की है. यह निश्चित रूप से पूरे समाज के लिए संप्रदायिक सौहार्द का एक बेहतर संदेश देता है. ऐसे लोगों के लिए किसी शायर ने क्या खूब लिखा है कायम है दुनिया इतने फसादों के बावजूद...शुक्र है इंसानियत तेरी कोई कौम नहीं होती.

मुश्किल घड़ी में धर्म और जाति से ऊपर उठकर लोग सामाजिक काम में जुटे हैं.
Last Updated : May 14, 2021, 7:47 PM IST

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