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मध्यप्रदेश सरकार 'भगवान' बिरसा मुंडा की जयंती मनाएगी, डगडौआ में बनवाएगी स्मारक

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Published : Nov 25, 2020, 9:05 PM IST

Updated : Nov 25, 2020, 9:28 PM IST

मध्य प्रदेश सरकार अब हर साल भगवान बिरसा मुंडा की जयंती मनाएगी. इसके 15 नवंबर पर उनके जन्मदिन पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. वहीं डगडौआ में स्मारक भी बनवाएगी, जिस पर उनकी शिक्षाओं और उपलब्धियों को उकेरा जाएगा.

मध्यप्रदेश सरकार 'भगवान' बिरसा मुंडा की जयंती मनाएगी

भोपालःमध्य प्रदेश सरकार अब हर साल भगवान बिरसा मुंडा की जयंती मनाएगी. इसके 15 नवंबर पर उनके जन्मदिन पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. वहीं डगडौआ में स्मारक भी बनवाएगी, जिस पर उनकी शिक्षाओं और उपलब्धियों को उकेरा जाएगा. बुधवार को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसका ऐलान किया. चौहान ने कहा कि वे बिरसा जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाएंगे. सीएम ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी.

वहीं एक कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भीमा नायक,छज्जा नायक, रंगा शाह, शंकर शाह जैसे जनजातीय वीरों की याद में कार्यक्रमों का ऐलान किया. उन्होंने कहा 5 करोड़ की लागत से रंगा शाह और शंकर शाह का भी भव्य स्मारक बनवाया जाएगा.

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कौन हैं बिरसा मुंडा

आदिवासियों के महानायक और धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी के सुदूरवर्ती इलाका उलिहातू गांव में हुआ था. आदिवासी दंपत्ति सुगना मुंडा और करमी मुंडा के घर जन्में बिरसा मुंडा भारतीय इतिहास में एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने अपने क्रांतिकारी विचार से उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलने में अहम भूमिका निभाई थी. बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था और आदिवासियों को उनका हक दिलाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी. 9 जून 1900 को रांची जेल में उनका निधन हो गया था. आदिवासी समुदाय बिरसा मुंडा को धरती आबा यानी भगवान मानता है. उन्होंने एक धर्म चलाया था, जिसे बिरसा धर्म कहते हैं. बिरसा के सच्चे भक्त आज भी इस धर्म को निभा रहे हैं, जिन्हें बिरसाइत कहा जाता है.

मध्यप्रदेश सरकार 'भगवान' बिरसा मुंडा की जयंती मनाएगी

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अंधविश्वास पर वार

19वीं सदी के अंतिम दशक में उन्होंने अपनी माटी को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने के लिए आदिवासियों को जागरूक करना शुरू किया. उन्होंने आदिवासी समाज को मजबूत करने के लिए भूत-प्रेत और डायन जैसे अंधविश्वास को दूर करने की कोशिश की. इसी दौरान लोग भयंकर अकाल और भुखमरी की हालात से गुजर रहे थे. उस समय बिरसा मुंडा ने पूरे समर्पण से लोगों की सेवा की. इधर, अंग्रेजी शासन आदिवासियों के लिए काल बनता जा रहा था. अंग्रेज पहले कर्ज देते और बदले में उनकी जमीन पर कब्जा कर लेते थे. अंग्रेजों का आदिवासियों पर जुल्म समय के साथ बढ़ता ही जा रहा था. ‘इंडियन फारेस्ट एक्ट-1882’ ने उनकी पहचान ही छीन ली. जो जंगल के दावेदार थे, वही अब जंगलों से बेदखल कर दिए गए. यह देख बिरसा ने उलगुलान का ऐलान कर दिया, दमनकारी अंग्रेजी हुकूमत के आगे तीर-कमान कब तक सामना करते. इस लड़ाई में सैकड़ों लोग बेरहमी से मार दिए गए, लेकिन बिरसा मुंडा कभी हार मानने वालों में से नहीं थे. उनकी मेहनत और समाज के प्रति सेवा भाव से वे आदिवासियों के बीच धरती आबा के तौर पर लोकप्रिय हो गए, लेकिन बिरसा की ये चमत्कारिक लोकप्रियता अंग्रेजों को हजम नहीं हो रही थी.

ऐसे हुई थी बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी

बिरसा मुंडा काफी समय तक तो पुलिस की पकड़ में नहीं आ रहे थे. इसे लेकर ब्रिटिश सरकार ने उनके खिलाफ जानकारी देने और पकड़वाने में मदद करने के लिए ईनाम की घोषणा कर दी. इसके लालच में आकर उनके किसी करीबी ने ही अंग्रेजी हुकूमत की मदद की. जिसके बाद उन्हें 3 मार्च 1900 को गिरफ्तार कर लिया गया और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 2 साल की सजा सुना दी. लगातार जंगलों में भूखे-प्यासे भटकने की वजह से वह कमजोर हो चुके थे. आखिरकार 9 जून 1900 को अंग्रेजों के अत्याचार झेलते-झेलते जेल में ही बिरसा की मौत हो गई लेकिन बिरसा मुंडा के विचार आज भी लोगों को हमेशा संघर्ष की राह दिखा रहा है. महज 25 साल की उम्र में बिरसा मुंडा ने जल, जंगल और जमीन को लेकर जिस क्रांति का आगाज किया, वह आज भी आदिवासियों को आगे बढ़ने की राह दिखा रहा है.

Last Updated : Nov 25, 2020, 9:28 PM IST

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