रांची:आज अंतराष्ट्रीय श्रमिक दिवस है. श्रमिक को किसी भी देश की आर्थिक उन्नति की रीढ़ कहा जाता है. लेकिन आज के ही दिन झारखंड मनरेगा कर्मचारी संघ सड़क पर उतर आया है. संघ ने खूंटी के उलिहातू स्थित भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली से राजभवन तक पैदल मार्च निकाला है. यह मार्च 3 मई को राजभवन पहुंचेगा. संघ के अध्यक्ष जॉन पीटर बागे ने ईटीवी भारत तो बताया कि उनके साथ लगातार छलावा हो रहा है. इसी वजह से सड़क पर उतरना पड़ रहा है. उन्होंने मनरेगा कर्मी के हित में सेवा शर्त नियमावली में संशोधन की मांग की है.
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तीन सालों बाद भी नहीं हुआ कमिटी का गठन: उनका कहना है कि राज्य के मनरेगा कर्मी पिछले सोलह वर्षों से बेहद कम मानदेय पर काम कर रहे हैं. इस दौरान मनरेगाकर्मियों ने नियमितीकरण के लिए कई बार आंदोलन किया लेकिन नतीजा सिर्फ आश्वासन तक सिमट कर रह गया. उस दौरान विकास आयुक्त के स्तर पर उच्च स्तरीय कमेटी के गठन की बात कही गई थी. लेकिन सरकार के तीन साल बीत जाने के बाद भी कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई. यही नहीं मनरेगा कर्मियों के हित में सेवा शर्त नियमावली में संशोधन भी नहीं हुआ.
सरकार की इस उपेक्षा से नाराज होकर मनरेगा कर्मचारी संघ ने पदयात्रा निकाली है जो अड़की प्रखंड, तमाड़ प्रखंड, बुंडू प्रखंड और नामकुम प्रखंड होते हुए 3 मई को राजभवन पहुंचेगी. उस दिन राजभवन के सामने एक दिवसीय विशाल धरना का आयोजन होगा. इसे लेकर संघ ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नाम पत्र जारी किया है. उनसे 3 मई को संघ के प्रतिनिधिमंडल के साथ सकारात्मक वार्ता कर नियुक्ति सेवा शर्त और कर्तव्य नियमावली 2007 में संशोधन करने का आग्रह किया है.
एक ही पद के लिए अलग-अलग मानदेय क्यों?: संघ का सवाल है कि झारखण्ड में लगभग 49 विभाग है. सभी का अपना स्थापित मंत्री सचिव, इंजीनियर, प्रधान सहायक, नाजिर, लेखापाल, क्लर्क, लिपिक, आदेश पाल आदि पद हैं. सभी 49 विभागों के चिन्हित पदों का वेतन, सुविधा, अवकाश सब कुछ एक है. लेकिन इन्हीं विभागों में एक ही पद कोटि यानी इंजीनियर, प्रधान सहायक, क्लर्क लेखापाल और आदेश पाल जो संविदा पर कार्यरत हैं, उनके देय मासिक मानदेय में भिन्नता क्यों है? क्या ग्रामीण विकास मंत्री और कल्याण मंत्री के मानदेय में भिन्नता है? या कल्याण विभाग के इंजीनियर प्रधान सहायक, नाजिर क्लर्क या आदेशपाल का वेतन ग्रामीण विकास विभाग से कम है क्या? कोई विसंगतियां है क्या? यदि नहीं तो फिर अनुबंधकर्मियों के एक विभाग से दूसरे विभागों के समान पद कोटि के देय मासिक मानदेय और अवकाश में अंतर क्यो है? सिर्फ नाम के आगे संविदा शब्द जोड़कर सारी सुख सुविधाओं को काट लेना कहां तक उचित है.
इसी तरह झारखंड के अन्य किसी भी दो विभागों के स्थायी कर्मियों के समान पद कोटि में जब कोई विसंगतियां नहीं है तो एक ही विभाग के अनुबंधकर्मियो के मानदेय में इतनी विसंगतियों को क्यों बढ़ावा मिल रहा है, इसे अब तक दूर क्यों नहीं किया जा रहा है?