रांची: कोविड के दौर में मनरेगा की योजनाओं ने झारखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेपटरी होने से बचाने में अहम भूमिका निभाई थी. झारखंड में रिकॉर्ड मानव दिवस का सृजन हुआ था. बिरसा हरित ग्राम योजना और नवंबर 2021 से फरवरी 2022 तक मजदूरों का भुगतान नहीं हो पाया था. बाद में केंद्र सरकार की तरफ से 330 करोड़ की राशि जारी करने पर बकाये का भुगतान भी हो गया. फिर भी झारखंड से मजदूरों का पलायन हो रहा है. मनरेगा की योजनाओं से जुड़कर काम करने वालों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से कमी आई है. सबसे खास बात है कि इस साल औसत से बेहद कम बारिश हुई है. पूरा राज्य सुखाड़ की चपेट में है. अगर आने वाले कुछ दिनों में अच्छी बारिश नहीं होती है कि धान की खेती नहीं हो पाएगी. धान की खेती के लिए बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने गांव लौटे थे. लेकिन अब फिर दूसरे प्रदेश जाने को विवश हो गये हैं.
मजदूरी बढ़ने के बाद भी रूझान कम:झारखंड में करीब 44 लाख एक्टिव वर्कर्स हैं. इसमें सबसे ज्यादा 26 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति से जुड़े वर्कर्स हैं. साल 2020-21 में मनरेगा मजदूरों को प्रति दिन 198 रु. मेहनताना मिलता था. यह राशि केंद्र सरकार देती थी. राज्य सरकार ने अपनी तरफ से 27 रु. जोड़कर पारिश्रमिक की राशि प्रति कार्यदिवस 225 रु. कर दी. अब यह राशि बढ़कर 237 रु हो गई है. इसके बावजूद मनरेगा के प्रति लोगों का रूझान कम होता जा रहा है. दरअसल, उन्हें दूसरे राज्यों में प्रति दिन अच्छी खासी मजदूरी मिल जाती है.