रांचीः जनजातीय महोत्सव (tribal festival) के अवसर पर आयोजित सेमिनार के दूसरे और अंतिम दिन अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मंत्री चंपई सोरेन (minister champai soren) शामिल हुए. टीआरआई में आयोजित सेमिनार में मंत्री चंपई सोरेन (minister champai soren) ने कहा कि आज के आधुनिक युग में हमें आदिवासी समाज (tribal society)की संस्कृति एवं उसकी सभ्यता को सहेज कर रखते हुए आगे बढ़ना है.
उन्होंन कहा कि हमें अपने पूर्वजों से समाज को जोड़ कर रखना और मजबूत बनाना सीखना होगा. उन्होंने कहा कि वर्षों से हम आदिवासी उत्थान की बात कर रहे हैं. इसके लिए अलग से मंत्रालय भी है, परंतु आज भी आदिवासियों का क्या वास्तविक विकास हो पाया है? इसे समझने की आवश्यकता है. इस तरह के सेमिनार से ही आदिवासी समाज की सभ्यता, संस्कृति और उसकी सामाजिक व्यवस्था की स्थिति क्या है, इसे जानने में मदद मिलेगी.
चंपई सोरेन (minister champai soren)ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मनाये जा रहे झारखंड जनजातीय महोत्सव (tribal festival) में देशभर से आए आदिवासी समाज की कला-संस्कृति, रहन-सहन को जानने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसे झारखंड जनजातीय महोत्सव (tribal festival) के रूप में मनाने का निर्णय लिया है. इस अवसर पर जनजातीय शोध संस्थान, मोरहाबादी में दो दिवसीय ट्राइबल सेमिनार का आयोजन कर आदिवासी समाज ने अपने इतिहास, रीति-रिवाज को कितना बचाया है और कितना खोया है, इस पर चर्चा हो रही है. आने वाले वर्षों में इसे और भी बड़े पैमाने पर मनाया जाएगा.
आदिवासी समाज होगा सशक्तःइस अवसर पर कल्याण सचिव के. के. सोन ने कहा कि अब हमें आदिवासी समाज (tribal society) के उत्थान के साथ-साथ इस समाज के सशक्तिकरण के बारे में भी विचार करना होगा. झारखंड जनजातीय महोत्सव(tribal festival) में इस तरह के सेमिनार के आयोजन से देश के विभिन्न हिस्सों से आए साहित्यकार, लेखक, रिसर्च स्कॉलर, जनजातीय समुदाय के लोगों के विचार साझा होंगे और आपलोगों का बहुमूल्य सुझाव हमें प्राप्त होगा. जिससे आदिवासी समाज (tribal society) के विकास एवं उनके सशक्तिकरण में मदद मिलेगी.
उन्होंने कहा कि हमें आदिवासियों को सशक्त बनाने की दिशा में प्रयास करने होंगे. पारंपरिक ट्राइबल मेडिसिन को बढ़ावा देना होगा. झारखंड के जंगलों में मौजूद जड़ी-बूटियों का अध्ययन कर इसके व्यापक इस्तेमाल पर जोर देना होगा. जिससे जनजातियों की आर्थिक उन्नति भी हो सके. इस अवसर पर साहित्यकार यशवंत गायकवाड़, सोनकर, महादेव टोप्पो, डॉ. हरि उरांव, डॉ. जिंदल सिंह मुंडा सहित विभिन्न राज्यों से आए साहित्यकार, लेखक एवं रिसर्च स्कॉलर उपस्थित रहे.