जयपुर. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जब से यह आदेश दिए हैं, कि कोई भी प्रवासी मजदूर सड़कों पर अगर पैदल चलता हुआ दिखाई दिया तो एसडीएम इसके लिए जिम्मेदार होंगे. अब हालात यह हैं, कि प्रदेश में पैदल चलते हुए प्रवासी श्रमिक तो नहीं दिखाई दे रहे लेकिन जो श्रमिक पैदल चलते हुए प्रशासन को मिले उन्हें जिलों में अलग-अलग जगह बनाए गए शेल्टर होम में रखा गया है.
बता दें, कि जयपुर के कानोता में बने शेल्टर होम का जायजा जब ईटीवी भारत की टीम ने लिया तो वहां देखा कि बड़ी तादाद में शेल्टर होम्स में श्रमिक बसें लगाई जा रही है ताकि श्रमिकों को उनके राज्यों के बॉर्डर में छोड़ दिया जाए. लेकिन राजस्थान सरकार के सामने दिक्कत यह है कि जब तक श्रमिकों के राज्य उन्हें लेने की इजाजत नहीं देते हैं तब तक वह इन्हें यहां से छोड़ भी नहीं सकते हैं. ऐसे में सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है बिहार के प्रवासी मजदूरों को.
बिहार के बाद झारखंड और पश्चिम बंगाल के प्रवासी मजदूरों के हालात भी लगभग इसी तरीके के है. हालांकि यूपी और मध्य प्रदेश के जितने भी प्रवासी श्रमिक है उन्हें उनकी सरकार आने की इजाजत दे रही हैं. ऐसे में यूपी और मध्य प्रदेश के प्रवासी श्रमिक इन शेल्टर होम में कम ही दिखाई देते हैं और जो होते हैं वह भी बसों में बैठकर रवाना हो जाते हैं, लेकिन बिहार के मजदूरों के हालात यह है कि करीब 4 दिन हो गए हैं उन्हें जयपुर के कानोता मे बने शेल्टर होम में आए, लेकिन अब भी बिहार सरकार की इजाजत नहीं मिलने के चलते इन्हें ले जाया नहीं जा पा रहा हैं और बिहार के प्रवासी मजदूर अटके हुए हैं.
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सभी मजदूरों को शेल्टर होम लाया गया
तमाम मजदूर पैदल चल रहे थे, उन्हें प्रशासन के द्वारा इन शेल्टर होम में लाया गया है. लेकिन अब दिक्कत हो गई है कि बिहार सरकार की अनुमति के इंतजार में यह श्रमिक कानोता में ही रह गए हैं. ऐसे में अब यह श्रमिक सीधे तौर पर नीतीश कुमार पर अपना गुस्सा निकालते हुए दिखाई दे रहे हैं और एक ही बात बोल रहे हैं कि नीतीश कुमार बुलाए या ना बुलाए हम अपने जन्म स्थान पर जरूर जाएंगे. वहीं कुछ मजदूरों और श्रमिकों का यह कहना था, कि जब चुनाव आते हैं तब हमें कैसे सरकार ले जाती है और अभी परेशानी के समय में हमें बुलाने से इंकार कर रही हैं.