रांची: बोनिफास लकड़ा, जिन्हें झारखंड के अंबेडकर के नाम से भी जाना जाता है. 4 मार्च 1898 को झारखंड के लोहरदगा जिला में जन्मे बोनिफास लकड़ा संविधान निर्माण समिति के सदस्य रह चुके हैं. लेकिन अफसोस की बात यह है कि संविधान सभा के सदस्य रह चुके बोनिफास लकड़ा को आज लोग नहीं पहचान रहे हैं. अब उनकी यादें सिर्फ यादें बनकर ही रह गयी हैं. परिजन मानते हैं कि उनके किए कार्यों को बिसरा दिया गया.
इसे भी पढ़ें- Republic Day Special: संविधान सभा में पलामू की दो विभूति थीं शामिल, बहस में आदिम जनजाति पर यदु बाबू के सुझाव बने PESA Act के आधार
दिवंगत बोनिफास लकड़ा के बेटे अजय लकड़ा बताते हैं कि जब वो छोटे थे तो अपने पिता की कार्यशैली को देखकर काफी प्रभावित होते थे. उन्होंने बताया कि वर्ष 1930 से उनके पिता एकीकृत बिहार में वकालत का काम करते थे. उनकी वकालत से लोग काफी प्रभावित हो जाते थे और इसी को देखते हुए वर्ष 1937 में भारत में हुए चुनाव में वह रांची एसेंबली से मेंबर ऑफ एसेंबली बने. वकालत के दौरान भी वो लोगों की मदद करते थे और उनके इसी व्यवहार को देखते हुए उन्हें 1946 में संविधान निर्माण समिति के सदस्य रुप में चुना गया.
बोनिफास लकड़ा के परिजनों ने बताया कि लोहरदगा के बाद वह रांची पहुंचे और रांची से ही उन्होंने अपने राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन का शुरुआत की. जिसको लेकर सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश के लोगों ने उनके कार्य की सराहना की. बोनिफास लकड़ा के बड़े बेटे अजय लकड़ा ने बताया कि वर्ष 1990 से पहले उनके परिवार को भी पता नहीं था कि संविधान निर्माण में उनके पिता का अहम योगदान रहा है. लेकिन एक परिचित के माध्यम से 1990 के बाद उनके परिवार ही पता चला कि संविधान निर्माण में उनके पिता का अहम योगदान रहा है.
पुत्र अजय लकड़ा ने कहा कि जयपाल सिंह मुंडा के साथ उनके पिता ने काम किया और संविधान निर्माण में सहयोग दिया, जिसका वर्णन फ्रेमिंग ऑफ इंडियास कांस्टिट्यूशन (FRAMING OF INDIA'S CONSTITUION) किताब में भी किया गया है. यह किताब भारत सरकार के द्वारा 1962 में प्रकाशित की गई थी, जिसमें बोनिफास लकड़ा के योगदान को भी बताया गया है. उन्होंने बताया कि दुर्भाग्यपूर्ण यह किताब उन्हें कई वर्षों तक नहीं मिल पाया, जिस वजह से उन्हें भी उनके पिता के पूरे योगदान के बारे में जानकारी नहीं थी. लेकिन जैसे ही इस किताब के माध्यम से उन्हें जानकारी मिली उन्होंने अपने पिता के योगदान के बारे में समाज को बताना शुरू कर दिया.