रांची:वर्ष 2024 के चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लेकर राजनीति गर्म होती जा रही है. एक तरफ केंद्र में बैठी भारतीय जनता पार्टी इसका समर्थन कर रही है. तो वहीं विपक्ष में बैठे लोग इसका विरोध करते नजर आ रहे हैं. इसी को लेकर राजधानी रांची में भी आदिवासी संगठनों ने विरोध जताते हुए आदिवासी समाज के बुद्धिजीवियों ने रविवार को धूमकुरिया भवन में बैठक की.
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रांची में हुए बैठक के बाद बिहार विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष देवेंद्र नाथ चंपिया ने बताया कि भारत के संविधान के अनुसार जो क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य है या फिर जहां पर पांचवी अनुसूची लागू है वहां पर कॉमन लोग एप्लीकेबल नहीं हैं. देवेंद्र नाथ चंपिया ने बताया कि जैसे इंडियन सकसेशन एक्ट, हिंदू मैरिज एक्ट सहित विभिन्न जगह पर आदिवासियों को शामिल नहीं किया गया क्योंकि इन कानूनों के लिए आदिवासियों को कॉमन मैन के रूप में देखा गया. उन्होंने बताया कि ब्रिटिश काल से ही आदिवासियों के संस्कृतियों का ख्याल रखा गया है. भारत का संविधान बनने के बाद आर्टिकल 13 में यह स्पष्ट वर्णन किया गया है कि आदिवासियों के रूढ़ी प्रथा को मान्यता दी जाएगी. वहीं आर्टिकल 368 में भी स्पष्ट किया गया है कि संसद द्वारा किया गया संशोधन भी आर्टिकल 13 को प्रभावित नहीं कर सकता. इसीलिए आज भी झारखंड के कई क्षेत्रों में आदिवासियों पर होने वाले मुकदमे सीपीसी (civil procedure court )के तहत नहीं बल्कि रूढ़ी प्रथा के तहत की जाती है.
बिहार विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष ने बताया कि अगर कोई भी कानून आदिवासी क्षेत्र में लागू की जाती है तो उसके लिए पहले गवर्नर को नोटिफिकेशन जारी करना पड़ता है. अधिसूचना जारी करने से पहले राज्यपाल को भी राज्य के ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी (TAC) से सुनिश्चित करना होता है कि लागू किया जाने वाला कानून आदिवासियों के लिए हितकारी है या नहीं. जब तक आदिवासियों के हित में काम करने वाली संस्था ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी (Tac) सुनिश्चित नहीं करती है तब तक कोई भी नया कानून शेड्यूल एरिया में लागू नहीं हो सकता.